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महत्वपूर्ण लेख

अपने ही देश में बेगाने हिंदू

सचिन शर्मा
कांग्रेसनीत संप्रग -2 सरकार व छद्म सेक्यूर पार्टियों ने लगता है कि देश से हिंदुओं के सफाये का मन पूरी तरह बना लिया है। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तमाम हिंदू विरोधी कार्य किये गये मसलन दंगा रोधी बिल, कश्मीर घाटी से पंडितों की वापसी का प्रयास न करना, असम व पूर्वोत्तर के राज्यों में आ रही बांग्लादेशियों की बाढ़ पर शातिराना मौन, इस्लामिक आतंकवाद के सापेक्ष भगवा आतंकवाद को खड़ा करना, समान नागरिक संहिता कानून लागू न करना, नीतियों में हिंदू-मुस्लिम में भेदभाव करना, प्रधानमंत्री का संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला हक बताना, अल्पसंख्यकों की सही परिभाषा आजादी के 64 साल के बाद भी तय न हो पाना व जेलों से मुस्लिम आतंकियों को छोडऩे का प्रयास करना आदि आदि।
15 अगस्त 1947 में जब हमारा देश आजाद हुआ था तब किसी ने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि छोटे-छोटे मुद्दों पर तुष्टीकरण करने वाले हमारे नेता इतना गिर जायेंगे कि बहुसंख्यक समुदाय को ही नजरअंदाज करना शुरू कर देंगे। गनीमत ये रही कि इसी कांग्रेस में सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा शेरदिल व्यक्ति था जिसने देश को कई खंडों में बंटने से बचा लिया, अगर नेहरू की चली होती तो आज भारत कई खंडों में बंटा हुआ कई राष्ट्रों का एक समूह मात्र होता। कितने शर्म की बात है कि जब पटेल साहब ने नेहरू को सोमनाथ मंदिर के भूमिपूजन के लिये आमंत्रण दिया था तो नेहरू ने बहाना बनाकर वहां आने से मना कर दिया था, शायद उन्हें डर था कि कहीं उनकी छवि कटटर हिंदू की न बन जाये। उनकी वहीं सोच आज कांग्रेसी नेताओं में विस्फोटक रूप ले चुकी है। कांग्रेस की घटिया नीतियों का आलम यह है कि आज अपने ही देश में हिंदू खौफ के साये में जी रहे हैं। कांग्रेस ने शुरू से ही घटिया वोटबैंक की नीति के तहत मुस्लिमों का तुष्टीकरण किया और उनकी सभी जायज व नाजायज मांगों को माना, उदाहरण के रूप में शाहबानो प्रकरण को लिया जा सकता है जिसमें तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने कटटर मुस्लिमों के डर से सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बदल दिया था। हिंदुओं के लिये हिंदू मैरिज एक्ट बनाया लेकिन मुस्लिमों को शरीयत के अनुसार रहने की छूट दे दी। जिसमें मुस्लिमों को तीन बीवियों को रखने की छूट है। सवाल ये उठता है कि हिंदुओं में भी जब प्राचीन काल से बहु पत्नी प्रथा चलन में है, हमारे राजा महाराजा व स्वयं देवताओं की भी कई स्त्रियों से शादी का उदाहरण मिलता है तक कांग्रेस ने हिंदुओं के लिये ही कानून बनाने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई? कांग्रेस अगर चाहती तो समान नागरिक संहिता का कानून देश के आजाद होते ही पारित कर सकती थी, लेकिन उसने मुस्लिमों की नाराजगी के डर से ऐसा नहीं किया। आज एक देश में दो समुदाओं के लिये शादी के कानून अलग-अलग हैं। ठीक इसी प्रकार पवित्र कुरान में साफ साफ लिखा है कि मुस्लिमों की हज यात्रा तभी फलित होगी जब वह बगैर किसी मदद के करी जाये तो फिर सरकार ने किस आधार पर मुस्लिमों को हज यात्रा के लिये सब्सिडी दी। यहीं नहीं बात बात पर शरीयत व धर्म में हस्तक्षेप बर्दाश्त न कर आक्रामक होने वाला मुस्लिम समुदाय इस मामले पर शातिराना मौन साधे है, आखिर क्यों? क्या अब शरीयत आड़े नहीं आ रहा है। कांग्रेस की ढिलाई का नतीजा है कि जिस मुस्लिम समुदाय को हिंदुओं ने देश में रहने दिया व सारी सुविधाये दीं, उस समुदाय का छुटभैय्या मुस्लिम नेता ओवैसी संपूर्ण हिंदुओं के सफाये का ऐलान करता है और कांग्रेस व छद्म सेक्यूर दल शातिराना मौन साध जाते हैं जबकि होना तो ये चाहिये कि जो भी इस प्रकार का दुस्साहस करे उस व्यक्ति को आजीवन के लिये जेल में सड़ाया जाये। कल्पना कीजिये कि यही बयान अगर विहिप, आरएसएस या अन्य हिंदू संगठनों की तरफ से आया होता तो भारत तो छोड़ो अमेरिका भी लोकतंत्र व मानवाधिकार की दुहाई देने लगता। समूचे मुस्लिम राष्ट्रों से विरोध की आवाजें सुनायी देने लगतीं, खैर ये तो हुयी विदेश की बात, भारत में ही मुस्लिम समुदाय इतना आक्रामक है और चूंकि उसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है तो वह खुद सड़क पर उतरकर विरोध करता और देश में दंगे जैसी स्थिति पैदा कर देता। लेकिन इस मुद्दे पर भी कांग्रेस ने शातिराना मौन साध लिया। दुर्भाग्य की बात है कि आज सेक्यूलर होने का मतलब मात्र हिंदू विरोध या मोदी विरोध रह गया है।
