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चुनावों के बाद के नीतीश कुमार में चुनावों से पहले वाले नीतीश कुमार की अपेक्षा बहुत अंतर है

 

संतोष पाठक

इस बार छोटे भाई की भूमिका में बिहार के मुख्यमंत्री के तेवर शुरुआत से ही बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। भाषण देते हुए शांति से अपनी बात रखने वाले नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक खासियत यही मानी जाती थी कि वो कम बोलते हैं, नपा-तुला बोलते हैं।

बिहार में मिलकर सरकार चला रहे एनडीए के दो सबसे बड़े घटक दल भाजपा और जेडीयू हाल ही में लगातार 2 दिनों तक अपने-अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ मिलकर भविष्य की राजनीतिक लड़ाई लड़ने की रणनीति बनाते नजर आए। मुख्यमंत्री नीतीश की पार्टी जेडीयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक राजधानी पटना में हुई तो वहीं भाजपा का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर राजगीर में चला। दोनों ही जगह, दोनों ही पार्टियों के नेता यह दावा करते नजर आए कि नीतीश सरकार पूरे 5 वर्ष तक चलेगी और अपना कार्यकाल पूरा करेगी। लेकिन क्या वाकई ऐसा ही होने जा रहा है ? क्या वाकई बिहार में भाजपा और जेडीयू गठबंधन में सब कुछ ठीकठाक चल रहा है ?

राजनीति में आमतौर पर कहा जाता है- अंत भला तो सब भला यानि अगर चुनावी जीत हासिल हो गई और सरकार बन गई तो फिर बिना किसी किंतु-परंतु के सत्ता का सुख भोगना चाहिए। लेकिन भारतीय राजनीति में हमेशा से ही नए कीर्तिमान स्थापित करने वाला बिहार इस बार भी एक नया ही ट्रेंड स्थापित करता नजर आ रहा है। बिहार में विधानसभा चुनाव हुए, नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा और जनता दल यूनाइटेड के कम सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद भाजपा ने मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोंकने की बजाय नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही सरकार बनाई। लेकिन चुनावी जीत हासिल कर सरकार बनाने के बावजूद बिहार में कई बार ऐसा लगता है जैसे भाजपा और जेडीयू एक लंबी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। ये और बात है कि दोनों ही दलों के नेता सार्वजनिक तौर पर यह बयान देते नहीं थकते कि सरकार और गठबंधन स्थिर है और नीतीश सरकार 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करेगी।

इस बार छोटे भाई की भूमिका में बिहार के मुख्यमंत्री के तेवर शुरुआत से ही बदले-बदले से नजर आ रहे हैं। भाषण देते हुए शांति से अपनी बात रखने वाले नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक खासियत यही मानी जाती थी कि वो कम बोलते हैं, नपा-तुला बोलते हैं। कड़वी से कड़वी बात भी मुस्कुराते हुए इस अंदाज में बोल जाते हैं कि विरोधियों को भी यह समझ नहीं आता कि वो नीतीश कुमार पर कैसे निशाना साधें। लेकिन इस बार विधानसभा के पहले सत्र में ही लोगों ने एक नए ही नीतीश कुमार को देखा। पहले तो वो अपनी आदत के मुताबिक खामोश रहे लेकिन बाद में विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव पर फूट पड़े। इससे पहले इतने क्रोध में इतना तीखा बोलते हुए पिछले 15 सालों में नीतीश कुमार को किसी ने नहीं देखा था। अपने गुस्से भरे तेवर के जरिए नीतीश तेजस्वी से ज्यादा सहयोगी भाजपा को संदेश देते नजर आए कि उन्हें अब चिराग में तेल डालना बिल्कुल पसंद नहीं है और नतीजा यह हुआ कि अपने आप को भाजपा का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान अभी तक पैदल हैं।

बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल लगातार नीतीश सरकार को गिराने की धमकी दे रही है लेकिन लगता है कि नीतीश इससे ज्यादा परेशान नहीं हैं। हकीकत में वो साथ मिलकर सरकार चलाने वाली भाजपा से दो-दो हाथ करने के मूड में ज्यादा नजर आ रहे हैं। क्योंकि चुनाव परिणाम ने राज्य में सत्ता का संतुलन गड़बड़ा दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सहयोगी भाजपा से छोटी पार्टी बन गई है। दूसरे, भाजपा की आंतरिक संरचना भी बदल गई है। सीएम नीतीश के साथ आदर्श और भरोसेमंद सहयोगी की भूमिका निभाने वाले सुशील मोदी को भाजपा ने राज्यसभा सदस्य बनाकर दिल्ली भेज दिया है। उनकी जगह दो उप-मुख्यमंत्री बनाकर नीतीश को दोनों तरफ से घेरने की कोशिश की गई है। हालत यह हो गई है कि अब नीतीश कुमार को भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ डील करना पड़ रहा है। राज्य में भाजपा अब बिग बॉस की भूमिका में आना चाहती है लेकिन नीतीश उसे बिग बॉस मानने को तैयार नहीं और इसलिए छोटे दल के नेता के तौर पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से ही नीतीश लगातार अपना कद बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।

