गतांक से आगे………
सभी जानते हैं कि मनु से सूर्यवंश चला और उन्हीं मनु की इला नामी पौत्री से चंद्रवंश चला। मनु से इक्ष्वाकु हुए और इक्ष्वाकु की पुत्री से चंद्रवंश का मूलपुरूष पुरूरवा हुआ, अर्थात दोनों वंश एक साथ ही आरंभ हुए पर आगे चलकर दोनों की पीढिय़ों में जो घट बढ़ हुई वह बहुत ही संदेहात्मक है। युधिष्ठिर चंद्रवंश की पचास वीं पीढ़ी पर हुए। किंतु इनका समकालीन सूर्यवंशी राजा वृहदल सूर्यवंश की 92 वीं पीढ़ी में देखा जाता है। परशुराम ने सहस्रार्जुन को मारा था, जो चंद्रवंश की 19वीं पीढ़ी में हुआ था। परंतु उन्हीं परशुराम के भय से सूर्यवंश का राजा अश्मक, जो स्त्रियों में छिपने से नारीकवच भी कहलाता है, सूर्यवंश की 52वीं पीढ़ी में था। विश्वामित्र चंद्रवंश की 15वीं पीढ़ी पर थे, पर उन्होंने वशिष्ठ के लड़कों को जिस कल्माषपाद राजा के हाथ से मरवा डाला था, वह सूर्यवंश की 52वीं पीढ़ी में था। राजा सुदास सूर्यवंश की 51वीं पीढ़ी में था, पर इसका युद्घ राजा ययाति के लड़कों से हुआ था जो चंद्रवंश की छठी पीढ़ी में थे। भगीरथ सूर्यवंश की 43वीं पीढ़ी में थे, पर इन्हीं के समय में जिन जन्हू ने गंगा का पान कर लिया था, वे चंद्रवंश की आठवीं पीढ़ी में थे। सर्वकाम सूर्यवंश की पचासवीं पीढ़ी में था, पर इसने ययाति के पुत्र द्रन्हू को मारा था, जो चंद्रवंश की छठी पीढ़ी में था। इस तरह के दोनों वंशों में कोई 35पीढ़ी का अंतर पड़ता है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि वे वंशावलि नही प्रत्युत नामावलि हैं।
वैवस्वत मनु से दो वंश चलते हैं-एक अयोध्या में दूसरा मिथिला में। अयोध्यावाले वंश के रामचंद्र इक्ष्वाकु से 63 वीं पीढ़ी पर थे, पर इन्हीं के समकालीन मिथिला के राजा जनक इक्ष्वाकु से 17वीं पीढ़ी पर थे। इस से भी दोनों वंशों में 46 पीढ़ी का अंतर पड़ता है। यदि इन पीढिय़ों को सही माना जाए और सूर्य तथा चंद्रवंश को एक ही समय से चला हुआ माना जाए, तो सूर्यवंश में मनु से 63 वीं पीढ़ी पर और राजा युधिष्ठिर उन्हीं मनु की पौत्री से चलने वाले चंद्रवंश की पचास वीं पीढ़ी पर थे। कृष्णचंद्र राजा युधिष्ठिर के समकालीन थे ही, ऐसी दशा में वे रामचंद्र से तेरह पीढ़ी अर्थात कोई 325 वर्ष पूर्व के सिद्घ होते हैं और रामरावण युद्घ महाभारत युद्घ के बाद का सिद्घ होता है। ऐसी हालत में ये वंशावलियां नही कही जा सकती हैं। ये तो नामावलियां हैं और प्रसिद्घ 2 राजाओं का वर्णन करने के लिए एकत्रित की गयी हैं। चंद्रवंश का वर्णन करते हुए महाभारत में स्पष्ट लिखा है कि –
अपरे ये च पूर्वे च भारता इति विश्रुता:।
भरतस्यान्ववाये हि देवकल्पा महौजस:।।
अभूसुब्र्रहमकल्पाभ्र वहवो राजसत्तमा:।
येषामपरिमेयानि नामधेयानि नामधेयानि सर्वश:।।
तेवां तु ते यथामुख्यं कीर्तयिष्यामि भारत।
महाभागान्देवकल्पान्सत्यार्ववपरायणान।।
अर्थात राजा भरत के पीछे और पहिले देवताओं के समान महाप्रतापी ब्रह्मानिष्ठ राजा भरतकुल में हो गये हैं। वे भी सब भरत नाम से ही विख्यात थे। उनके असंख्य नाम हंै, इसलिए गिने नही जा सकते। यहां तो मुख्य मुख्य राजाओं का जो देवताओं के समान बड़े भाग्यशाली और सत्य तथा विनय से पूर्ण हो गये हैं, उन्हीं का वर्णन करते हैं। इसी तरह सूर्यवंश का वर्णन करते हुए भागवत में भी लिखा है-
श्रूयतां मानवो वंश: प्राचुर्येण परन्तप।
न शाक्यते विस्तरतो वक्तुं वर्षशतैरपि।।
अर्थात मनु के वंश को ख्ूाब सुनिये, पर विस्तार से तो उसका वर्णन सौ वर्ष में भी नही हो सकता। यहां इच्छा की गयी थी कि तेषा न: पुण्यकीर्तीनां सवयांkundini_1_75011 वद विक्रमात अर्थात सबों का वर्णन सुनाईए, किंतु सबका दर्शन अवश्य समझकर कहा गया कि सुनिये, खूब सुनिये, पर विस्तार से तो सौ वर्षों में भी नही सुनाया जा सकता। इसका तात्पर्य यही है कि प्रधान प्रधान राजाओं का ही वर्णन किया जा सकता है, सबका वर्णन नही। यह सत्य भी है। हमने अभी गत पृष्ठों में जिस चंद्रगुप्त की वंशावलि का जिक्र किया है, वहीं तक नौ हजार वर्ष की पुरानी सिद्घ होती है, जो इन वंशावलियों और ज्योतिष द्वारा निकाले गये छह हजार वर्ष के समय से ड्यौढ़ी प्राचीन है।
इस प्रकार की वंशावलियों का वर्णन किसी खानदान विशेष से संबंध रखता है, पुराणों में भी पाया जाता है। भागवत 917 में लिखा है कि ‘षष्टिर्वर्षसहस्राणि षष्टिर्वर्षशतानि च। नालर्कादपरो राजन्मेदिनी बुभुजे युवा।।’ अर्थात केवल अलर्क ने ही 66000 वर्ष राज्य किया। यह अलर्क किसी खानदान का आस्पद प्रतीत होता है। ऐसी दशा में जब एक एक खानदान नौ नौ हजार और छियासठ छियासठ हजार वर्ष राज्य करने वाला हो चुका है, तब दस बीस नामों से बनी हुई उल्टी सीधी साधारण फेहरिस्तों से आर्यों का मन्वन्तरों का और वेदों का इतिहास निकालना कैसे ठीक हो सकता है? इसलिए पौराणिक वंशावलियां जिन प्राचीन नामावलियों के आधार पर बनी हैं, उनके कुछ नमूने अब तक ब्राह्मण ग्रंथों में पाये जाते हैं। मैत्रायण्युपनिषद प्रपाठक 1 खण्ड 4 में लिखा है कि-
‘अथ किमेतैर्वापरेअन्ये। महाधनुर्धराश्चकवर्तिन: केचित सुद्यम्नभूरिद्युम्नेन्द्रद्यु म्नकुदलयाश्रवौवनभवद्युश्रया श्पति: शशविन्दुहरिश्चन्द्राअंबरी वननक्तुसर्यातियात्यनरण्याक्ष्सेनादय’ अथ मरूत्तभरतप्रभृतयो राजान:।
यह एक नामावलि है, जिसमें सूर्य और चंद्र दोनों वंशों के राजाओं के नाम आये हैं। ये सब राजा चक्रवर्ती कहे गये हैं, इसीलिए एक जगह संग्रह कर दिये गये हैं।
क्रमश:

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