वनवासी भारतीय बौद्ध या हिंदू

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कई सालों से फर्जी इतिहासकारों ने एक अफवाह फैलाई हुई है कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं। सबसे पहले यह अफवाह कुछ ब्रिटिश ने फैलाई थी। गांधी के शिष्य ठक्कर बापा भी ब्रिटिश की झूठ का शिकार हो गए और उन्होने वनवासियों के लिए एक नया शब्द “आदिवासी” गढ़ा जो Tribal का विकल्प था।

अब अंबेडकरवादियों ने उसमे एक नया झूठ और जोड़ दिया कि आदिवासी बौद्ध थे। अंबेडकरवादियों से प्रमाण पुछो तो उनकी 2 प्रतिक्रियाएँ होती हैं। पहली कि एक्स ने यह लिखा है वाई ने वह लिखा है और ज़ेड ने उसका संकेत किया है। जरा सा कुरेदने पर गाली गलौच पर उतारू हो जाते हैं और 5000 साल पुराना उत्पीड़न का सर्टिफिकेट निकाल लेते हैं। एक तो ऐसे मिले कि हिला दिया। वह पेशे से वकील थे। एक जब उनसे अधिक चर्चा की तो कानून विशेष मे फँसाने की धमकी दी।

अब विचार करते हैं वनवासियों की धार्मिक मान्यताओं पर। चित्र मे भारतीय वनवासियों के अंगों पर गोदना (टैटू) के प्रारूप दिखाए गए हैं। एक 1904 मे छपी पुस्तक Tattooing in central India का चित्र है जो भारतीय वनवासी समूह के गोदने के प्रतीको को दिखाती है। इसमे राम, लक्ष्मण और सीता से संबन्धित प्रतीक हैं। यही प्रतीक एक महिला के हाथों पर भी है। तीसरा चित्र राम शब्द का है जो नेशनल जियोग्राफी से लिया है। मुंडा योद्धाओं द्वारा मुगलों को हराने की स्मृति मे मुंडा वनवासी माथे पर खड़ी रेखा का टैटू बनवाते हैं। इसे सब चित्र इनकी धार्मिक मान्यताओं को बताते हैं।

महानायक बिरसा मुंडा जी शिक्षा के लिए ईसाई बने परंतु बाद मे वैष्णव संत आनन्द पाण्डेय के सत्संग से पुनः सनातन धर्म मे दीक्षित हुए।

वैसे यह चाल नई नहीं है। 40 साल पुरानी घटना पढिए।

कार्तिक उरांव, जो वनवासियों के समुदाय से थे. झारखंड में जन्मे थे. कार्तिक मास में जन्म होने के कारण माता पिता ने उनका नाम कार्तिक रख दिया । वे कांग्रेस के नेता थे, 70 से 80 के मध्य एक बार ईसाई मिशनरी ने यह अफवाह फैलाई कि सारे आदिवासी मूलतः ईसाई हैं क्योंकि ये ही इस देश के मूल निवासी हैं और हिन्दू उन आर्यों के वंशज हैं जिन्होंने इस देश पर कब्ज़ा किया। कार्तिक उरांव ने इसका बहुत ही कड़ा और कारगर विरोध किया। उन्होंने कहा कि पहले इस बात को निश्चित करे कि बाहर से कौन आया था ? यदि हम यहाँ के मूलवासी हैं तो फिर हम ईसाई कैसे हुए क्योंकि ईसाई पन्थ तो भारत से नहीं निकला। और यदि हम बाहर से आये ईसाईयत को लेकर, तो फिर आर्य यहाँ के मूलवासी हुए। और यदि हम ही बाहर से आये तो फिर ईसा के जन्म से हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे समुदाय में निषादराज गुह, शबरी, कणप्पा आदि कैसे हुए ? उन्होंने यह कहा कि हम सदैव हिन्दू थे और रहेंगे।

उसके बाद कार्तिक उरांव ने बिना किसी पूर्व सूचना एवं तैयारी के भारत के भिन्न भिन्न कोनों से वनवासियों के पाहन, वृद्ध तथा टाना भगतों को बुलाया और यह कहा कि आप अपने जन्मोत्सव, विवाह आदि में जो लोकगीत गाते हैं उन्हें हमें बताईए। और फिर वहां सैकड़ों गीत गाये गए और सबों में यही वर्णन मिला कि यशोदा जी बालकृष्ण को पालना झुला रही हैं, सीता माता राम जी को पुष्पवाटिका में निहार रही हैं, कौशल्या जी राम जी को दूध पिला रही हैं, कृष्ण जी रुक्मिणी से परिहास कर रहे हैं, आदि आदि। साथ ही यह भी कहा कि हम एकादशी को अन्न नहीं खाते, जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा, विजयादशमी, रामनवमी, रक्षाबन्धन, देवोत्थान पर्व, होली, दीपावली आदि बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

फिर कार्तिक उरांव ने कहा कि यहाँ यदि एक भी व्यक्ति यह गीत गा दे कि मरियम ईसा को पालना झुला रही हैं और यह गीत हमारे परम्परा में प्राचीन काल से है तो मैं भी ईसाई बन जाऊंगा। उन्होंने यह भी कहा कि मैं वनवासियों के उरांव समुदाय से हूँ। हनुमानजी हमारे आदिगुरु हैं और उन्होंने हमें राम नाम की दीक्षा दी थी। ओ राम , ओ राम कहते कहते हम उरांव के नाम से जाने गए। हम हिन्दू ही पैदा हुए और हिन्दू ही मरेंगे।

अब एक नई चाल भी चली जा रही है। कार्तिक उरांव के नाम से नकली किताब छापी जा रही है जिसमे यह बताने की कोशिश है कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं। इसी तरह बिरसा मुंडा के नाम से मुंडा धर्म की कल्पना हवा मे तैर रही है। वनवासियों के धर्मांतरण को रोकने के लिए नए नए षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। स्वामी लक्ष्मणानन्द की उड़ीसा मे और शान्ति काली जी महाराज की त्रिपुरा मे ह्त्या कर दी जाती है। गुजरात के डांग मे आदिवासियों का ईसाईकरण रोकने वाले स्वामी असीमानन्द को बिना कोई अपराध के लिए वर्षों जेल मे सड़ा दिया गया। इसके विपरीत अर्बन नक्सली सुधा भारद्वाज के लिए मिशनरी एजेंट वृन्दा ग्रोवर कोर्ट मे जाती है और गिरफ्तारी रुकवा देती है।

साभार

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