अब बात करते हैं, संप्रग-2 सरकार का सबसे महत्वपूर्ण व दुलारे लक्षित सांप्रदायिक हिंसा बिल की। इस बिल को भी बड़े ही शातिराना ढंग से तैयार किया गया है जिसमें यह पहले से ही मान लिया गया है कि बहुसंख्यक हिंदू ही दंगे की शुरुआत करता है और तो और जिन जगहों पर हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां पर यह बिल मौन साध जाता है, मसलन जम्मू-कश्मीर व भारत के अन्य क्षेत्र। मतलब साफ है कि कांग्रेस की यह पूरी प्लानिंग है कि कैसे हिदुओं का मनोबल तोड़ा जाये। और यह समुदाय गुलामी के उस दौर में वापस आ जाये जिसकों उसने अपने पराक्रम से हासिल किया है। आखिर क्या चाहती है कांग्रेस ? क्या है उसकी मंशा? मुजफ्फरनगर दंगों में वोटबैंक साधने के लिये नेताओं ने लाइन लगा दी, पर मजाल है कि कोई नेता कश्मीरी पंडितों के अभावग्रस्त, गंदगी से बजबजाते कैंपों में जाने की जहमत भी उठा ले। यही नहीं जब गोधरा कांड हुआ था तक लालू यादव जो कि तात्कालीन रेलमंत्री थे, उन्होंने फौरी तौर पर इस जघन्य आपराधिक व शातिर वारदात पर यह फरमाया था कि ट्रेन के डिब्बों में कारसेवकों ने भीतर से आग लगायी थी। उनका ये बयान न केवल हास्यास्पद था बल्कि शर्मनाक भी था। इसके उलट यहीं कांड अगर मुस्लिम समुदाय के साथ होता तो क्या लालू ऐसे ही बयान देने की मजाल कर पाते। अखिर सभी पार्टियां हिंदुओं के साथ ऐसा भेदभाव क्यों करती है। अगर मूल में जाये तो पायेंगे कि इस समस्या की मूल में हिंदू समुदाय का वोटबैंक नहीं होना व टुकड़े में बंटा होना है।
कांग्रेस ने विभाजनकारी नीति के तहत ही न केवल मुस्लिमों की नाजायज मांगों को माना वरन हिंदुओं को भी खंड-खंड करने व टुकड़ों में वोट लेने के लिये अलग अगल जातियों को अलग-अलग सुविधायें दीं।
जैसे दलितों के लिये फलां-फलां, पिछड़ों के लिये फलां-फलां, सवर्णों के लिये फलां-फलां जिसके हिंदू कभी एकजुट न हो पायें। लेकिन चूंकि मुस्लिम थोक वोट बैंक है इसलिये इस समुदाय के मामले में संपूर्ण मुस्लिम समुदाय के लिये योजनायें बनती हैं। ठीक इसी प्रकार आरक्षण का मुददा है, इस मामले में भी अगर देखा जाये तो 10 साल के लिये बनाया गया आरक्षण आज 60 सालों से खत्म नहीं किया जा सका है। यहां भी कांग्रेस की घटिया वोटबैंक की पॉलिसी काम करती दिखायी देती है। आरक्षण मामले में लोगों को लॉलीपाप देने के बजाय देखना चाहिये कि कितने लोगों को इसका फायदा मिला और जो लोग क्रीमीलेयर में आते हैं, उन्हें इसका फायदा तत्काल प्रभाव से बंद करना चाहिये जिससे वंचित लोग आरक्षण का लाभ ले सकें। दूसरी बात टुकड़ों में आरक्षण देने के बजाय सरकार गरीबों को आरक्षण देने की व्यवस्था क्यों नहीं करती। उसमें गरीब मुस्लिमों को आरक्षण दिया जा सकता है। कांग्रेस ने अपनी शातिराना चाल से हिंदुओं को कहीं का नहीं छोड़ा है। असम व पूर्वोत्तर के राज्यों में जनसांख्कीय असंतुलन पर भी संप्रग सरकार का शातिराना मौन कायम है। अगर यहीं हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जायेंगे। लेकिन किसी भी पार्टी को इस बात कि चिंता नहीं है। सभी दलों को ये बात समझना चाहिये कि अगर देश में हिंदू अल्पसंख्यक हो गये तो न केवल लोकतंत्र पर खतरा पैदा हो जायेगा वरन् संपूर्ण धरती का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा। खुद भारत में ही गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जायेगी। इसका उदाहरण हमें मुस्लिम देशों से मिल सकता है जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करते हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश इसकी बानगी बार बार पेश करते रहते हैं। देश को सबसे अधिक टैक्स भी हिंदू समुदाय देता है लेकिन बदले में उसे क्या सुविधाये मिलती हैं? क्या हिंदू समुदाय इसलिये टैक्स देता है कि उसके पैसे का उपयोग मुस्लिमों की हज सब्सिडी पर खर्च किया जाये?
