-मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से दुष्टस्त्री का भरण पोषण करने से और दुखी जनों के साथ व्यवहार करने से बुद्घिमान मनुष्य भी दुख उठाता है।
-कटु भाषिणी और दुराचारिणी स्त्री, धूर्त स्वभाव वाला मित्र उत्तर देने वाला नौकर और सर्प वाले घर में रहना-ये सब बातें मृत्यु स्वरूप है, इसमें कोई संदेह नही है।
-बुद्घिमान मनुष्य को चाहिए कि आपत्तिकाल के लिए धन का संग्रह और उसकी रक्षा करें। धन से भी अधिक पत्नी की रक्षा करनी चाहिए, परंतु धन और स्त्री से भी अधिक अपनी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि अपना ही नाश हो जाने पर धन और स्त्री का क्या प्रयोजन?
-किसी ने किसी धनी से कहा-आपत्तिकाल के लिए धन का संग्रह करना चाहिए। धनी बोला-श्रीमानों पर आपत्तियां कब आती हैं? वह मनुष्य बोला-यदि ऐसी बात है तो संचित की हुई संपत्ति भी नष्ट हो जाती है।
-जिस देश में न तो आदर सम्मान है न आजीविका प्राप्ति के साधन हैं, न बंधु बांधव हैं और न ही किसी विद्या की प्राप्ति की संभावना है ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए, ऐसे स्थान पर नही रहना चाहिए।
-जहां धनवान, वेदज्ञ ब्राह्मण, राजा नदी और वैद्य ये पांच विद्यमान न हों, ऐसे देश या स्थान में नही रहना चाहिए।
-जहां आजीविका या व्यापार, दण्डभय, लोकलज्जा, चतुरता, और दानशीलता-ये पांच बातें न हों ऐसे स्थान पर निवास नही करना चाहिए।

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