ब्रिटिश सरकार ने इन गायों का कत्लेआम करवा दिया। पाकिस्तान की फेेमिली नामक पत्रिका ने 2003 में मनाई जानेवाली बकरा ईद के अवसर पर यह समाचार दिया था कि कराची की पशु मंडी से कुछ गायें खरीदी गयीं, जिनमें मेड काऊ की बीमारी के चिन्ह थे। पाकिस्तान सरकार ने बड़ी संख्या में इन गायों को मरवा डाला। यह बीमारी इतनी भयंकर बताई गयी कि कत्ल की गयी गायों को गहरे गड्ढों में दफना दिया गया।
सवाल यह पैदा हेाता है कि वे गायें पागल क्यों हुईं? इन दिनों पशुओं को खिलाए जाने वाले आहार में यह लक्ष्य निर्धारित किया जाता है कि उनसे अधिक से अधिक दूध प्राप्त हो। पशुओं की हड्डियों, सींग और खुर को डायजेस्टर में पकाकर उन्हें ग्रिस्टींग मशीन पर पाउडर के रूप में तैयार कर लिया जाता है। इसे एनीमल फीड की संज्ञा दी जाती है। इस आहार के कारण पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही उससे उनके शरीर पर मांस भी अधिक मात्रा में चढ़ जाता है। लेकिन जीवित गाय को मृत गाय के अंगों से बना ऑयल केक खिलाया जाएगा तो इसका क्या परिणाम आएगा? एक दिन तो वह पागल हो ही जाने वाली है। हड्डियों से तैयार किया गया एनिमल फीड मुरगियों और मछलियों को भी खिलाया जाता है। इससे उनकी प्रजनन शक्ति बढ़ती है। लेकिन कुछ समय बाद उसकी प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। अपने जैसे पशु पाी और अपनी ही नस्ल और वंश के शरी से बने इस प्रकार के खाद्य पदार्थ का प्रभाव उलटा होने लगता है, जिससे पशु-पक्षी बड़ी संख्या में मरने लगते हैं। एनिमल फीड बनाने वाली इन कंपनियों की कोई जांच पड़ताल नही करता और प्रयोगशाला में उनकी शिकायत नही होती। इसलिए करोड़ों के वारे न्यारे हो जाते हैं। इसका प्रभाव समय समय पर देखने को मिलता है। कभी असंख्य मछलियां मरती हैं तो कभी मुरगियों की लाशें बिछ जाती हैं। गाय जैसा प्राणी भी इसका शिकार हो जाता है। एक ही नस्ल के पशु अपने ही नस्लवाले को खाएंगे तो परिणाम क्या होगा? मांसाहार करने वाले यदि भूल से भी इन बीमार प्राणियों का मांस आरोप लेंगे तो क्या नतीजा होगा, यह कहने की आवश्यकता नही है।
सन 1918 में इस प्रकार की बीमारी सुअरों में फेेली थी। कितने करोड़ सुअर मरे, इसका हिसाब नही मिलता। लेकिन संपूर्ण यूरोप त्राहि त्राहि पुकार गया था। आज भी सुअरों को जिन फार्म में रखा जाता है, उन्हें ऐसी वस्तुएं खिलाई जाती हैं जिससे उसके शरीर पर चरबी बढ़ती रहे।
क्रमश: