रक्षा क्षेत्र में तेजी से आत्मनिर्भर होता जा रहा भरत

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आशीष कुमार

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने ठीक ही उम्मीद जताई है कि तेजस कार्यक्रम भारत के एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग का पूरा इकोसिस्टम बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

वायुसेना के लिए 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस की खरीद को सरकार द्वारा दी गई मंजूरी मौजूदा हालात में कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। देश के अंदर निर्मित तेजस विमान खरीदने का यह 48,000 करोड़ रुपये का सौदा घरेलू रक्षा उद्योग के लिए संजीवनी साबित हो सकता है। देश के अंदर रक्षा खरीद का यह अब तक का सबसे बड़ा सौदा है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने ठीक ही उम्मीद जताई है कि तेजस कार्यक्रम भारत के एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग का पूरा इकोसिस्टम बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

ध्यान रहे कि इस ऑर्डर को पूरा करने के क्रम में डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से जुड़ी देश की करीब 500 छोटी-बड़ी कंपनियां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (हाल) के साथ मिलकर काम करेंगी। स्वाभाविक रूप से यह फैसला इन क्षेत्रों को नए जोश से भर सकता है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ने में भी इससे मदद मिलेगी। हालांकि इस विमान को बनाने में हमारी प्रगति कितनी धीमी रही है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि देश के अंदर लड़ाकू विमान बनाने का यह प्रॉजेक्ट 50 साल से ज्यादा पुराना है।
पहली बार 1969 में सरकार ने एयरोनॉटिक्स कमिटी की यह सिफारिश मंजूर की थी कि ‘हाल’ को देश में ही लड़ाकू विमान बनाने चाहिए। इसके बाद अलग-अलग कारणों और प्राथमिकताओं के चलते इस प्रॉजेक्ट पर काम चींटी जैसी रफ्तार से ही आगे बढ़ा। अस्सी के दशक में जब वायु सेना को यह महसूस हुआ कि मिग-21 पुराने पड़ते जा रहे हैं और इनकी जगह भारतीय लड़ाकू विमानों की जरूरत उसे पड़ने वाली है, तब जरूर तेजस प्रॉजेक्ट में कुछ तेजी आई।
खास बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को लेकर सचमुच गंभीर हुई है और उसने कई ऐसे फैसले किए हैं जिनसे इस दिशा में आगे बढना आसान हुआ है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले साल मई में देश के अंदर बने मिलिट्री हार्डवेयर की खरीद के लिए अलग से बजट प्रावधान करने की घोषणा की थी। रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा भी 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी कर दी गई थी। इसके अलावा ऐसे हथियारों की सालाना सूची जारी की गई जिनका आयात नहीं किया जाएगा।
इन कदमों की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि सरकार ने साल 2025 तक डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का टर्नओवर 1.75 लाख करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा है। जाहिर है, रक्षा में आत्मनिर्भरता के संकल्प से रोजगार बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को गति देने का दोहरा उद्देश्य पूरा हो सकता है। मगर सबसे बड़ी बात यह कि दोतरफा सीमा तनाव के मौजूदा माहौल ने राष्ट्र की सुरक्षा को लेकर जो अतिरिक्त चिंताएं पैदा की हैं, उनका सबसे अच्छा जवाब सैन्य जरूरतों के मामले में अधिक से अधिक आत्मनिर्भरता से ही दिया जा सकता है।

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