सरकार मानसरोवर करने वाले या अन्य धार्मिक यात्रा करने वाले हिंदुओं को भी क्या यहीं सुविधाये देती है? अल्पसंख्यक मामले में भी कांग्रेस का शातिराना चेहरा सामने आता है। यहां सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि सही मायने में अल्पसंख्यक कौन है, क्या मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं? जो समुदाय सही मायने में अल्पसंख्यक हैं, वह कभी सरकार से सुविधा नहीं मांगता। सरकार उसे देना भी नहीं चाहती, क्यों? क्योंकि उसकी आबादी सरकार बनवाने के लिये काफी नहीं है। उदाहरण के लिये सिख, जैन, ईसाई, पारसी, यहूदी आदि अल्पसंख्यक हैं लेकिन ये सरकार से कोई फरमाइश नहीं करते बल्कि देश के विकास मे अपना योगदान देते हैं। सिख समुदाय अपनी कर्मठता के लिये जाना जाता है, अपनी देशभक्ति का उदाहरण उसने सेना में शामिल होकर और भारत मां के लिये जान देकर दिखायी है। देश को भरपूर टैक्स भी ये समुदाय देता है। इसी प्रकार जैन, ईसाई, पारसी व यहूदी भी देश के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। फिर सिर्फ मुस्लिमों पर ही केंद्र सरकार की मेहरबानी का क्या कारण है। इसका मूल कारण है मुस्लिमों का थोक वोटबैंक व भरपूर आबादी होना। क्या 20 करोड़ की आबादी अल्पसंख्यक मानी जा सकती है, उसमें भी बांग्लादेशियों को गिन लिया जाये तो आबादी तकरीबन 25 करोड़ के आसपास होगी। अब इसमें पांच करोड़ और जोंड़ दें तो करीब 30 करोड़ की आबादी अमेरिका की है। जो क्षेत्रफल के लिहाज से भारत का तकरीबन तिगुना राष्ट्र है। क्या जब मुस्लिम हिंदुओं के बराबर आबादी कर लेंगे, तभी उनसे अल्पसंख्यक का तमगा छिनेगा? ठीक इसी प्रकार रामसेतु तोडऩे की हिमाकत भी इसी कांग्रेसनीत संप्रग ने की। क्या इस पार्टी में इतनी हिम्मत है कि अवैध स्थानों पर बनी मस्जिदों व मकबरों को हाथ भी लगाये। क्या कांग्रेस इस देश को गृह युद्ध में ढकेलना चाहती है? हिंदुओं का मनोबल तोडऩे के लिये ही सारी पार्टियां गुजरात के मुख्यमंत्री व पीएम पद के दावेदार मोदी के विरोध में सिर के बल खड़ी हो गईं हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि क्षणिक स्वार्थ के लिये ये छद्म सेक्यूलर हिदू नेता देश को बलि चढ़ाने पर लगे हैं। वह जिस भस्मासुर को पैदा कर रहे हैं वह एक दिन उन्हें ही दौड़ा-दौड़ा कर मारेगा। तब शायद अनकी आंखें खुलेंगी, लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी। लेकिन जैसे हर रात की सुबह होती है इस देश के सौभाग्य की भी सुबह होगी और तब शायद हिंदू भी अपने देश में चैन से रह पायेगा।

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