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रक्त-रंजित मुद्रा की चकाचौंध

मुजफ्फर हुसैन
मांसाहार के दो रूप हैं-एक तो उसका भक्षण करना और दूसरा उसका व्यापार करना। अपने स्वाद अथवा उदरपूर्ति के लिए उसका उपयोग अत्यंत सीमित और निजी कारोबार में लग गये। नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क यानी स्कैंडेनिवयन देश दूध और मांस के धंधे में अग्रणी बने। बाद में ऑस्टे्रलिया और न्यूजीलैंड भी इस श्रेणी में आ गये। आज आस्टे्रलिया और न्यूजीलैंड ने सभी को पछाड़ दिया। इन देशों की सरकार ने मांस उद्योग के लिए कायदे कानून बनाये और जीवन में इसे अपनाकर उन्होंने अपने देश का विकास तय कर लिया। कितने पशु कटेंगे, किस आयु के कटेंगे और उनका मांस किस तरह से विदेश में जाएगा, इसके सख्त कानून बनाये गये। ऑस्टे्रलिया और न्यूजीलैंड न केवल मांस का व्यापार करते हैं बल्कि हज यात्रा के समय बड़ी संख्या में पशुओं का निर्यात भी करते हैं। उक्त पशु बड़ी संख्या में कुरबानी के काम में आते हैं। मनुष्य के व्यवसाय में पशु पालन एक महत्व का और बुनियादी धंधा रहा है, इसलिए कृषि प्रधान देशों ने उनके काटने के सख्त कानून और नियम बताए, ताकि संतुलन न बिगड़ सके। इसके साथ ही इन पशुओं की उपयोगिता वहां के प्रचलित धर्मों से जुड गयी। इसलिए उन्हें पवित्र मानकर उनके काटने और वध करने पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया। भारत में गऊ इसी श्रेणी का पशु है। वह कृषि का तो आधार है ही, धार्मिक दृष्टि से भी उसमें अनेक गुण हैं, इसलिए वह पूजनीय है। शाकाहारी होने के बावजूद भारत में भी मांसाहार प्रारंभ से प्रचलित रहा है।
क्रमश:

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