हर अच्छे काम में

आती हैं बाधाएँ

– डॉ. दीपक आचार्य

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प्रकृति का कोई प्रवाह न सामान्य है न सहज। हर किसी काम की शुरूआत से लेकर पूर्णता का सफर प्राप्त करने तक किसी न किसी प्रकार की बाधाओं का आना स्वाभाविक ही है। हममंंें से हरेक व्यक्ति यह महसूस करता है कि जब भी हम अच्छे काम करने की कोशिश करते हैं, उनमें कहीं न कहीं से कोई बाधा आ ही टपकेगी, जो हमारा समय, श्रम और पैसा छीनने की कोशिश करती रहती है।

समाज और परिवेश में कई सारी सदेह और बिना देह वाली अशरीरी अतृप्त आत्माएं खूब सारी हैं जिनके पास औरों को परेशान कर आनंद पाने के सिवा और कोई काम है ही नहीं। यों भी इन भूखों, नंगों और प्यासों लोगों से और अपेक्षा की ही क्या जा सकती है।

आत्माओं और शरीर का अतृप्त रहना खुद के लिए भी घातक है और समाज तथा उस क्षेत्र के लिए भी जो हमारा अपना कहा जाता है। चाहे हमारी जन्म भूमि हो या कर्मभूमि।  हम हर तरफ अतृप्त और भूखी-प्यासी आत्माओं से घिरे हुए हैं जो हमारे जीवन के हर कर्म और हलचल पर नज़र गड़ाये रखती हैं और जहाँ उन्हें मौका मिलता है हमें दबोच लेने के लिए तत्पर रहा करती हैं।

यों भी जिस गति से अतृप्त शरीर, अधूरी वासनाओं तथा ऎषणाओं के पूरे न हो पाने का मलाल लिए मरने वाले मरणधर्माओं की आजकल जिस ऊपरी मन से दिखावटी उत्तर क्रियाएं हो रही हैं उससे हालात और ज्यादा खराब होते जा रहे हैं। इन जीवात्माओं का न मोक्ष हो पा रहा है न नया कोई शरीर मिल रहा है। ऎसे में ये आत्माएँ हमारे आस-पास भ्रमण करती हुई अपनी करतूतों को अंजाम देती लगती हैं।

जमीन पर आजकल इन अतृप्त आत्माओं के लिए इंसानों की खूब सारी प्रजातियां हैं जो इन्हीं के नक्शे कदम पर चलती हुई वो सब कुछ कर रही हैं जो ये आत्माएं अपनी पूरी जिन्दगी में सारे षड़यंत्रों, गोरखधंधों और पाखण्डों को अपनाकर भी पूर्णता प्राप्त नहीं कर पायी हैं।

इन अतृप्त और अधूरी वासनाओं की पूर्ति की कामना मन में रखते हुए दुःखी मन से विदा हो चुके लोगों के लिए हमारे यहाँ काफी सारे माध्यम उपलब्ध हैं। हमारे आस-पास खूब सारे लोग ऎसे मैले मन-तन और मलीन बुद्धि के हैं जो इन आत्माओं के लिए अच्छे माध्यम का काम कर रहे हैं।

जमीन से ऊपर और जमीन पर, सभी जगह नकारात्मक आत्माओं का बोलबाला अब कुछ ज्यादा ही होने लगा है। ऎसे में दुनिया का कोई सा अच्छा काम हो, छोटा हो या बड़ा, हर काम मेंं आरंभ से लेकर पूर्णता प्राप्त करने तक कितनी ही तरह की अवांछित और अकल्पनीय बाधाएं हमारे सामने आती ही रहती हैं।

प्रकृति भी कई बार श्रेष्ठ कर्मों को कालजयी स्वरूप देने और चिरस्मरणीय बनाने के लिए इन्हें ठोस बनाने कुछ न कुछ कसौटियां सामने ला ही देती है। हम सभी का अनुभव है कि समाज या क्षेत्र का कोई सा अच्छा काम हो, ऎसे खूब सारे लोग सामने आकर बाधाओं की शक्ल में खड़े हो जाते हैं जैसे कि ‘अंधेरा कायम रहे’ का उद्घोष करने वाले राक्षस अचानक जाग कर हमारे सामने आ खड़े हो गए हों।

कोई सा अच्छा कार्य हो, जिसमें बाधाएं सामने आने लगें, यह निश्चय मानकर चलना चाहिए कि वह कार्य आशातीत सफलता जरूर प्राप्त करेगा। जिस श्रेष्ठ काम में जितनी अधिक बाधाएं आती हैं वह कार्य युगों तक याद रखने लायक हो जाता है क्योंकि उस काम के लिए आने वाले वर्षों और सदियों में जो अवरोध आने वाले होते हैं वे इन बाधाओं के रूप में एक के बाद सामने आकर अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए बात अपने जीवन की हो, समाज या क्षेत्र की, जिन भी अच्छे कामों में बाधाओं का प्रभाव सामने आता है वे काम सफलता पाने के लिए ही जन्मते हैं। इसी प्रकार बुरे कामों में बाधाएं समाप्त होती हैं और बुरे काम करने वालों को एक के बाद एक सहयोगी, प्रोत्साहनदाता तथा गॉड फादर्स मिलते चले जाते हैं और उनके लिए बुरे कर्मों की राह आसान हो जाती है लेकिन बुरे कर्मों के अंतिम दस परिणाम घातक होते हैं।

अच्छे कर्म ईश्वरीय उपासना का प्रमुख अंग होते हैं इसलिए इनमें कभी भी ढील नहीं दी जानी चाहिए बल्कि चाहे जितनी बाधाएं सामने हों,अपने कर्म में लगे रहना चाहिए। श्रेष्ठ और कल्याणकारी कार्यों के लिए बाधाएं सफलता का संकेत हुआ करती हैं। यह अपने आप में सशक्त संकेतक ही होती हैं कि हम लोग कार्यसिद्धि और सफलता की ओर बढ़ रहे हैं।

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