मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-15
गतांक से आगे…..
वेदों के ऐतिहासिक पुरूषों का अर्थात नहुष ययाति के स्वर्ग का वर्णन तो पुराणों मेें किया, पर इस युद्घ का वर्णन क्यों नही किया? बात तो असल यह है कि पुराण तो मिश्रित इतिहास कहते हैं। इसमें तो मिश्रण भी नही है, तो कोरे वैदिक अलंकार हैं, इंद्रवृत्त के वर्णन हैं और तारा तथा ग्रहों के योग हैं। इन योगों को ग्रहयुद्घ भी कहते हैं।
बारहवें अध्याय में पुराणों को लेकर जो वैदिक इतिहास दिया है, उसमें निम्न बातें मनुष्य के इतिहास की नही होतीं वे आकाशीय हंै। जैसा कि आप कहते हैं-
दैत्यों आदि के आर्य शत्रु कौन थे, सो ज्ञात नही। इनके शत्रु बहुत करके इंद्र ही कहे गये हैं। किंतु इसका भ्रम नही है कि इंद्र देवता मात्र थे अथवा कोई सम्राट भी। (पृ. 186) कहते हैं कि त्रिशंकु ने वशिष्ठ को विश्वामित्र से यज्ञ कराया और विश्वामित्र ने त्रिशंकु को सदेह स्वर्ग भेज दिया। (पृ. 188) राजा पुरूरवा का विवाह उर्वशी नाम्नी अप्सरा से हुआ, जिससे छह पुत्र हुए। उनमें आयु प्रधान है। (पृ. 191)। राजा पुरूरवा के नहुष का इतना प्रताप बढ़ा कि इंद्र पदवी प्राप्त हुई….इन्होंने इन्द्राणी शची के साथ विवाह करना चाहा, ऋषियों से अपनी पालकी उठवाई। वृत्त नामक किसी ब्राह्मण कुमार के वध करने के कारण इंद्र जातिच्युत हुए थे। ययाति को शुक्र की कन्या देवयानी और वृषपर्वा की कन्या शर्मिष्ठा ब्याही थीं। पुराणों में इनका दोहित्रों द्वारा स्वर्गच्युत होने से बचाने का हाल कहा गया है। (पृ. 194)।
इन वर्णनों से नही ज्ञात होता है कि यह सब मनुष्य थे। इंद्र, वृत्त, त्रिशंकु, विश्वामित्र, पुरूरवा, उर्वशी, नहुष, शुक्र और देवयानी आदि सब आकाशीय पदार्थ हैं। जिस दिवोदास को आप संबर का मारने वाला कहते हैं, वह पृथ्वी का मनुष्य कैसे हो सकता है? सम्बर तो मेघ का नाम है। इसी तरह चलने वाला किला भी मेघ है। वृत्त भी मेघ ही है। इंद्रवृत्र का अलंकार तमाम वेदों में भरा है।
इंद्र और वृत्र से संबंध रखने वाला समस्त वर्णन मेघ और विद्युत का है, जो आकाश ही में चरितार्थ हो सकता है। शेष आयु, नहुष और ययाति आदि के वर्णन हम यहां विस्तार से करते हैं। जिससे प्रकट हो जाएगा कि वेदों में इन नामों का संबंध किन पदार्थों से है।
वेदों में राजाओं का इतिहास
क्षत्रियों के सूर्य और चंद्र दो वंश प्रसिद्घ हैं। सूर्यवंश और चंद्रवंश दोनों की उत्पत्ति वैवस्वत मनु से है। सूर्यवंश का आदि पुरूष इक्ष्वाकु है और चंद्र का पुरूरवा। पुरूरवा के पूर्व बुध, चंद्र और अत्रि तीनों आकाशीय पदार्थ हैं। इसी तरह सूर्यवंश का मूल स्वयं सूर्य भी आकाशीय पदार्थ हैं। क्या इन सृष्टि के महान चमत्कारिक पदार्थों से मनुष्य पैदा हो सकते हैं? कभी नही।
तब समझना चाहिए कि इसका कुछ दूसरा ही भेद होगा।
भेद वही है ,जो पहले बतलाया गया है कि वेदों का चमत्कारिक वर्णन लोक के राजाओं के वर्णन के साथ जोड़ दिया गया है-सूर्य, चंद्र, बुध आदि नाम के राजाओं को वेदों के आकश स्थित सूर्य चंद्रादि के वर्णनों के साथ मिला दिया गया है।
वेद के तीन संसार हैं। एक संसार मनुष्य का शरीर है, दूसरा संसार इस पृथ्वी पर स्थित पदार्थों के सहित माना गया है और तीसरा संसार अंतरिक्ष है, जिसमें सूर्य , चंद्र नक्षत्र, विद्युत और वायु, मेघ तथा प्रकाशादि अनेक पदार्थ हैं। वेदों में इस आकाशस्थ संसार का वर्णन कम से कम आधा है। इसमें राजा है, ब्राह्मण है, आर्य हैं, क्षत्रिय हैं, ग्राम है, बीथी है, पुर है, युद्घ है, पशु हैं और अनेक प्रकार के अर्थभाव बताने वाले वर्णन भरे हुए हैं। यहां हम नमूने के लिए दो चार वर्णन देते हैं।
वहां के युद्घों का वर्णन इस प्रकार है-
इंद्राविष्णु दृहिता: शम्बरस्य नव पुरो नवतिं च श्नथिष्टम।
शतं वर्चिन: सहस्रं च साकं हथो अप्रत्यसुरस्य वीरान।।
अध्यर्ववो य: शतं शम्बरस्य पुरो विभेदाश्मनेव पूर्वी:।
यो वर्चिन: शतमिन्द्र: सहस्रमपावपद्ररता सोममस्मै।।
अर्थात विष्णु सूर्य ने शंबर बादलों के 99 नगर नष्ट कर दिये और सौ सहस्र तेजयुक्त असुर वीरों को मार दिया। जिस अध्वर्यु सूर्य ने शम्बर के एक सौ पुराने नगर वज्र से तोड़ डाले और जिस इंद्र ने असुर के तेजयुक्त सौ सहस्र वीरों को मार दिया, उसको सोम दो।
इस सेना का वर्णन इस प्रकार है-
इंद्र आसां नेता वृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञ: पुर एतु सोम:।
देवसेनानाममिमअतीर्ना जयंतीनां मरूतो यंत्वग्रम।
अर्थात इंद्र इसका नेता हुआ, वृहस्पति दाहिनी ओर, और सोम आगे चला। मरूद्रण, शत्रुओं को कुचलती हुई इस देव सेना के बीच में चले।
यहां के शादी-विवाहों का हाल पढिय़े-
सोमो वषुयुरभवदश्रिनास्तामुभा वरा।
सूर्या यत्पत्ये शम संती मनसा सविताददात।
अर्थात सोम ‘वधू’ चाहने वाला था, अश्विदेव ‘वधू’ के साथ थे और सूर्य ने मन से पति की इच्छा करने वाली सूर्या ‘वधू’ को पति के हाथ में समर्पण किया।
अब इनकी खेती किसानी देखिए-
देवा इमं मधुना संयुतं यवं सरस्वत्यामधि मणवचर्कृषु:।
इंद्र आसीत सीरपति: शतक्रतु: कीनाशा आसन्मरूत: सुदानव:।।
अर्थात देवताओं ने सरस्वती में मधुर यव की खेती की, जिसके सीरपति मालिक इंद्र हुए और किसान मरूदगण हुए।
क्रमश: