गतांक से आगे….
जो गऊ हमें दूध से लगातार गोबर तक का वरदान देती है उसके शरीर पर 1 पौंड मांस की वृद्घि के लिए 5214 गैलन पानी खर्च होता है। सुअर के मांस के लिए प्रति पौंड 815 और बकरा बकरी के लिए छह सौ गैलन पानी प्रति पौंड चाहिए। सबसे अधिक ऊंट के शरीर की वृद्घि में पानी खर्च होता है, जिसें एक पौंड के लिए 8000 गैलन पानी खर्च होता है। मांसाहारियों को जो पशु सस्ता लगता है, उसके पालन पोषण में प्रकृति को किस प्रकार अपनी अमूल्य वस्तु की भेंट देनी पड़ती है, यह स्पष्ट
मांसाहार जगत की एक और शोकांतिका है कि उसके व्यापारी अपना माल अधिक से अधिक सप्लाई करने के लिए पशु पक्षियों को कृत्रिम रूप से पैदा करने के प्रयत्न में संलग्न हैं। लेकिन प्रकृति को यह स्वीकार नही है। हाइब्रिड एनीमल हर जगह देखने को मिल रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसा अनुभव मिल रहा है कि इसका प्रभाव उलटा पड़ता है और पशु पक्षी बीमारी से पीडि़त होकर करोड़ों की संख्या में मरने लगते हैं। पिछले दस साल में दो बड़ी त्रासदी देखने को मिली हैं। एक तो मेड काऊ की और दूसरी बर्ड फ्लू की। जब इन बीमारियों के भीतर झांकते हैं और परिस्थिति का विश्लेषण करते हैं तब पता लगता है कि अधिक से अधिक गाय का दूध प्राप्त करने और बड़ी संख्या में मुरगियों का व्यापार करने की ललक ने इस प्रकार की भयंकर बीमारियां पैदा कीं हैं। बर्ड फ्लू तो 2005-06 की घटना है। एक सप्ताह में भारत के कुछ ही राज्यों में 25 लाख मुरगियां मर गयीं। उनके व्यापारियों का कहना है कि उन्हें 50 हजार करोड़ रूपये का नुकसान हुआ है। यह बीमारी थाईलैंड से भारत में घुसी। थाईलैंड ने तो तुरंत दवा खोज नली और उस पर रोक लगाने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली, लेकिन भारत में ऐसा नही हो सका। यह भी एक ध्यान देने योग्य बात है कि सुनामी की लहर भी पूर्वी और दक्षिण एशिया में आती है। क्रमश:
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