आओ प्रकृति के साथ मनाएँ

सनातन नव वर्ष अपना

– डॉ. दीपक आचार्य

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यों तो साल भर में अनेक नव वर्ष विभिन्न स्वरूपों में आते-जाते रहते हैं जिनका अपना-अपना वजूद है, परंपराएं हैं और मनाने के अंदाज हैं। एक वे नव वर्ष हैं जो इंसान अपनी सहूलियत से स्थापित करता है और उसे मनाकर आनंद पाने के जतन करता है और नव वर्ष मनाने के नाम पर इतनी धींगामस्ती और आडम्बर करता है जैसे कि अबकि बार का नव वर्ष उसके जीवन के लिए निर्णायक मोड़ लाने वाला संकल्प दिवस ही होकर रह गया हो।

लेकिन नव वर्ष की सभी परंपराओं में विक्रम संवत से जुड़ा नव वर्ष सनातन भारतीय परंपरा का वह सर्वोच्च समय है जब पूरी प्रकृति भी नवीनता और ताजगी के साथ जुड़ी होती है। चैत्री नव वर्ष सृष्टि के  सृजन से लेकर उत्सवधर्मिता के तमाम तत्वों से भरपूर होने के साथ ही वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है।

यह वह नव वर्ष है जिसमें व्यक्ति या समुदाय अकेला नहीं होता बल्कि पूरा परिवेश भी उसके साथ होता है।  दूसरे अर्थों में भारतीय नव वर्ष वह काल है जब प्रकृति अपने नित नूतन रंगों और रसों के साथ नव वर्ष मनाती है और मानवी समुदाय इस विराट उल्लास धारा में अपने आपको बहता तथा आनंद पाता महसूस करने लगता है।

नई कोंपलें नवजीवन का संदेश सुनाती हैं और हवाओं में रह रहकर प्रकृति का संगीत गूंजने लगता है। ज्योतिषीय काल गणना, परंपरागत पुराणों और शास्त्रों के परिपालन और भारतीय परंपराओं के उत्कर्ष को अभिव्यक्त करने वाला हमारा यह नव वर्ष तन-मन से लेकर विराट वैश्विक आनंद का ज्वार उमड़ाता है।

पर्व, उत्सव और त्योहारों का सीधा संबंध आंचलिकता से होता है और तभी ये अपनेपन के साथ आनंद देते हैं। कोई सा आयोजन हो, जिसमें स्थानीयता, आत्मीयता और आंचलिकता का लेश मात्र भी प्रयोग न हो तो ऎसे आयोजन सिर्फ तड़क-भड़क और एक दो दिन में सिमट जाने वाले साबित होते हैं जिनका कोई दूरगामी असर कभी नहीं हो पाता। ऎसे आयोजनों में मन हीन और श्रद्धा हीन औपचारिकताओं के सिवा कुछ नहीं हुआ करता।

ये आयोजन सिर्फ परंपरा निर्वाह भर होकर रह जाते हैं और सिर्फ उन्हीं लोगों को आनंद दे पाते हैं जिनका जीवन येन केन प्रकारेण सिर्फ आनंद पाना ही रह गया होता है। भारतीय नव वर्ष के साथ ऎसा नहीं है। यहाँ मनुष्य के हृदय से लेकर परिवेश के हर कोने तक नई ताजगी का अहसास होता है। इसमें प्रकृति भी गाती है और मनुष्य भी।

पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक में नवीन ऊर्जाओं का संचार होता है, हर तत्व अपने आप में नई ताजगी का संचरण अनुभव करता है और उत्सवी श्रृंखलाएं जिस आनंद के साथ आरंभ होती हैं उन्हें देख लगता है कि यह नव वर्ष सिर्फ एक दिन का उल्लास नहीं होकर कई दिन तक चलने वाला आनंद का महासागर है।

व्यक्ति के पास चाहे कितने भोग-विलासी उपकरण हों, आनंद देने के सारे कारक मौजूद हों मगर प्रकृति अनुकूल न हो तो इन उपकरणों का कोई अर्थ नहीं है। जिसके साथ मन का उल्लास नहीं है, प्रकृति अनुकूल नहीं है उनके लिए आनंद की कल्पना करना व्यर्थ है। यह ठीक वैसे ही है कि बाहर कितना ही खराब माहौल हो और बीमार आदमी आईसीयू में एसी में बैठा हो, मगर एसी में होने के बावजूद उसे जीवन का आनंद प्राप्त नहीं है।

परिवेश और प्रकृति का संगीत न हो तो दिल के दरवाजे भी आनंद के लिए बंद रहते हैं। भारतीय नव वर्ष की परंपराओं का यह नव वर्ष अपने आप में प्रकृति का उत्सव है जिसमें आंचलिकता और भारतीयता की आत्मा समायी है और इसलिए अपना यह नव वर्ष देवी-देवताओं, प्रकृति,पंच तत्वों, परिवेश और हर दृष्टि से आनंद का महासृजक है।

भारतीय नव वर्ष अपने भीतर उन सारे तत्वों का पुनर्भरण कर देता है जो एक इंसान के लिए जीवन निर्वाह में संबल और उत्प्रेरक है। यह दिन इंसान के प्रकृति और समुदाय के सरोकारों को आकार देने से संबंधित है। हम सभी को चाहिए कि सृष्टि के आविर्भाव दिवस को पूरे मन से मनाएँ ।

जो अपना है उसे अपना कहने और स्वीकार करने से हिचकने वाले लोग खुद अपने भी नहीं हो सकते, फिर बात चाहे इंसान की हो,परंपराओं की या किसी देश की। भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक वैभव को जो लोग स्वीकार नहीं कर पाते, वे आज भले ही पाश्चात्यों के तलवे चाटकर च्यूंइगम का आनंद पाते रहें मगर जो अपनी संस्कृति और संस्कारों में नहीं जीता, उसे हर दृष्टि से मृत माना गया है। अपना देश- अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं में जीने वाले लोग ही देश और दुनिया को कुछ दे सकते हैं, बाकी सारे वे लोग हैं जो भिखारियों की तरह लेने ही लेने को जिंदगी मानते हैं फिर चाहे वह बाहरी आनंद हो या और कुछ।

इसी दिन से नवीन पंचागों का आरंभ होता है क्योंकि भारतीय जीवन पद्धति पंचागों और ज्योतिषीय काल गणना पर आधारित है। हमारी संस्कृति, संस्कार और परंपराओं का अनुरक्षण करते हुए पूरी आत्मीयता के साथ भारतीय नव वर्ष मनाएं और संकल्प लें अपनी महान परंपराओं और आदर्शों पर चलते हुए सृष्टि को कुछ देने का।

भारतीय नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएँ …..

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