-जनता के हित के लिए लाया जाने वाला जनहित वाद है। जहां केाई व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के मौलिक अधिकारों के अतिक्रमण के कारण विधिक क्षति होती है, और वे सामाजिक या आर्थिक अयोग्यता के कारण न्यायालय जाने में असमर्थ हैं। तो कोई भी व्यक्ति अनुच्छेद-32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय व अनुच्छेद-226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकते हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मूल अधिकारों के अतिक्रमण के संबंध में व्यक्तिगत शिकायती पत्र को भी याचिका के रूप में स्वीकार किया गया है।
-अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ बनाम यूनियन ऑफ इंडियन ्रढ्ढक्र १९८१ स्.ष्ट २९८ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यदि कोई व्यक्ति निर्धनता के कारण न्यायालय जाने में असमर्थ है तो उसकी ओर से कोई भी अन्य व्यक्ति या संगठन न्यायालय जा सकता है।
-बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ ्रढ्ढक्र १९८१ स्.ष्ट ८०३ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आवश्यक मात्र यह है कि ऐसे मामलों में जनता का व्यापक हित निहित हो जिसमें जनसाधारण के व्यापकहित हों, किसी का निजी हित निहित न हो, सदभावनापूर्वक हो तथा राजनीति से प्रेरित न हो।
-गुरूवयूर देवासन मैनेजिंग कमेटी बनाम सी.के राजन ्रढ्ढक्र २००४ स्.ष्ट ५०१ के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अभि निर्धारित किया कि लोकहित वाद का मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को न्याय उपलब्ध कराना है।
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