किसी भी देश का रत्न वही व्यक्ति हो सकता है जो देश की अनुपम सेवा करने में अपनी सर्वमान्यता सिद्ध कर चुका हो। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर या किसी संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए या किसी वर्ग विशेष का तुष्टीकरण करते हुए अपनी राजनीति की है या अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है तो वह व्यक्ति किसी भी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान का अधिकारी नहीं हो सकता ।
दुर्भाग्यवश भारत में कई बार ऐसे लोगों को या तो ‘भारत रत्न’ देने की मांग की गई है या दे दिया गया है , जिनका राजनीतिक व्यक्तित्व विवादास्पद रहा है।
अब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सोनिया गांधी और मायावती को ‘भारत रत्न’ देने की बात कही है । इन दोनों के बारे में हरीश रावत जी का कहना है कि उनकी राजनीति से किसी की असहमति हो सकती है , परंतु उन्होंने नारी सम्मान के लिए देश में जो कुछ किया है , इसके दृष्टिगत वह ‘भारत रत्न’ की हकदार हैं ।
हमें सोनिया गांधी या मायावती के प्रति किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं है। निश्चित रूप से वह हमारे लिए भी सम्मान की पात्र हैं । परंतु जहां तक ‘भारत रत्न’ देने की बात है तो मायावती का व्यक्तित्व ऐसा नहीं है कि जो पूरे देश में स्वीकृति प्राप्त कर चुका हो। उनका दलित होना ही ‘भारत रत्न’ उनके बनने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता । यद्यपि वह आज राजनीति के जिस मुकाम पर खड़ी हैं वह उन्होंने केवल और केवल दलित होने के कारण ही प्राप्त किया है। वे दलित का शोर अपने लिए केवल इसलिए मचाती हैं कि इससे उनको राजनीतिक लाभ होता है ।उन्होंने संविधान की शपथ ले लेकर जातिवाद का प्रचार प्रसार किया।
राजनीति में रहकर और संवैधानिक पदों पर बैठकर जब कोई व्यक्ति जातीय द्वेष भाव के साथ काम करता है तो उससे बड़ा संविधानिक अपराध कोई नहीं हो सकता । किसी भी राजनीतिक व्यक्तित्व की कार्यशैली और व्यवहार का हमें इसी आधार पर अवलोकन करना चाहिए कि उसने देश में जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद को यदि बढ़ावा दिया है तो वह भारत रत्न पाने का अधिकारी नहीं हो सकता। संविधान की मूल आत्मा भी भारत रत्न देने के लिए उस व्यक्तित्व की ओर संकेत करती है जो इन सारे वादों से ऊपर हो और इनको मिटाने के लिए संकल्पित रहा हो।
उत्तर प्रदेश में सारी सरकारी जमीन को किसी खास वर्ग और जाति के लोगों को दे दिया और फिर उसके पश्चात जिस प्रकार सरकारी खजाने को मूर्तियों पर खर्च किया वह सब भी हमसे छुपा नहीं है । ‘भारत रत्न’ देने का अभिप्राय है कि इन सब असंवैधानिक कार्यों पर पूरे देश की सहमति की मुहर लग जाना।
हमें किसी खास वर्ग या जाति के लोगों को पट्टे पर दी गई सरकारी जमीन को देने से भी कोई किसी प्रकार की आपत्ति नहीं है, निश्चित रूप से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए दलित ,शोषित, समाज के लोगों को सरकारी संरक्षण प्राप्त होना चाहिए। परंतु किसी खास वर्ग या जाति को सरकारी भूमि जब इसलिए बांट दी जाए कि वह किसी पार्टी या नेता का वोट बैंक हो जाएगा तो इन नेताओं की ऐसी सोच पर निश्चय ही आपत्ति होती है।
मायावती दलित ,शोषित और उपेक्षित लोगों के सामाजिक उत्थान में किसी भी प्रकार सहायक नहीं हो पाईं। सरकारी जमीन को लुटा देने का अभिप्राय उनके सामाजिक उत्थान की गारंटी नहीं है । इतना ही नहीं उन्होंने एससी वर्ग के लोगों में भी एक ऐसा वर्ग खड़ा कर दिया है जो अपने ही वर्ग के लोगों का शोषण कर रहा है और उनके अधिकारों का हनन करने में सबसे आगे है । एससी वर्ग में भी एक ऐसा वर्ग खड़ा हो गया है जो अपने आपको अगड़ा मानता है और पिछड़े व दलित लोगों को वैसे ही अपने घरों से या अपने मोहल्लों तक से दूर रखता है जैसे कभी सामंती सोच के लोग रखा करते थे। इस प्रकार वर्ग के भीतर एक वर्ग खड़ा करना किसी भी प्रकार से देश सेवा नहीं हो सकती।
इसके अतिरिक्त हमारे देश के संविधान की व्यवस्था यह है कि सामाजिक समरसता उत्पन्न करना प्रत्येक व्यक्ति का और राजनीति दल का काम होगा, लेकिन यहां सामाजिक समरसता के स्थान पर सामाजिक विषमता को जातिवाद के नाम पर राजनीति कर करके और अधिक गहरा कर दिया गया है। जो खाई भर जानी चाहिए थी ,उसको और चौड़ा कर देना किस आधार पर भारत रत्न की दावेदारी का एक मजबूत आधार हो सकता है ? हरीश रावत जी को मायावती जी के संदर्भ में यह बात निश्चय ही स्पष्ट करनी चाहिए।
जिन लोगों ने संविधान और संविधान की भावना के साथ खिलवाड़ किया है उनके विषय में सच ही तो है : –
कायर नहीं है यारों हम ना युद्ध कोई हम हारे हैं।
घर में छुपे जयचंदों ने पीठ पे खंजर मारे है ।।
जहां तक सोनिया गांधी की बात है तो उन्होंने देश में जिस प्रकार की राजनीति की उससे देश के बहुसंख्यक वर्ग के हितों की उपेक्षा करते हुए उनके साथ खिलवाड़ किया गया। बहुसंख्यक वर्ग के हितों की उपेक्षा करने की राजनीति को और भी अधिक गति सोनिया गांधी ने दी है , वह अपने मूल देश इटली के अपने मूल धर्म के प्रति समर्पित रही हैं और भारत देश के युवाओं में इस भाव को बैठाने के लिए प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रयासरत रही हैं कि ईसाइयत एक प्रगतिशील धर्म है जबकि हिंदू रूढ़िवादी सोच का धर्म है। वह गार्गी ,मदालसा, सीताजी और कुंती जैसी महान नारियों के विचारों के अनुसार भारत को बनाने के लिए कभी भी न तो संकल्पित रही हैं और न उस दिशा में काम करने का उन्होंने कभी संकेत मात्र भी दिया है। भारत को भारत के रूप में समझने में भी वह सर्वथा असफल रही हैं। उन्होंने इस देश को गवारों, मूर्खों और ऐसे लोगों का देश समझा है जो जंगली रहे हैं और जिन्हें ईसाइयत ने यहाँ आकर आधुनिकता का पाठ पढ़ाया है। इसलिए वह यह भी समझती हैं कि ईसाइयत के माध्यम से ही भारत का उत्थान और कल्याण हो सकता है।
यही कारण रहा कि सोनिया ने देश में ईसाई मिशनरियों , ईसाई चर्च और इन मिशनरियों व चर्चों की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी । वह हिंदू समाज के प्रति, हिंदू समाज की मान्यताओं और आस्थाओं के प्रति कभी उदार रही हों, ऐसा कहा नहीं जा सकता । मोरारजी देसाई ने इनके पति के नाना अर्थात पंडित जवाहरलाल नेहरू के विषय में कहा था कि वह हिंदू धर्म के प्रति पता नहीं क्यों पूर्वाग्रह ग्रस्त रहते हैं ? गांधी नेहरू परिवार की इसी परंपरा को सोनिया गांधी ने और भी अधिक मजबूती प्रदान की।
किसी भी देश का रत्न वही व्यक्ति हो सकता है जो देश की अनुपम सेवा करने में अपनी बौद्धिक क्षमताओं को सिद्ध कर चुका हो। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर या किसी संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए अपनी राजनीति की है या अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है तो वह व्यक्ति किसी भी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान का अधिकार नहीं हो सकता। दुर्भाग्यवश भारत में कई बार ऐसे लोगों को या तो भारत रत्न देने की मांग की गई है या दे दिया गया है जिनकी राजनीति या व्यक्तित्व विवादास्पद रहा। सोनिया गांधी ने मुस्लिम और ईसाइयत के प्रति तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए हिंदू समाज का जितना अहित किया है ,उतना अन्य किसी कांग्रेसी नेता ने नहीं किया। वह अपने समय में ‘सुपर पीएम’ के रूप में प्रसिद्ध रहीं और इसी रूप में संविधानिक व्यवस्था से ऊपर रहकर उन्होंने संविधान की मर्यादा का भी अपमान किया।
सोनिया गांधी की कृपा से पूर्वोत्तर की लगभग 12 सीटों पर ईसाई समुदाय का नियंत्रण हो चुका है । यही कारण है कि पूर्वोत्तर में अलगाववाद की बातें बार-बार सुनने को मिलती हैं। सोनिया गांधी को ईसाई लोगों की ओर से उठ रही इन मांगों में कभी भी देश विरोध या देश के प्रति गद्दारी का भाव दिखाई नहीं दिया।
युद्धों में कभी नहीं हारे , हम डरते है छलचंदों से।
हर बार पराजय पाई है , अपने घर के जयचंदों से।।
सोनिया गांधी की कृपा और उनके रहते सरकार की ओर से दी गई विशेष सुविधाओं के चलते ईसाई भारत की 1 / 12 भूमि पर अपना वर्चस्व स्थापित कर चुके हैं । इसमें नागालैंड , अरुणाचल प्रदेश , मिजोरम आदि क्षेत्र सम्मिलित है । जिन्हें वह ‘ईसालैंड ‘ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। जिस महिला ने यहां पर अलगाववाद को बढ़ावा देने के लिए ईसाईकरण की प्रक्रिया को तेज किया उसी को भारत ने सोनिया की कृपा से भारत रत्न देकर सम्मानित किया ।
सोनिया गांधी के अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के चलते इंदिरा गांधी के समय में और उसके पश्चात जब राजीव गांधी की अपनी सरकार बनी तो प्रत्यक्ष रूप से उनके ही हस्तक्षेप के चलते कॉंग्रेस ने इस बात की अनदेखी की कि मदर टेरेसा पूर्वोत्तर भारत में किस प्रकार हिंदुओं का धर्मांतरण करा रही हैं ? क्योंकि उन्हें वोटों की चिंता थी , देश की चिंता नहीं थी । इसी प्रकार सभी सेकुलर पार्टियों के मौन समर्थन के चलते और सोनिया के आशीर्वाद की छत्रछाया में यह ‘विषकन्या मदर टेरेसा ‘ भारत के मिजोरम की 90% जनता को , नागालैंड की 80% , मेघालय की 72% और पहाड़ी क्षेत्रों की तो लगभग 95% जनता को ईसाई बना गई।
हम उसकी करुणा , दया , उदारता , मानवता के गीत गाते रहे और वह भारत के विभाजन की एक नई इबारत लिख गई। आज सोनिया गांधी को ‘भारत रत्न’ देकर क्या यह बौद्धिक सम्पदा संपन्न प्राचीन राष्ट्र भारत इन सारे अपराधों पर अपनी सहमति की मुहर लगाएगा?
जो लोग मदर टेरेसा को महान मानते हैं उनसे यह प्रश्न किया जा सकता है कि यदि वह महान थी और मानवतावाद में विश्वास रखती थीं तो उन्होंने उन लोगों की ही सहायता या सेवा करने का संकल्प क्यों लिया जो ईसाई बन जाएंगे या बन रहे थे ,? मानवता तो सभी के लिए समान होती है उसके लिए यह आवश्यक नहीं कि पहले आपके धर्म में कोई व्यक्ति दीक्षित हो और उसके पश्चात आप उसकी सेवा करें ? स्पष्ट है कि वह लालच से देश के हिंदु धर्म के लोगों को तोड़कर अपनी कार्य सिद्धि करना चाहती थीं। जब मदर टेरेसा तथाकथित रूप से मानवता की सेवा करते हुए देश की राष्ट्रीयता की जड़ पर प्रहार कर रही थी तब सोनिया गांधी की कांग्रेस सहित हमारे किसी भी सेकुलर नेता की नींद नहीं टूटी , अपितु वह शांत रहकर हिंदूद्रोही और भारत द्रोही होने का अपना प्रमाण देता रहा।
करके पहरेदारी सरहद पे
क्या लाभ हमें मिल पायेगा।
जब होंगे छिपे जयचंद घरो में
तो उनसे कौन फिर लड़ पायेगा ।।
मदर टेरेसा के इन्हीं देशद्रोही कार्यों से प्रेरित होकर 13 जनवरी 1997 को चेन्नई में संपन्न हुई ‘ मिशन इंडिया – 2000 ‘ कांफ्रेंस में यह तय किया गया था कि — ” हमारा लक्ष्य होगा भारत के कोने कोने में एक लाख चर्च की स्थापना करना और फिर उन चर्चों के द्वारा हिंदुओं को ईसाइयत में दीक्षित करना। “
सोनिया गांधी भारत में रहकर ईसाइयत की ऐसी सोच और लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक रहीं। हरीश रावत को अब उनके विषय में भी यह स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने देश की गरिमा या नारी की गरिमा के लिए काम किया या देश की गरिमा और देश की संस्कृति को नष्ट करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया?
सोनिया गांधी के विषय में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ठीक ही कहा है कि यदि उन्हें भारत रत्न लेना था तो वह अपनी सरकार के रहते इसे उसी समय प्राप्त कर लेतीं। वैसे भी कांग्रेस की यह परंपरा रही है कि इसके नेता अपने जीते जी बड़ा सम्मान लेने में सबसे आगे रहे हैं। नेहरू जी ने अपने जीते जी ही भारत रत्न लेने की युक्तियां भिड़ा ली थीं, जिसमें वह सफल भी हो गए थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत