बर्ड फ्लू का वायरस 70 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की गर्मी मिलते ही खत्म हो जाता है। इसलिए चिकन या अंडों के इस्तेमाल के बावजूद भारतीय उपभोक्ता इसके शिकार नहीं होते क्योंकि यहां भोजन को अच्छी तरह पकाकर खाने का चलन है।
देश के अलग-अलग हिस्सों से अचानक पक्षियों की मौत की खबरों ने जो आशंका पैदा की थी, दस राज्यों में बर्ड फ्लू की पुष्टि हो जाने से वह सच साबित हुई है। हालांकि बर्ड फ्लू कोई नई चीज नहीं है। इसका पहला मामला ढाई दशक पहले 1996 में चीन में सामने आया था। इसके बाद से दुनिया भर में यह कहीं न कहीं उभरता रहा है। अपने देश में इसका पहला मामला 2006 में महाराष्ट्र में देखने को मिला। लेकिन उसके बाद से विभिन्न राज्यों में इसका प्रकोप सुर्खियों में आता रहा है। इस बार अगर इसने कुछ ज्यादा घबराहट फैलाई है तो उसके पीछे कोरोना वायरस का पहले से जारी कहर ही है।
कोरोना के चलते स्वास्थ्य सेवाओं पर जिस तरह का बोझ है, अर्थव्यवस्था की जो दुर्गति हो चुकी है और आम देशवासियों का मन-मिजाज जितना तंग आ चुका है, उसमें एक और वायरस हमले की कल्पना किसी को भी सिहरा देने के लिए काफी है। मगर सचाई यह है कि कम से कम मौजूदा स्वरूप में बर्ड फ्लू इंसानों के लिए कोरोना जितना खतरनाक नहीं है। यह मूलत: पक्षियों का ही वायरस है। पक्षियों से यह जब-तब मनुष्यों में भी आता है, लेकिन इसके संक्रमण का शिकार वही लोग हुए हैं जो पक्षियों के कारोबार से, खासकर उनके मांस की तैयारी और उसकी बिक्री से जुड़े हैं। मनुष्य से मनुष्य में इसके संक्रमण के मामले अब तक नहीं दिखे हैं।
दूसरी बात यह कि बर्ड फ्लू का वायरस 70 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की गर्मी मिलते ही खत्म हो जाता है। इसलिए चिकन या अंडों के इस्तेमाल के बावजूद भारतीय उपभोक्ता इसके शिकार नहीं होते क्योंकि यहां भोजन को अच्छी तरह पकाकर खाने का चलन है। इसी वजह से पोल्ट्री कारोबार से जुड़े लोग कहते हैं कि यह वायरस उतना खतरनाक नहीं है, लेकिन इसका डर उनकी कमर तोड़ देता है। जब भी इसके प्रकोप की खबर फैलती है, बड़ी संख्या में मुर्गियों को मार दिया जाता है। यही नहीं, चिकन और अंडों की मांग कम हो जाने और कीमतें गिर जाने का नुकसान भी पोल्ट्री इंडस्ट्री को झेलना पड़ता है। फिर भी इसके खतरे को कम कर के आंकना ठीक नहीं है।
सबसे बड़ी वजह तो यही है कि वायरस का नया स्ट्रेन कैसा होगा, इस बारे में पहले से कुछ नहीं जाना जा सकता। अगर यह पक्षियों से किसी अन्य जानवर में होते हुए मनुष्यों तक पहुंचा तो कैसी मारक शक्ति और संक्रामक क्षमता से लैस होगा, यह नहीं पता। दूसरी बात यह कि अपने मौजूदा स्वरूप में भी मनुष्यों को संक्रमित करने के बाद यह बेहद खतरनाक साबित होता है। इससे संक्रमित होने वाले मनुष्यों में मृत्यु दर करीब 60 फीसदी देखी गई है। ध्यान रहे, कोरोना वायरस में मृत्यु दर अधिकतम तीन-चार फीसदी ही पाई गई है। बेकाबू होने पर बर्डफ्लू का वायरस कैसा कहर ढाएगा, सोचा जा सकता है। ऐेसे में अधिकतम सतर्कता बरत कर जल्द से जल्द इस पर काबू पा लेने में ही भलाई है।
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