भारत का इतिहास ऐसे अनेकों वीर योद्धाओं, वीरांगनाओं के बलिदान और त्याग से भरा हुआ है जिनके कारण आज हम आजाद देश के आजाद नागरिक कहे जाते हैं । देश पर जब विभिन्न आक्रमणकारी गिद्धों की भांति टूट टूट कर पड़ रहे थे तब ऐसे अनेकों योद्धा और वीरांगनाएं रही जिन्होंने उनका डटकर सामना किया । ऐसे ही एक वीर योद्धा थे महाराणा प्रताप के दादा महाराणा संग्राम सिंह। जिन्होंने बाबर जैसे विदेशी आक्रमणकारी का डटकर सामना किया था ।बहुत दुर्भाग्य की बात है कि आज उनका समाधि स्थल पूर्णतया उपेक्षित पड़ा है। जबकि चोर उचक्के, बदमाश, लुटेरे और आतंकी गिद्ध जो विदेशों से यहां आकर बादशाह या सुल्तान बने उनके मकबरे दमकते हैं । अपने इतिहास नायकों के साथ ऐसा अन्याय केवल भारत में ही देखा जा सकता है ।
आज उनके समाधि स्थल की दयनीय दशा देखने जा सकती । कांग्रेसी कुशासन में तो उनकी समाधि स्थल की उपेक्षा निरंतर जारी रही है, भारतीय जनता पार्टी के शासन में भी इस वीर योद्धा के समाधि स्थल की ओर देखने का समय किसी के पास नहीं है। बहुत दुर्भाग्य की बात है कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करने वाली भाजपा व आरएसएस के लोगों की नजर इस ओर नहीं गई है । इसे भाजपा की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति कहें या कांग्रेसी की बी टीम होने की उसकी विशेषता कहें?
चित्र में देखने से आप यह विश्वास नहीं कर पाएंगे कि यह समाधि हमारे उसी महानायक की है जिसके शरीर पर शत्रु के शस्त्रों के 80 गहरे घाव होने और एक आंख और एक हाथ नहीं होने के उपरांत भी अपना अद्वीतीय शौर्य और साहस दिखाकर शत्रु के दांत खट्टे कर दिए थे । महाराणा प्रताप के इस महान पूर्वजों के नाम से ही बाबर को पसीने आ जाते थे । भारतीय रेलवे भी इस महान योद्धा की नामशेष समाधि का शत्रु बन गया लगता है। अब उनकी समाधि के नाम पर एक चबूतरा मात्र ही दिखाई देता है जिस पर शासन प्रशासन का ध्यान चाहे ना जाए परंतु स्थानीय लोगों का ध्यान हमेशा अपने इस वीर योद्धा के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करने में देखा जा सकता है । आने जाने वाले राहगीर अपने इस महानायक के समाधि स्थल पर शीश झुकाते देखे जा सकते हैं। जिससे पता चलता है कि हमारे इतिहास की परंपराएं शासन-प्रशासन के स्तर पर नहीं बल्कि आम जनता के स्तर पर सुरक्षित रखी जाती हैं। समाधि पर महाराणा प्रताप सिंह का नाम लिखा देखकर इतिहास के जानकार विद्यार्थी भी इस योद्धा की शौर्य गाथा को स्मरण कर शीश झुकाने के लिए अनायास ही प्रेरित हो जाते हैं। समाधि स्थल के चारों ओर चाहे कितनी ही वीरानगी क्यों न पसरी हो परंतु श्रद्धालुओं के हृदय में अपने इस महानायक के प्रति कहीं वीरानगी नहीं है।
महाराणा संग्राम सिंह की समाधि के प्रति प्रशासन की उपेक्षा की जानकारी इस बात से हो जाती है कि इसके चारों ओर घास उग आई है । कटीली झाड़ियां और सूखी घास यह बताती हैं कि प्रशासनिक लोग यहां पर कभी आकर देखते नहीं है। इतना ही नहीं समाधि स्थल की चुनी हुई दीवार भी अब या तो फटने लगी है या दरकने लगी है जिससे प्रशासन की घोर उपेक्षा की पोल खुल जाती है। यद्यपि यह स्थान सरकारी अभिलेखों में अभी भी महाराणा संग्राम सिंह की समाधि के नाम से ही दर्ज है परंतु स्थानीय लोगों ने अपना कब्जा कर इस पर अतिक्रमण कर लिया है जिसे छुड़वाने के लिए भी शासन प्रशासन की ओर से कोई प्रयास नहीं किए गए हैं।
यह समाधी जयपुर से महज 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दौसा जिले के बसवा रेलवे स्टेशन की पटरियों के पास बनी है। इसे स्थानीय लोग भोमिया जी यानी की लोक देवता के नाम से भी पूजते हैं। अब आधुनिकीकरण का दौर चल पड़ा तो ऐसे में इतिहास के इस महान योद्दा की इस समाधी स्थल को तोड़कर रेलवे भी अपनी पटरियों का विस्तार करना चाहता है। रेलवे बांदी कुई से अलवर तक के रेल दोहरीकरण का रास्ता बनाने की कोशिश में था, और तर्क दिया गया है की राणा सांगा के इस चबूतरे वाली समाधी के कारण घुमाव के चलते ट्रेनों की गति 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा तक बाधित है।
ऐसे में जनहित में राणा सांगा के इस चबूतरे को आस-पास ही दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया जाए तो आम आदमी के साथ-साथ रेलवे को भी फायदा होगा। बसवा स्टेशन के पास राणा सांगा के चबूतरे के नाम पर कई बीघा जमीन आवंटन का भी प्रस्ताव दिया गया। कहा गया कि चबूतरे को नई पटरियों के बीच से स्थानांतरित कर आबंटित जमीन के दूसरे भाग में निर्माण कराया जा सकता है।
ऐसा करने से बमुश्किल रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर ही स्थित राणा सांगा के चबूतरे की देख-भाल करने वालों को जमीन खरीदनी नहीं पड़ेगी और रेलवे का जनहित में एक बड़ा काम भी हो जाएगा। साथ ही रेलवे अपने खर्चे पर राणा सांगा का भव्य मकबरा के साथ इसे केवल एक भव्य चबूतरे के साथ दूसरी जगह शिफ्ट करने पर राणा सांगा की प्रतिमा, रोशनी के लिए बिजली पार्क बनाने का 2014 के केन्द्रीय रेल बजट में प्रस्ताव भी रखा गया।
ऐसे में हम प्रधानमंत्री श्री मोदी से अनुरोध करते हैं कि वह अपने स्तर से हस्तक्षेप कर महाराणा संग्राम सिंह के साथ न्याय करते हुए इतिहास के इस महानायक की भव्य प्रतिमा लगवा कर उन्हें सम्मान देते हुए उनके वर्तमान समाधि स्थल को यहां से हटाकर अन्यत्र स्थानांतरित करने हेतु संबंधित विभागों को निर्देश जारी करें ।इतना ही नहीं हमारे इतिहास के ऐसे महानायक जहां जहां भी उपेक्षा और तिरस्कार के शिकार हैं उनके लिए भी एक समिति गठित कर दी जाए और सारे देश में ऐसे इतिहास नायकों के गौरवपूर्ण कार्यों को जनता के सामने सम्मान पूर्ण ढंग से लाने के लिए विशेष कदम उठाए जाएं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय राष्ट्रीय इतिहास पुनरलेखन समिति