लखनऊ। लोकसभा चुनाव में नारेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी के साथ एक नाम अरविन्द केजरीवाल का भी हैं जिनका मुकाबला चुनाव के दौरान देखने को मिलेगा। इन तीनों की नजर केन्द्र की सत्ता पर है। बीच बीच में तीसरा मोर्चा अपनी उपस्थित दर्ज करवाता रहता है। लेकिन इनके बीच कांग्रेस आज भी सबसे अलग है भले ही वह निराश व हताश हैं लेकिन राहुल गांधी आज भी किसी जादू की आस लगाये बैठे है। वह लगभग सभी रैलियों में संप्रग की उपलब्धियों का बयान करने से नही थकते है। जिसमें भोजन का अधिकार और गैस के तीन सिलेण्डर (जो पहले के कोटे से कम किए गये थे) देना आदि आदि का बखान कर तो रहे है जबकि कांग्रेस खुद ही आक्सीजन के डबल सिलेण्डर पर चल रही है। क्या कभी उसने सोचा कि आजादी के 67 साल बाद, इन वर्षो में सबसे अधिक कांग्रेस का ही शासन रहा है। इस अवधि में उसने क्या किया? जो अब देश को पेट भर भोजन देकर अपनी हारी हुई बाजी जीतने का प्रयास कर रही है। राहुल गांधी अभी कई अध्यादेशों की बात कर रहे है। आज कल चर्चा है कि भ्रष्टाचार से जुडे तमाम प्रकरण जिनपर संसद में सुनवाई नहीं हो सकी है उन्हें अब भ्रष्टाचार निवारण कानून में संशोधन और न्यायिक उत्तर दायित्व जैसे विषय एवं शारीरिक अक्षमता वाले लोगों का सरकारी सेवा में कोटा बढ़ाना आदि विषयों पर चर्चा करने के लिए सरकार विशेष सत्र बुला सकती है। लेकिन आज तक का सच यह भी है कि पिछले दस वर्षो की संप्रग वन व टू के कार्यकाल में चौतरफा मंहगाई के हमले होते रहे है। संप्रग में यदि किसी प्रकार की तरक्की हुई है तो वह केवल एक मात्र मंहगाई हैं जिसमें दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हुई है। संप्रग ने कभी जनता के हितो की परवाह नही की और अपने मंत्रियों पर लगे तमाम घोटालों, अनेक आरोंपो के बाद भी किसी मस्त हाथी की तरह आगे बढ़ती रही। कामनबेल्थ गेम, टू जी, विक्लांगों के मामले में सलमान खुर्शीद का घोटाला, देश के दामाद रार्बट वाड्रा सहित तमाम आरोंपों से घिरी सरकार कहीं से भी मानने को तैयार नहीं थी कि कहीं कोई गडबड है। आये दिन डीजल पैट्रोल के दाम बढने से आटो, टैम्पों का किराया बढा जिससे अभी तक जनता परेशान है। जिसमें मध्यम वर्गीय व गरीब परिवार अधिक प्रभावित हुए है। इन सबके बावजूद भी संप्रग सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए मुस्कुराहट बिखेरते रहते है। लेकिन बनते बिगडते समीकरणों के बीच ताजा हालात में वरीष्ठ नेता जगदम्बिका पाल भाजपा के साथ जाना चाह रहे है। पूर्व मुख्यमंत्री उ0प्र0 वीर बहादुर सिंह के पुत्र जितेन्द्र बहादुर सिंह बकायदा भाजपा में शामिल हो गये है और उधर कारपोरेट घराने के एक वर्ग का समर्थन भी भाजपा को मिल सकता है। लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान भी एक बार फिर भाजपा से गले मिल रहे है। जबकि संप्रग का मुख्य सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी बहुत पहले ही किनारा कर चुकी है और अब वे अन्ना हजारे के साथ खड़ी नजर आती है और अन्ना भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते। कल तक कांग्रेस के साथ रहे मुलायम व जयललिता भी तीसरे मोर्चे में झांक रहे है। राजद (लालू यादव) भी टूट के कगार पर हैं उनके साथी भी अपना रास्ता चुन सकते है। दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लाख समझाने के बाद भी बदजुबानी के मामलें में नेता एक दूसरे की टांग खीच रहे है। सलमान खुर्शीद का मोदी को नपुंसक कहना, से लेकर बेनी प्रसाद वर्मा व दिग्बिजय सिंह आदि ऐसे नाम है जो अनर्गल बयान देकर कांग्रेस के किए धरे पर पानी फेरते रहते है ऐसे में कांग्रेस का रुतबा कैसे कायम रह पायेगा? क्या अकेला चना भाड फोड पायेगा? उ0प्र0 में तो कांग्रेस कहीं से फाइट में नहीं है सहां सपा और भाजपा से भी टक्कर है। इसी के चलते सपा सरकार करोड़ों रुपये की योजनाये घोषित कर चुकी है। जिनका कोई छोर नही है। सरकार ने लोकसभा वुनाव पूर्व आखिरी कैविनेट में ढेरों फैसले लिए हैं वैसे यहां कांग्रेसी क्षेत्रीय स्तरों पर बैठके कर रहे है लेकिन वहां अपनी ढपली आपना राग वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। क्योंकि शायद वह भी भविष्य जानते है ऐसे में राहुल गांधी का जोश व उत्साह काबिले तारीफ है। अब देखना है कि भविष्य किस पर मेहरबान होता है?