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विशेष संपादकीय वैदिक संपत्ति

मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-14

गतांक से आगे…..
हमारे अब तक के कथन का निष्कर्ष यह है कि प्रथम विभाग वाले चमत्कारी वर्णन वेदों के हैं और दूसरे विभाग के वर्णनों का कुछ भाग वेदों का है और कुछ उस नाम के व्यक्तियों के इतिहासों का है, जिसे आधुनिक कवियों ने एक में मिला दिया है। अत: संभव और असंभव की कसौटी से दोनेां को पृथक कर लेना चाहिए। शेष तीसरे विभाग के व्यक्ति तो ऐतिहासिक हैं ही। इस प्रकार की छानबीन से वेदों में इतिहास का भ्रम निकल जाएगा।
आगे हम क्रम से राजाओं और नदियों आदि के वर्णन देकर दिखलाते हैं कि वेद में आये हुए वे शब्द क्या क्या अलौकिक भाव दिखलाते हैं। किंतु पहले वह वर्णन दिखलाना चाहते हैं जिसे श्रीमान मिश्र बंधुओं ने वेदों से निकाला है। आपने बड़ा परिश्रम करके सिर्फ इस एक ही युद्घ का वर्णन निकाल पाया है। आप लिखते हैं कि-
वेदों में इतिहास-भ्रम
”अब वेदों में लिखित राजनैतिक इतिहास को यथासाध्य संक्षिप्त प्रकारेण क्रमबद्घ कर हम इस अध्याय को समाप्त करेंगे। ऊपर कहा जा चुका है कि वेदों में ऐतिहासिक घटनाएं अप्रासंगिक रीति से आई हैं। इसलिए उनमें से अधिकांश का वेदा के ही सहारे क्रमबद्घ करना कठिन है। इसलिए हम यहां पर मुख्य मुख्य घटनाओं को मोटे प्रकार से सक्रम कहेंगे। आर्यों और अनार्यों के सैकड़ों नाम वेद में आये हैं। अनार्यों वृत्त, दनु, प्रिय सुश्न, बंगृद बलि नमुचि मृगच, अर्बुद प्रधान समझ पड़ते है। दनु के वंशघर दानव थे जिनका कई स्थानों में वर्णन है। यह दनु वृत्रासुर की माता थी। वृत्र के 99 किले इंद्र ने तोड़े थे। 99 और 100 वृत्रों का कई स्थानों पर वर्णन आया है। सम्बर और बंगृद के सौ किले ध्वस्त किये गये। सम्बर के किले पहाड़ी थे और दिवोदास के कारण इंद्र ने उसे मारा था। दिवोदास सुदास के पिता थे। इससे संबर का युद्घ छब्बीस वीं शताब्दी संवत पूर्व का समझ पड़ता है। सुश्न का चलने वाला किला ध्वस्त हुआ। चलने वाले किले से जहाज का प्रयोजन समझ पड़ता है। विप्र के 50000 सहायक मारे गये। बलि के 99 पहाड़ी किले थे। ये सब जीते गये। सिवाय संबर के और सबका पूर्वापर क्रम ज्ञात नही है। आर्यों में ऋषियों के अतिरिक्त मनु, ययाति, इला, पुरूरवा, दिवोदास, मांधाता, दधीचि, सुदास, त्रसदस्यु, ययाति के यदु आदि पांचों पुत्र और पृथु की प्रधानता है। ययाति के यदु आदि पांचों पुत्रों के वर्णन कई स्थानों पर आये हैं। दिवोदास ओर सुदास के सबसे अच्छे क्रमबद्घ वर्णन हैं। इस विषय में वशिष्ठ का सातवां मण्डल बहुत उपयोगी है। इसके पीछे विश्वामित्र का तीसरा मंडल भी अच्छी घटनाओं से पूर्ण है। दिवोदास तृत्सु लोगों के स्वामी थे। वैदिक समय में सूर्यवंशियों की संज्ञा तृत्सु थी, ऐसा समझ पड़ता है। सुदास और उनके पुत्र कल्माषपाद सूर्यवंशी थे और पुराणों के अनुसार भगवान रामचंद्र का अवतार इन्हीं के पवित्र वंश में हुआ था। यही लोग वेद में तृत्सु कहे गये हैं। इन्हीं बातों से जान पड़ता है कि सूर्यवंशी उस काल तृत्सु कहलाते थे।