सबसे पहले उन्होने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़कर उस पर अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह को बैठाया। ऐसा करके उन्होंने प्रोटोकॉल स्थापित करने की कोशिश की कि बतौर मुख्यमंत्री सरकार चलाने की जिम्मेदारी उनकी है लेकिन जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर अब भाजपा नेताओं के साथ बातचीत करने और सहयोगी के रूप में बराबरी का हक हासिल करने की जिम्मेदारी जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर आरसीपी सिंह निभाएंगे। यानि अगर आने वाले दिनों में जेडीयू नेताओं की तरफ से भाजपा के खिलाफ बयानबाजी होती है तो बीच-बचाव करने के लिए भाजपा नेता सीधे नीतीश कुमार से संपर्क स्थापित नहीं करें।

नीतीश कुमार की एक खासियत और रही है कि वो मीडिया से बहुत कम बात करते रहे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर विधानसभा तक, पत्रकार सवालों की झड़ी लगाते नजर आते थे लेकिन नीतीश मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर निकल जाया करते थे। लेकिन इस बार तो पटना का हर पत्रकार नीतीश कुमार के रवैये से काफी हैरत में नजर आ रहा है। पत्रकार जब भी कोई सवाल लेकर नीतीश का नाम लेते हैं तो नीतीश कुमार खुद ही रुक कर जवाब देना शुरू कर देते हैं। बीच में तो कई दिन ऐसे भी गुजरे जब दिनभर में नीतीश कुमार ने 4-5 बार पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए। साफ-साफ लग रहा है कि अपनी चुप्पी त्यागकर नीतीश खूब घूम रहे हैं, मीडिया से बात कर रहे हैं और हर सवाल का जवाब दे रहे हैं।

भाजपा से जुड़े सवालों पर तो नीतीश कुछ ज्यादा ही तेजी से प्रतिक्रिया देते नजर आते हैं। हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने भाजपा नेताओं के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की। इसके बाद भाजपा नेताओं के हवाले से अखबारों में खबर छपी कि मुख्यमंत्री से बात हो गई है और मकर संक्रांति के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हो जायेगा। अखबार में यह खबर पढ़ने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री सामने आते हैं, मीडिया को बयान देते हैं कि भाजपा नेताओं से मुलाकात के दौरान मंत्रिमंडल विस्तार पर कोई बातचीत नहीं हुई है। खुलकर भाजपा पर हमला बोलते हुए नीतीश कुमार यह भी बोल जाते हैं कि मंत्रिमंडल विस्तार में देरी भाजपा की वजह से हो रही है क्योंकि इससे पहले तो एक बार में ही पूरी कैबिनेट बन जाया करती थी। इससे ज्यादा खुल कर कोई मुख्यमंत्री अपने सहयोगी पर हमला नहीं कर सकता था।

लोजपा से चोट खाए नीतीश कभी खुलकर तो कभी दबी जुबान में इसके लिए भाजपा पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं। पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश ने भाजपा का नाम लिए बिना उसे पीठ में छुरा भोंकने वाला और विश्वासघाती तक करार दिया गया। नीतीश बोले, उनसे गलती हुई कि वो समझ नहीं पाए कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। इससे पहले जेडीयू नेता अपने उम्मीदवारों के हार का ठीकरा चिराग पासवान पर फोड़ रहे थे लेकिन बैठक में कई नेताओं ने खुलकर तो कई ने इशारों-इशारों में भाजपा पर निशाना साधा। यह कहा गया कि जिन 72 सीटों पर उनके उम्मीदवार चुनाव हारे, उन पर चक्रव्यूह रच कर उन्हें हराया गया। पार्टी ने यह माना कि इसमें से 36 सीटें जेडीयू बड़े अंतर से जीत रही थी लेकिन गठबंधन के भविष्य पर सवाल खड़ा कर षड्यंत्र के तहत इन्हें हराया गया।

भाजपा पर हमला बोलने के साथ ही लगे हाथ नीतीश कुमार यह कहने से भी नहीं चूकते कि सरकार पूरे पांच साल चलेगी। लेकिन सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जिस भाजपा के समर्थन के बल पर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने बैठे हैं, वह कब तक अपनी आलोचना को बर्दाश्त कर पाएगी। यह तो सब जानते हैं कि बिहार में भाजपा के युवा नेताओं का बहुमत अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहता था लेकिन एक खास रणनीति के तहत पूरे देश में एक सही संदेश देने के मकसद से भाजपा आलाकमान ने यह फैसला किया कि छोटा दल होने के बावजूद जेडीयू से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री का पद संभालें। लेकिन अगर इसी अंदाज में नीतीश कुमार हर जगह भाजपा पर राजनीतिक हमला बोलते नजर आए, जेडीयू के नेता खुल कर भाजपा को षड्यंत्रकारी बताते नजर आए तो भाजपा आखिर इसे कब तक बर्दाश्त कर पाएगी ? कहीं ऐसा तो नहीं कि नीतीश कुमार खुद यह चाहते हैं कि भाजपा उनकी सरकार गिरा दे ताकि उनके लिए अन्य विकल्पों की तलाश करना आसान हो जाए और उनकी छवि पर कोई आंच भी नहीं आए।

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