*राष्ट्र-चिंतन*
*विष्णुगुप्त*
चीन का खौफनाक और हिंसक कारवाई कोई नयी नहीं है, अपने ही नागरिकों के खिलाफ हिंसक और खौफनाक कार्रवाई को लेकर चीन की आलोचना होती रही है, पर चीन के लिए मानवाधिकार का संरक्षण कोई अहम स्थान नहीं रखता है और अपने नागरिकों के प्रति नरम व्यवहार तथा हिंसाहीन कार्रवाई की उम्मीद हो ही नहीं सकती है। ऐसा इसलिए कि चीन में कोई लोकतंत्र नहीं है, चीन में कम्युनिस्ट तानाशाही है। वह भी एक ऐसी कम्युनिस्ट तानाशाही जिसमें जनता की सहभागिता होती ही नहीं है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती नहीं है, मीडिया की आजादी होती नहीं, मानवाधिकार की बात करने वाले लोग या तो हिंसक तक पर मार दिये जाते है या फिर अनंतकाल तक जेलों में डाल दिये जाते हैं, चीन की जेलें घोर अमानवीय, उत्पीड़न, अत्याचार हिंसक रूप सें प्रताड़ित करने की प्रतीक होती हैं।
अभी-अभी दुनिया में चीन का ऐसा पर्दाफाश हुआ है, चीन का ऐसा धिनौना चेहरा सामने आया है जिसे पढकर रोंगटे खडे हो जाते हैं। यह पर्दाफाश चीन में वीगर मुसलमानों को लेकर है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहार कर रहा है। जनसांख्यिकीय नरसंहार के लिए वीगर मुस्लिम महिलाओं पर हिंसा और अमानवीय ढंग से गर्भ पर पहरा बैठा दिया गया है। जैसे ही किसी वीगर मुस्लिम महिला के गर्भवती होने की सूचना मिलती है वैसे ही वीगर मुस्लिम महिला को यातना शिविरों में भर्ती करा दिया जाता है और बलपूर्वक उनका गर्भपात करा दिया जाता है। वीगर मुसलमानों के मजहबी अधिकारों के प्रति भी चीन घोर असहिष्णुता रखता है, उनके मजहबी अधिकार को कुचलने के लिए पुलिस और सेना का प्रयोग किया जाता है।
सबसे पहले यह जानना होगा कि वीगर मुसलमान कौन हैं? वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहार चीन क्यों कर रहा है? चीन वीगर मुसलमानों के मजहबी अधिकार को कुचलने के लिए कौन सा हथकंडा अपना रहा है? दुनिया के नियामक चीन के इस बर्बर, खौफनाक और हिंसक नीति के खिलाफ चुप्पी क्यों साधे रखे हैं? क्या दुनिया के नियामकों को चीन के खिलाफ मानवाधिकार हनन और जनसांख्यिकीय नरसंहार के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? क्या चीन से संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद के वीटों के अधिकार को नहीं छिना जाना चाहिए? क्या मुस्लिम दुनिया को चीन की इस खौफनाक, बर्बर और ंिहंसक कार्रवाई के खिलाफ अभियान चलाने की जरूरत है? मुस्लिम दुनिया के नेता बनने के लिए हिंसक और मजहबी आधार पर सक्रिय पाकिस्मतान, मलेशिया और तुर्की की इस प्रश्न पर चुप्पी क्यों हैं? पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की के लिए वीगर मुसलमानों के हित और उनका मानवाधिकार कोई अहमियत नहीं रखते हैं? क्या अमेरिका इस प्रसंग पर चीन को झुकाने और वीगर मुसलमानों के हित और उनका मानवाधिकार सुरक्षित कराने में सफल हो सकता है? अमेरिका की तरह यूरोपीय देश भी चीन के खिलाफ कदम उठाने के लिए अभियानी होंगे?
वीगर मुसलमान चीन की शिजिंयांग प्रात के रहने वाल अल्पसंख्यक समुदाय है जिनका मजहब इस्लाम है। ये इस्लाम के कट्टर समर्थक हैं। इनका पेशा कृषि और पशुचारण है। यह इस्लामिक जनजातीय समुदाय अपने आप को मध्य एशिया के निवासी बताते हैं। शिजिंयांग प्रांत का इतिहास भी लद्दाख जैसा है, वीगर मुसलमानों की उत्पीडन और हिसंक कहानी लद्दाख के बौद्धों की तरह है। लद्दाख की तरह ही शिजियांग भी कभी स्वतंत्र भूभाग था, चीन से वह अलग था। 1949 में माओत्से तुंग ने अपने विस्तारवादी नीति के कारण शिजियांग भूभाग को चीन का हिस्सा बना लिया था। शिजियांग भूभाग को अपना हिस्सा बनाने के लिए चीन ने बडे पैमाने पर हिंसा बरपाई थी, हजारों लोगों को मौत का घाट उतार दिया गया था। 1949 से लेकर अभी तक चीन अपने कब्जे में रखने के लिए हिंसा और प्रताड़ना का सहारा लेता है। फिर भी वीगर के मुसलमान चीन की अधीनता स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हैं।
वीगर मुसलमानों का कहना है कि उनका मजहब इस्लाम है, वे कट्टर मजहबी हैं, उन्हें मजहब से बेदखल रखना स्वीकार नहीं हैं। उनकी मान्यता है कि चीन उनका देश नहीं है,चीन आक्रमणकर्ता हैं। चीन का हमेशा व्यवहार और नीति आक्रमणकारियों जैसे ही रहा है। वीगर मुसलमान कहते हैं कि शिजियांग 1949 से पूर्व एक इस्लामी भूभाग था। शिजियांग को इस्लामिक देश घोषित किया जाना चाहिए, चीन अपना अधिकार छोडे। सच तो यह है कि वीगर मुसलमान भी इस्लाम की हिंसा और अलगाव तथा मजहबी घृणा के सहचर हैं। जिस तरह से दुनिया के अंदर में इस्लामिक देश की मांग के लिए घृणा, अलगाव, विखंडन तथा हिंसा-आतंकवाद का जिहाद चल रहा है उसी तरह की घृणा, हिंसा,अलगाव, विखंडन, आतंकवाद का जिहाद शिजियांग में जारी है।चीन का आरोप है कि एक घोर और घृणित इस्लामिक राज के लिए शिजियांग में जिहाद चल रहा है, वीगर मुसलमान चीनी पुलिसकर्मियों और अन्य धर्मविहीन आबादी को निशाना बनाते हैं, जिसके कारण निर्दोष लोगों की जानें जाती है। वीगर मुसलमान सिर्फ चीन में ही नहीं है बल्कि वीगर मुसलमानों की एक खास आबादी इराक और तुर्की में भी है। वीगर मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले साहित्यकार, कवि, कलाकार पलायन कर गये है। वीगर मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले साहित्यकार, कवि और कलाकार पलायन कर अमेरिका, यूरोप और अन्य मुस्लिम देशों में शरण लिये हुए है, शरणस्थली से ही चीन के खिलाफ और इस्लामिक देश बनाने के लिए अभियानी हैं।
चीन की ही नहीं बल्कि दुनिया में जहां-जहां कम्युनिस्ट तानाशाहियां रही थी वहां-वहां मजहब और धर्म की बुनियाद को तहस-नहस करना और नष्ट करना उनकी नीति रही थी। सोवियत संघ से लेकर चेकस्लोवाकिया तक इसका उदाहरण पसरा हुआ था। सोवियत संघ और चैकस्लोवाकिया खुद ही दफन हो गये। कार्ल माक्र्स ने मजहब-धर्म को अफीम कहा था। यूरोप में ईसाईयत और यूरोप के पडोस में इस्लाम के हिंसक और घृणा के साथ ही साथ सत्ता को नियंत्रित करने के भीषण दुष्परिणाम हुए थे और कार्ल माक्र्स ने दुष्परिणामों के मूल्यांकन के बाद मजहब और धर्म को अफीम कहा था। कार्ल माक्र्स की थ्योरी पर ही कम्युनिस्ट तानाशाहियां मजहब और धर्म को मिटाने के लिए अपना प्रथम एजेंडा बना लिया। चीन कभी बौद्ध धर्म वाला देश था जहां पर महात्मा बुद्ध का बहुत ही गहरा प्रभाव था। महान सम्राट अशोंक ने बौद्ध धर्म को चीन में विस्तार दिया था। जैसे ही चीन के अंदर माओत्से तुंग का उदय हुआ वैसे ही बौद्ध धर्म को मिटाने की कोशिश हुई, बौद्ध मंदिरों को या तो तोड दिया गया या फिर बौद्ध मंदिरों में जाने वाले लोगों को गोलियां से उड़ा दिया गया या उन्हें जेलों में डाल दिया गया। चीन में बौद्ध धर्म को पूरी तरह से नष्ट करने में इन्हें कामयाबी मिली। पर बौद्ध धर्म की तरह इस्लाम को मिटाने में कम्युनिस्ट तानाशाही को पूरी तरह से सफलता नहीं मिली। इस्लाम के मानने वालों ने अपनी कट्टरता से चीन को मजहबहीन बनाने की नीति सफल नहीं होने दिया।
वीगर मुसलमानों को नियंत्रित रखने के लिए चीन ने जिस तरह के हथकंडे अपनाये गये हैं उसे सुनकर रोंगटे खडे हो जायेंगे। दुनिया में चर्चित है कि वीगर मुसलमानों को मजहबहीन बनाने के लिए चीन की कम्युनिस्ट तानाशाही घोर बर्बर और अति हिंसक नीति अपना रखी है। एक करोड़ से अधिक वीगर मुसलमानों को यातना शिविर में रखा गया है जहां पर मजहब की लत को छुडाने के लिए हिंसा की नीति अपनायी जाती है। वीगर मुसलमानों को सुअर का मांस खाने तक के लिए बाध्य किया जाता है। जैसे ही कोई मजहबी सामग्री पकडी जाती है वैसे ही जिसके पास मजहबी सामग्री पकडी जाती है उसे गिरफतार कर यातना शिविरों में डाल दिया जाता है। चीन से कई ऐसी तस्वीरें आयी है जिसमें मस्जिदों को टाॅयलेट घर में तब्दील हुआ बताया गया है। इतना तो सच है कि चीन ने मस्जिदों पर ताले लगा ही रखे हैं, मस्जिदों का ध्वंस करना भी जारी है। इसके अलावा वीगर मुसलमानों को आबादी की दृष्टिकोण पर अल्पसंख्यक बनाने के लिए नीति जारी है। चीनी मूल के लोगों को शिजियांग प्रदेश में बसाया जा रहा है। चीनी मूल के लोगों को काफी रियायतें मिली हुई है। चीन का मानना है कि शिजियांग प्रदेश के वीगर मुसलमानों के जिहाद की समस्या का समाधान आबादी संतुलन बना कर किया जा सकता है। चीनी आबादी संतुलन का अर्थ सिर्फ और सिफ वीगर मुसलमनों की आबादी को कम करना,वीगर मुस्लिम आबादी को कुचलना है।
सबसे ज्यादा चिंताजनक खामोशी मुस्लिम दुनिया को लेकर है। मुस्लिम दुनिया इस प्रसंग पर खामोश क्यों है? कुछ समय पहले ही फ्रांस के खिलाफ मुस्लिम दुनिया ने कैसी हिंसक अभियान चलायी थी, यह भी जगजाहिर है। जबकि फ्रांस में ऐसा कुछ भी नहीं था। चीन के सामने मुस्लिम दुनिया झुकी रहती है। पाकिस्तान जो मुस्लिम दुनिया का अगवा बनने की कोशिश करता है वह तो चीन का मोहरा है। अगर मुस्लिम दुनिया अभियानी होती तो फिर वीगर मुसलमानों के हितों पर चीन सोचने के लिए जरूर बाध्य होता। चीन के खिलाफ दुनिया में सिर्फ अमेरिका ही है जो वीगर मुसलमानों की जनसाख्यिकीय नरसंहार के खिलाफ प्रतिबंधों को लागू किया है। वीगर मुसलमानों का जनसांख्यिकीय नरसंहर रोका जाना चाहिए।
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