राजा दिवोदास बहुत बड़े विजयी थे। इन्हेांने तुर्वश, दु्रहधु और संबर को मारा और लोगों को भी पराजित किया। नहुषवंशी इनको कर देने लगे थे। इनके पुत्र सुदास ने इनके विजयों को और भी बढ़ाया। सुदास का युद्घ वैदिक युद्घों में सबसे बड़ा है। नहुषवंशी यदु, तुर्वश, अनु, द्रुहथ के संतानों ने भारतों से मिलकर तथा बहुत से अन्नार्य जहाजों की सहायता लेकर सुदास को हराना चाहा। नहुषवंशियों की सहायतार्थ, भार्गव लोग, परोदास, पकथ, भलान, लिन, शिव, विशात, कवम, युध्यामधि, अज, सिगरू और चक्षु आये तथा 21 जाति के वैकर्ण लोग भी पहुंचे।
राजा वर्चिन बहुत बड़ी सेना लेकर इनका नेता हुआ। कितने ही सिम्यु लोग भी नाहुषों की सहायतार्थ आए। फिर भी नहुष वंश मुख्य राजा पुरूवंशी इस युद्घ में सम्मिलित न हुआ। नाहूषों ने रावी नदी के दो अुकड़े करके एक नहर निकालकर नदी को पार करना चाहा, किंतु सुदास ने तत्काल धावा बोल दिया। जिससे गड़बड़ में नाहूषों की बहुत सी सेना नदी में मरी। कवष और बहुत से द्रहुवंशियों के 66 वीर पुरूष और 6000 सैनिक मारे गये और आनवों का सारा सामान लिया गया, जो सुदास ने तृत्सु को दे दिया गया। सात किले भी सुदास के हाथ लगे और उन्होंने युध्यामधि को अपने हाथ मारा। राजा वर्चिन के एक लाख सैनिक इस युद्घ में मारे गये। अज, सिगरू और चक्षु ने सुदास को कर दिया। इस प्रकार रावी नदी पर यह विराल युद्घ समाप्त हुआ। इसके पीछे सुदास ने यमुना नदी के किनारे भेद को पराजित करके उसका देश छीन लिया। इस प्रकार भेद सुदास का प्रजा हो गया। आर्यों का नागों से वेद में कोई युद्घ नही लिखा गया केवल एक बार इतना लिखा हुआ है कि पेदू नामक एक वीर पुरूष के घोड़े ने बहुत से नागों को मारा। इससे जान पड़ता है कि आर्यों का नागों से कोई छोटा सा युद्घ हुआ था विश्वामित्र ने अपने मंडल में भारतों का वर्णन बहुत सा किया इन लोगों की नाहुषों से एकता सी समझ पड़ती है। वेदों के आधार पर यह संक्षिप्त राजनैतिक इतिहास इसी स्थान पर समाप्त होता है। आगे के अध्याय में पुराणों का भी सहारा लेकर वेदिक समय का क्रमबद्घ इतिहास लिखा जाएगा।
आप वेदों से इतना ही इतिहास निकाल सके। अच्छा यदि यह इतिहास था तो इसे और भी कभी किसी ने लिखा? इसके उत्तर में आप कहते हैं कि इस युद्घ का वर्णन तथा उपर्युक्त सब वीरों, राजाओं और जातियों के नाम पुराणों से नही मिलते हैं। किंतु ऋग्वेद के सातवें मंडल में महर्षि वशिष्ठ ने इसका बड़ा हृदयकारी वर्णन किया है।
क्रमश:

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