कश्मीर की केसर की महक अब देश दुनिया को महकाएगी
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
केसर की खेती बड़ी मेहनत का काम है। कश्मीरी केसर को कश्मीरी मोगरा के नाम से जाना जाता है और सामान्यतः 80 फीसदी फसल अक्टूबर-नवंबर में तैयार हो जाती है। केसर के नीले-बैंगनी रंग के कीपनुमा फूल आते हैं और इनमें दो से तीन नारंगी रंग के तंतु होते हैं।
आतंकवादी गतिविधियों और अशांति का प्रतीक बनी कश्मीर की वादियों की केसर की महक अब देश-दुनिया के देशों में महकेगी। पिछले दिनों यूएई भारत खाद्य सुरक्षा शिखर सम्मेलन में कश्मीरी केसर को प्रस्तुत किया गया है और यूएई में जिस तरह से कश्मीरी केसर को रेस्पांस मिला है उससे आने वाले दिनों में पश्चिम एशिया सहित दुनिया के देशों में कश्मीरी केसर की अच्छी मांग देखने को मिलेगी। कश्मीरी केसर का दो हजार साल का लंबा इतिहास है और इसे जाफरान के नाम से भी जाना जाता है और खास बात यह है कि केसर को दूध में मिलाकर पीने के साथ ही दूध से बनी मिठाइयों में उपयोग और औषधीय गुण होने के कारण इसकी बहुत अधिक मांग है। जानकारों का कहना है कि केसर में 150 से भी अधिक औषधीय तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर, आर्थराइट्स, अनिद्रा, सिरदर्द, पेट के रोग, प्रोस्टेट, कामशक्ति बढ़ाने जैसे अनेक रोगों में दवा के रूप में उपयोग किया जाता है। प्रेगनेंट महिलाओं को गोरा बच्चा हो इसके लिए केसर का दूध पीने की सलाह भी परंपरागत रूप से दी जाती रही है। यों भी कहा जा सकता है कि मसालों की दुनिया में केसर सबसे महंगे मसाले के रूप में भी उपयोग होता है।
कश्मीर में केसर की खेती को पटरी पर लाने के प्रयासों में तेजी लाई गई है। पिछली जुलाई में ही कश्मीर की केसर को जीआई टैग यानी भौगोलिक पहचान की मान्यता मिल गई है। दरअसल आतंकवादी गतिविधियों के चलते कश्मीर के केसर उत्पादक किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है। कश्मीर के केसर की दुनिया में अलग ही पहचान रही है। पर आंतकवाद के कारण केसर के बाग उजड़ने लगे तो दुनिया के देशों में कश्मीर के नाम पर अमेरिकन व अन्य देशों की केसर बिकने लगी। कश्मीर की केसर को सबसे अच्छी और गुणवत्ता वाली माना जाता है। हालांकि ईरान दुनिया का सबसे अधिक केसर उत्पादक देश है। वहीं स्पेन, स्वीडन, इटली, फ्रांस व ग्रीस में भी केसर की खेती होती है। पर जो कश्मीर के केसर की बात है वह अन्य देशों की केसर में नहीं है। केसर को जाफरान भी कहते हैं और खास बात यह है कि केसर का पौधा अत्यधिक सर्दी और यहां तक की बर्फबारी को भी सहन कर लेता है। यही कारण है कि कश्मीर में केसर की खेती परंपरागत रूप से होती रही है। पर आतंकवादी गतिविधियों और अशांति के कारण केसर की खेती भी प्रभावित हुई और केसर के खेत बर्बादी की राह पर चल पड़े।
यह तो सरकार ने जहां एक और कश्मीर में शांति बहाली के प्रयास तेज किए उसके साथ ही कश्मीर की केसर की खेती सहित परंपरागत खेती और उद्योगों को बढ़ावा देने के समग्र प्रयास शुरू किए। सरकार ने केसर के खेती को प्रोत्साहित करने और कश्मीर में 3715 हैक्टेयर क्षेत्र को पुनः खेती योग्य बनाने के लिए 411 करोड़ रु. की परियोजना स्वीकृत की जिसमें से अब तक 2500 हैक्टेयर क्षेत्र का कायाकल्प किया जा चुका है। माना जा रहा है कि इस साल कश्मीर में केसर की बंपर पैदावार हुई है। दरअसल कश्मीर की केसर के नाम पर अमेरिकन केसर बेची जाती रही है। कश्मीर में पुलवामा, पांपोई, बड़गांव, श्रीनगर आदि में केसर की खेती होती है। एक मोटे अनुमान के अनुसार 300 टन पैदावार की संभावना है तो कश्मीर की केसर बाजार में एक लाख साठ हजार से लेकर तीन हजार रुपए प्रतिकिलो तक के भाव मिलने से किसानों को इसकी खेती में बड़ा लाभ है।
हालांकि केसर की खेती बड़ी मेहनत का काम है। कश्मीरी केसर को कश्मीरी मोगरा के नाम से जाना जाता है और सामान्यतः 80 फीसदी फसल अक्टूबर-नवंबर में तैयार हो जाती है। केसर के नीले-बैंगनी रंग के कीपनुमा फूल आते हैं और इनमें दो से तीन नारंगी रंग के तंतु होते हैं। मेहनत को इसी से समझा जा सकता है कि एक मोटे अनुमान के अनुसार करीब 75 हजार फूलों से 400 ग्राम केसर निकलती है। इसे छाया में सुखाया जाता है। सरकार ने हालिया दिनों में इसकी ग्रेडिंग, पैकेजिंग आदि की सुविधाओं के लिए पंपोर में अंतरराष्ट्रीय स्तर का पार्क विकसित किया है। इस पार्क में केसर को सुखाने और पैकिंग के साथ ही मार्केटिंग की सुविधा भी है जिससे केसर उत्पादक किसानों को सीधा लाभ मिलने लगा है।
आतंक का पर्याय बने कश्मीर के लिए इसे शुभ संकेत ही माना जाएगा कि कश्मीर पटरी पर आने लगा है और कश्मीरी केसर को जीआई टैग मिलने से विशिष्ट पहचान मिल गई है। केसर के खेतों के कायाकल्प करने के कार्यक्रम को तेजी से क्रियान्वित किया जाता है और पंपोर के केसर पार्क को सही ढंग से संचालित किया जाता है तो कश्मीर की केसर का ना केवल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि केसर उत्पादक किसानों को नई राह मिलेगी, उनकी आय बढ़ेगी और इस क्षेत्र के युवा भी प्रोत्साहित होंगे। पुलवामा जो आतंकवादी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र रहा है वहां के युवा देशविरोधी गतिविधियों से हटकर नई सोच के साथ विकास की धारा से जुड़ेंगे। अब साफ होने लगा है कि इसी तरह से समग्र प्रयास जारी रहे तो आने वाले दिनों में कश्मीर की वादियों की केसर की महक दुनिया के देशों में बिखरेगी और कश्मीर की केसर की मांग बढ़ेगी जिसका सीधा लाभ केसर उत्पादक किसानों को होगा तो कश्मीर की पहचान केसर के नाम पर होगी।