घोषित एजेंडा पर ही काम करता रहेगा संघ परिवार
अवधेश कुमार
बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अजेंडा हमेशा से गहन चर्चा का विषय रहा है। चूंकि केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है और अनेक राज्यों में भी वह शासन में है, इसलिए यह समझना जरूरी है कि आने वाले समय में सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर उनका अजेंडा क्या होगा। जब तक मोदी सरकार नहीं आई थी तब तक आम धारणा यही थी कि बीजेपी सत्ता में भले आए, पर वह हिंदुत्व और हिंदुत्व केंद्रित राष्ट्रीयता के मुद्दे पर आगे न बढ़ कर मध्यमार्गी रास्ता अपनाएगी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आरंभिक तीन वर्षों में उन्होंने भी मध्यमार्गी रास्ता ही अपनाया। लेकिन इसके बाद की अवधि में मोदी सरकार और बीजेपी शासित राज्य सरकारों को देखें तो साफ हो जाता है कि विचारधारा को लेकर जो हिचक दिखाई देती थी, वह अतीत की बात हो चुकी है।
मंदिर का उद्देश्य
अभी ये सरकारें साहस के साथ वैसे कदम उठा रही हैं जिनकी चाहत संघ परिवार के एक-एक कार्यकर्ता और समर्थक के अंदर सालों से कायम रही है। समय और संयोग भी उनका साथ दे रहा है। उदाहरण के लिए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता उच्चतम न्यायालय ने साफ कर दिया। इसके पूर्व तीन तलाक को अपराध करार देने के कानून का आधार भी न्यायालय के फैसले ने ही प्रदान किया। अयोध्या पर न्यायालय के फैसले के बाद पूरा संघ परिवार मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को अपनी सोच के अनुसार आगे बढ़ा रहा है। संपूर्ण देश को इससे जोड़े रखने की कोशिशों का अर्थ समझना कठिन नहीं है। संघ का मानना रहा है कि अपने अजेंडे का कोई भी काम तभी सफल होगा, जब उसके लिए अनुकूल माहौल निर्मित कर लिया जाए।
राम मंदिर संघ के लिए हिंदुओं के पुनर्जागरण और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का लक्ष्य हासिल करने का एक महत्वपूर्ण चरण रहा है। साफ है कि आने वाले समय में मंदिर का निर्माण पूरा होने तक ऐसे अभियान और कार्यक्रम चलते रहेंगे जिनसे भारत सहित संपूर्ण विश्व में फैले हिंदुओं के अंदर हिंदुत्व चेतना जागृत रहे। यद्यपि बीजेपी की घोषणा रही है कि मथुरा और काशी उसके अजेंडे में नहीं हैं लेकिन संघ और उससे जुड़े संगठनों को कभी यह बताने में हिचक नहीं हुई कि अयोध्या के बाद अगला लक्ष्य मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि और काशी में श्री विश्वनाथ की मुक्ति है। मथुरा से संबंधित मामले न्यायालय में आ चुके हैं। आश्चर्य नहीं होगा अगर आने वाले समय में मथुरा की तरह ही काशी विश्वनाथ और संपूर्ण भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में छोटे-बड़े मंदिरों का मामला न्यायालयों में डाला जाए।
अपने आस्था केंद्रों के प्रति लोगों में गहरा लगाव होता है। मूल बात है उनके अंदर यह भाव पैदा करना कि आस्था केंद्रों पर चोट पहुंचाई गई, उनको तोड़ा गया, दूसरे मजहब के केंद्र बनाए गए और उन सबको मुक्त कराना हमारा धर्म है। संघ धीरे-धीरे लोगों के अंदर ये भावनाएं पैदा करने में सफल हुआ है। उनके अंदर यह विश्वास कायम हो रहा है कि बीजेपी सत्ता में रहेगी तो आस्था केंद्रों की मुक्ति का रास्ता आसान होगा। इस भावना को और प्रबल बनाना संघ और बीजेपी के एजेंडे में है। बीजेपी की ज्यादातर राज्य सरकारों ने गोवंश हत्या निषेध और लव जिहाद को रोकने के आशय वाले कानूनों का निर्माण किया है। राजनीति की मांग है कि आप ऐसे काम चुपचाप न करके ऐसे प्रचार के साथ करें कि लोगों का समर्थन आपको मिले तथा विपक्ष को मजबूर होकर इन सबका विरोध करना पड़े या वह चुप रहने को मजबूर हो जाए। दोनों ही स्थितियां बीजेपी के लिए अनुकूल होती हैं।
जहां विपक्ष ने विरोध किया वहां यह उनको कटघरे में खड़ा करती है और जहां विपक्ष चुप रहता है, वहां यह बताती है कि देखो इनका दोहरा चरित्र। संघ अपनी स्थापना के समय से ही हिंदू राष्ट्र की बात करता है। हिंदू राष्ट्र के बारे में आम धारणा यही है कि एक दिन बीजेपी की केंद्र सरकार संविधान में सेकुलर की जगह हिंदू राष्ट्र शब्द डाल देगी। तिरंगा झंडा की जगह भगवा ध्वज आ जाएगा और यहां दूसरे मजहबों के लिए आजादी नहीं होगी। यह धारणा सच नहीं है। संघ परिवार या बीजेपी हिंदू राष्ट्र को संविधान का अंग बनाने की बात नहीं करती। उनका मानना है कि भारत हिंदू राष्ट्र था, है और रहेगा। यह सेकुलर देश इसीलिए बना क्योंकि यह हिंदू राष्ट्र था। इसे न समझ पाने के कारण ही संघ और बीजेपी के अजेंडों के ज्यादातर विश्लेषण सही साबित नहीं होते।
वैसे अगर मध्यकाल में ध्वस्त मंदिरों का निर्माण न्यायालयों के फैसलों से हो सकता है, कश्मीर को अनुच्छेद 370 से हासिल विशेष दर्जा संसद के द्वारा समाप्त किया जा सकता है, तीन तलाक के विरुद्ध कानून पारित हो सकता है, राज्यों के स्तर पर गोवंश वध निषेध, धर्म परिवर्तन विरोधी या लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाए जा सकते हैं, तो संविधान में हिंदू राष्ट्र लिखने की आवश्यकता ही कहां है। आम अनुमान यह है कि बीजेपी अब समान नागरिक संहिता की ओर बढ़ेगी। समान नागरिक संहिता सिविल क्षेत्र का मामला है जिसमें विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेना आदि विषय आते हैं।
समान नागरिक संहिता
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बिंदुओं का विस्तार से उल्लेख कर वेबसाइट पर लोगों से राय मांगी थी। कभी भी उसे देश के सामने लाया जा सकता है और संसद में पारित करने की कोशिश भी हो सकती है। संसद में अनुच्छेद 370 की मौत हो सकती है और तीन तलाक को अपराध बनाने वाला कानून बन सकता है तो समान नागरिक संहिता भी पारित हो सकती है। एक समूह इसे लेकर चाहे जितनी चिंता प्रकट करे, देश का माहौल इन सबके अनुकूल बना हुआ है। संघ परिवार और बीजेपी इस दिशा में जितना प्रखर होकर चलेंगे, यह माहौल ज्यादा मजबूत होगा और उनका समर्थन बढ़ेगा। उनके लिए समस्या तब होगी जब वे इन सबसे पीछे हटने की कोशिश करेंगे।