सावरकर जी के त्याग की बराबरी कौन कर सकता है?
मनमोहन शर्मा
गतांक से आगे………
जहां तक अय्यर का संबंध है, उनका तो क्या, उनके पुरखों तक का देश के स्वाधीनता संग्राम से कभी कोई नाता नही रहा। जब क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे, तो मणिशंकर के पुरखे ब्रिटिश सरकार की चाकरी कर रहे थे। अय्यर कितने देशभक्त हैं, इसका पर्दाफाश विख्यात लेखक धीरन भगत ने अपनी पुस्तक में किया है। उनका आरोप है कि 1962 में जब भारत पर चीन ने हमला किया था, तब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षारत मणिशंकर ने चीनी सेना की सहायता के लिए ब्रिटेन में धन संग्रह किया था। इसलिए जब 1966 में उन्होंने भारतीय विदेश सेवा की परीक्षा दी थी तो गुप्तचर ब्यूरो ने उनकी नियुक्ति का विरोध किया था।
खास बात तो यह भी है कि जब संसद में विपक्ष मणिशंकर अय्यर की भत्र्सना कर रहा था तो माक्र्सवाद खुलकर उनकी मदद के लिए मैदान में आ गये। उन्होंने मणिशंकर अय्यर को उनके शौर्य के लिए सार्वजनिक रूप से सम्मानित करने की घोषणा कर डाली। इसे कौन नही जानता कि रूस और चीन के इशारे पर नाचने वालों की राष्ट्रवाद में भी आस्था नही रही। इन्होंने 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का डटकर विरोध किया था और सुभाषचंद्र बोस को जापानी कुत्ते तक की संज्ञा दे डाली थी। देश के विभाजन के बहुचर्चित लाहौर प्रस्ताव का उन्होंने समर्थन किया था।
1947 में जब देश आजादद हुआ तो उन्होंने इसे फ्रॉड ठहराया था और नेहरू सरकार का तख्ता पलटने के लिए इन्होंने देश में पांच स्थानों पर सशस्त्र विद्रोह शुरू कर दिया था जिसे पटेल ने सख्ती से दबा दिया। 1962 में जब चीन ने भारत पर धावा बोला, तो कम्युनिस्टों ने चीन को आक्रांता तक मानने से इनकार कर दिया था। इसलिए कम्युनिस्ट पार्टी में विभाजन हुआ और चीन समर्थकों ने माक्र्सवादी पार्टी बना डाली। आज यही चीन प्रेमी रिमोट कंट्रोल से मनमोहन सरकार चला रहे हैं।
खेद है कि विश्व के महानतम क्रांतिकारियों के सिरमौर विनायक दामोदर सावरकर के बारे में देश की नयी पीढ़ी नही जानती, इसलिए उनके यशोमय जीवन पर भी प्रकाश डालना जरूरी है। उनका जन्म 28 मई, 1883 में नासिक जिला के भगूर नामक गांव में हुआ था। किशोर काल में उन्हेांने पुणे में भाषण देते हुए नारा दिया-स्वतंत्रता साध्य और सशस्त्र क्रांति साधन है, उन्होंने विदेशी माल जलाने का अभियान चलाया। इस पर उन्हें कॉलेज से निष्काषित कर दिया गया। इसके बाद वह मुंबई चले गये। इसी दौरान उन्हें यह जानकारी मिली कि एक राष्ट्रभक्त श्याम जी कृष्ण वर्मा लंदन में भारत की आजादी का अभियान चला रहे हैं। वह भारत के राष्ट्रभक्त युवकों को ब्रिटेन में अध्ययन प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति भी देते हैं। लोकमान्य तिलक की सिफारिश पर वह छात्रवृत्ति पाकर लंदन चले गये। वहां पर श्याम जी कृष्ण वर्मा द्वारा संचालित इंडिया हाउस क्रांतिकारी तैयार करने का केन्द्र बन गया था, वहीं सावरकर भी ठहरे। क्रमश: