मोदी जी!…..बचके रहना रे बाबा तुझपे नजर है
देश में कुछ ऐसे चेहरे हैं जो अपने किसी न किसी उल्टे सीधे बयान के द्वारा छपने को लालायित रहते हैं। इन्हीं में से एक हैं जस्टिस काटजू ,जो कि पूर्व में भी कई बार अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में बने रहे हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे मार्कंडेय काटजू ने अब प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा है। अपने इस पत्र में पूर्व न्यायाधीश ने लिखा है कि किसानों द्वारा न्यायालय के द्वारा गठित की गई समिति को नकारने के बाद सरकार को तुरंत ही कृषि कानून रद्द कर देना चाहिए। साथ ही साथ ही उच्च अधिकार प्राप्त एक किसान आयोग का गठन करना चाहिए जो किसानों की सभी समस्याओं को सुन सके और सरकार को उन समस्याओं के समाधान के लिए उचित परामर्श दे सके।
हम श्री काटजू से बहुत विनम्रता के साथ यह कहना चाहेंगे कि सरकारें कानून बनाने के लिए होती हैं । यदि सड़कों के आंदोलनों के माध्यम से देश की संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को उन जैसे व्यक्ति निरस्त कराने या वापस लेने की बात करेंगे तो इससे इस देश का संसदीय लोकतंत्र दुर्बल पड़ेगा।भविष्य में इसके बहुत भारी दुरुपयोग होंगे। तब संसद की गरिमा समाप्त हो जाएगी और लोग संसद के द्वारा बनाए गए कानूनों का मजाक सड़कों पर करते दिखाई देंगे । इसके साथ ही साथ यहां पर यह भी प्रबल आशंका है कि जो लोग आज 3 कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं ,वही कल को सीएए और एनआरसी के संबंध में भी इसी प्रकार के धरना प्रदर्शन का सहारा लेंगे और धारा 370 को फिर से लागू करवाने के लिए भी आंदोलन करेंगे। इतना ही नहीं यदि मोदी सरकार भविष्य में जनसंख्या नियंत्रण कानून लाती है या समान नागरिक संहिता को लागू कराने के संबंध में कोई कानून बनाती है और उसे संसद से पारित कराने में सफल हो जाती है तो उसका भी बड़े पैमाने पर विरोध किसानों के आंदोलन की तर्ज पर ही करवाया जाएगा । तब क्या इन सबके संदर्भ में भी काटजू जैसे लोग सरकार को यही सलाह देंगे कि इन कानूनों को ही वापस ले लिया जाए क्योंकि देश में बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है ?
पूरी संभावना है कि संसद में सरकार द्वारा अच्छे से अच्छे कार्य का विरोध करने वाले राजनीतिक दल सत्ता स्वार्थ में अंधे होकर लोगों को फिर इसी प्रकार बरगलाएंगे और सरकारों के लिए परेशानी पैदा कर अपने स्वार्थ सिद्ध करने में सफल होंगे। बात यह नहीं है कि वर्तमान कानून कितना गलत और कितना सही है ? बात यह है कि श्री काटजू के द्वारा द्वारा दिए गए सुझाव के भविष्य में क्या परिणाम हो सकते हैं?
श्री काटजू को अपनी निष्पक्षता सिद्ध करने के लिए अपने पत्र में इस पर भी टिप्पणी करनी चाहिए थी कि वर्तमान राजनीतिक दल अपनी लोकतांत्रिक मर्यादा को भूलकर जिस प्रकार किसानों को भड़का रहे हैं या देश की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले लोगों को इस आंदोलन के माध्यम से अपनी आवाज और मांग बुलंद करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं ,वह भी उचित नहीं है । यदि वह अपनी बात को इस प्रकार लिखते कि वर्तमान किसान आंदोलन अपने रास्ते से भटककर देश की एकता और अखंडता के शत्रु लोगों के हाथों में जा चुका है, इसलिए सरकार को सावधानी बरतते हुए वर्तमान में पीछे हटना चाहिए तो कहीं अधिक उचित होता। परंतु उन्होंने ऐसा न लिखकर राजनीतिक दलों की सत्ता स्वार्थ सिद्धि की नीति को अपना मौन समर्थन प्रदान किया है। उन्होंने ऐसा संकेत दिया है कि वर्तमान में केंद्र की मोदी सरकार के विरोधी राजनीतिक दल जो कुछ भी कर रहे हैं वह उचित है, जबकि उनके द्वारा ऐसा नहीं होना चाहिए था।
श्री काटजू जैसे लोग भारत देश को पिछले 70- 75 वर्ष से राजनीतिक प्रयोगशाला बनाए हुए हैं । ये लोग नए – नए प्रयोग करते हैं और इस सनातन राष्ट्र की सनातन परंपराओं को पूर्णतया नकारकर ऐसी तथाकथित अधुनातन परंपराओं को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिनसे भारत का और भारत की मौलिक चेतना का कभी कोई संबंध नहीं रहा है । जिस देश के पास में अपनी सनातन परंपराओं के माध्यम से सनातन राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक सभी प्रकार का चिंतन रहा हो, उसे नई नई प्रयोगशालाओं में बार-बार डालकर आजमाया नहीं जा सकता । क्योंकि इस प्रकार की प्रयोग करने की मूर्खताओं से राष्ट्र के समय, धन और ऊर्जा का अपव्यय होता है ।वैसे भी श्री काटजू जैसे लोगों को अपनी विचारधारा के बारे में अब तक यह निष्कर्ष निकाल लेना चाहिए था कि इस विचारधारा को संसार ने नकार दिया है।
इसके उपरांत भी हमारा यह मानना है कि भारत की कुछ पुरानी गली सड़ी परंपराओं में सुधार की आवश्यकता है न कि भारत के स्वरूप को पूर्णतया विस्मृत करने की । जबकि काटजू जैसे लोग भारत को भारत के अतीत से काटकर अपनी प्रयोगशाला में तैयार की गई नई दवाओं के माध्यम से निरोग रखने का अवैज्ञानिक और तार्किक प्रयास कर रहे हैं।
जस्टिस काटजू ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री को यह भी लिखा है कि 26 जनवरी किसानों के ट्रैक्टर मार्च को लेकर हिंसा की पूरी संभावना है । उनका कहना है कि अगर सरकार ने अभी सावधानी नहीं बरती तो 26 जनवरी को हिंसा के हालात बन सकते हैं। इस प्रसंग में भी श्री काटजू की निष्पक्षता तभी प्रकट होती जब वह यह लिखते कि देश के राजनीतिक दल विपक्ष की भूमिका के अपने राष्ट्रीय दायित्व को विस्मृत कर चुके हैं और उनके दलों के लोग किसानों के इस मार्च को हिंसक बना सकते हैं । यदि श्री काटजू को 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की पावन बेला में हिंसा की पूरी संभावना दिखाई दे रही है तो उन्हें हिंसा के लिए लालायित तत्वों की ओर भी सरकार को संकेत करना चाहिए था। इसके साथ ही वह यह भी स्पष्ट करते कि वह स्वयं हिंसा फैलाने वाले लोगों के साथ हैं या हिंसा को रोकने वाले लोगों के साथ हैं ? उन्होंने बहुत सुंदर शब्दों का प्रयोग कर अपनी स्वयं की इच्छा या समर्थन को कहीं प्रकट नहीं किया है तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि देश उनकी मानसिकता और उनके अंतर्मन की इच्छा को जान नहीं रहा है? उन जैसे लोगों से अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपने राजनीतिक शत्रु पर बड़ी सावधानी से हमला करें और अपने मंतव्य को प्रकट न होने दें परंतु इसके उपरांत भी आज 2021 के भारत में ऐसे अनेकों लोग हैं जो बोलने वाले की अंतर्मन की इच्छा को जानते हैं।
जस्टिस काटजू ने आगे लिखा है कि बड़ी संख्या में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर कैंप लगाए हैं। वह 26 जनवरी को दिल्ली में प्रवेश करने और अपने ट्रैक्टरों के साथ गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का दृढ़ संकल्प कर चुके हैं। साफ है कि सरकार द्वारा इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी और इसके परिणामस्वरूप पुलिस और अर्धसैनिक बल गोलीबारी करेंगे, जिसके बाद हिंसा हो सकती है। उन्होंने आगे लिखा है कि “मुझे आशा है कि आप इस हिंसा से बचना चाहेंगे।”
श्री काटजू को यह कौन समझाए कि श्री मोदी ही नहीं बल्कि सारा देश ही हिंसा से बचना चाहता है। परंतु यहां हिंसा से बचने बचाने की बात पर विचार न होकर इस पर विचार होना चाहिए कि हिंसा के लिए प्रेरित कौन कर रहा है ? कौन लोग हैं जो किसान का वेश बनाकर हिंसा की तैयारी में लगे हुए हैं ? कौन लोग हैं जिन्होंने 10000 लोगों को मारने की तैयारी देश की राजधानी की सीमाओं पर किसान के भेष में कर ली है? देश के विषय में सोचते हुए श्री काटजू को यह स्पष्ट करना चाहिए कि देश में आग लगाने की अनुमति किसी को भी नहीं दिया सकती और यदि देश में आग लगाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हुए या भ्रामक प्रचार के माध्यम से लोगों को सरकार के विरोध में उकसाने की गतिविधियों में किसी राजनीतिक दल या विचारधारा विशेष के लोग मिलते हैं तो उनके विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा कायम होना चाहिए।
जहां तक केंद्र की मोदी सरकार की बात है तो वर्तमान उत्तेजक परिस्थितियों के लिए वह स्वयं भी जिम्मेदार हैं । क्या उसके पास इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं थे कि पंजाब की गली – गली में घूमकर कुछ राजनीतिक दलों के लोग किसानों को भड़का रहे हैं और उन्हें शाहीन बाग की तर्ज पर सरकार को घेरने के लिए ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान कर रहे हैं ? यदि नहीं थे तो निश्चित रूप से यह सरकार के पूरे तंत्र की असफलता का प्रमाण है और यदि प्रमाण होने के उपरांत भी सरकार ने भविष्य के किसी शाहीन बाग के आयोजन को रोकने की तैयारी नहीं की तो भी इसके लिए सरकार ही दोषी है।
अब जबकि गोटी फँस गई है तो सरकार को चाहे समय के अनुसार झुकना पड़े तो भी वह किसानों को अपने विरोध में न करने की नीति पर ही काम करे। इसके साथ ही जिन लोगों ने इस नए शाहीन बाग को सजाने का कार्य किया है उनके विरुद्ध कानून को अपने अनुसार उनके करने दिया जाए। इस समय चोर को नहीं बल्कि चोर की मां को पकड़ने की आवश्यकता है। राकेश टिकैत जैसे लोग किसान परिवार में जन्मे अवश्य हैं परंतु उनके चेहरे बता रहे हैं कि वह इस समय बंधक बने हुए हैं । उनके समर्थक और यहां तक कि उनके गांव के लोग भी उनका साथ छोड़ चुके हैं ।क्योंकि यह सब लोग जानते हैं कि राकेश टिकैत की ‘फितरत’ क्या है ? ऐसे में सरकार को बहुत कुछ करने का रास्ता मिल जाता है।इस समय कानून को हटाने या न हटाने की जिद पर न डटे रहकर देश को हिंसा से बचाने की आवश्यकता है । क्योंकि देश विरोधी शक्तियां इस समय पूरे देश में आग लगाने की तैयारी कर चुकी हैं। यह थोड़ी बात नहीं है कि देश में आग लगाने के लिए जिन हथियारों और कंधों का प्रयोग किया जाएगा वह हथियार और कंधे किसान ही होंगे। यदि विपक्ष देश के लोगों को यह समझाने में सफल हो गया कि सरकार किसान विरोधी है और उसने किसानों को मरवाया है तो केंद्र सरकार के लिए यह खतरे की घंटी होगी। विपक्ष इस आंदोलन को इसी मुकाम तक ले जाना चाहता है।
यदि देश विरोधी शक्तियां अपने इस उद्देश्य में सफल हो गईं तो जिन लोगों ने बहुत बड़े संघर्ष के पश्चात वर्तमान राष्ट्रवादी शक्तियों को तेजस्वी राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए सत्ता सौंपी है उन सबके सपने और भावनाओं पर भी तुषारापात हो जाएगा। इसलिए मोदी जी ! . संभल के रहना रे बाबा तुझपे नजर है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत