नेता बना रहे हैं देश का मूर्ख
मुजफ्फरनगर दंगों के विषय में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि ये दंगा सरकार की लापरवाही से भड़का था। सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार को दंगा रोकने के लिए आवश्यक उपाय न करने और लापरवाही बरतने के लिए उत्तरदायी माना है। इसके लिए माननीय न्यायालय ने दोषी अधिकारियों के विरूद्घ कार्रवाही करने हेतु भी यू.पी. सरकार से कहा है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के बाद मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर समाज की इस लोकधारणा की पुष्टि हो गयी है कि इन दंगों के लिए सरकार और सरकारी तंत्र ही जिम्मेदार था। यदि समय पर दोषी लोगों के विरूद्घ कड़ी कार्यवाही हो गयी होती और प्रारंभ में ही पीडि़त पक्ष को प्रशासन न्याय दे देता तो जितना अनिष्ट बाद में हुआ, वह ना हुआ होता। लेकिन देश में जब लाशों पर राजनीति करने को ही धर्मनिरपेक्षता का पर्याय कुछ लोगों ने स्थापित कर दिया हो तो उस समय न्याय और सत्य कहीं दबकर रह जाता है, जो बातें बाहर निकलकर आती हैं उनमें मिथ्या बकवास के इतने लपेटे लगे होते हैं कि सत्य को पहचान पाना ही कठिन हो जाता है। तब उस अंधेरी रात में कहीं न्यायालयों से हमें कुछ प्रकाश आता दीखता है और देश व समाज के लिए कुछ करते रहने वाले लोगों को कुछ प्राणवायु भी मिल जाती है।
छदम धर्मनिरपेक्षता के पैरोकारों ने महजबी आधार पर तुष्टिकरण करते-करते पंथ निरपेक्षता के पक्षधर भारत को एक मजहबी देश बनाकर रख दिया है। जबकि भारत सदियों से नही युग युगों से एक पंथ निरपेक्ष देश रहा है। तभी तो इस देश के हिंदू समाज में विभिन्न संप्रदायों को अपने अपने इष्ट की पूजा पाठी करने और अपने ढंग से उसकी पूजा हेतु साहित्य का निर्माण करने की पूरी छूट रही है। इसी आदर्श व्यवस्था के अनुसार संप्रदाय को सदा ही व्यक्ति का निजी विषय माना जाता रहा है। परंतु उस पर अनिवार्यत: देश के प्रति समर्पित रहने की शर्त अवश्य थोपी गयी है। परंतु आज के राजनीतिक परिवेश में आप मां भारती के प्रति समर्पित हों न हों, ‘वंदेमातरम’ बोलें या न बोलें यह आपकी मर्जी। इस छूट की व्यवस्था आज की राजनीति करती है और इसी घातक छूट के लिए हमारे राजनीतिज्ञ एक वर्ग के तुष्टिकरण के लिए सारी सीमाओं को लांघने के लिए भी तैयार रहते हैं।
देश में ऐसा परिवेश बनाया जाना चाहिए था कि प्रत्येक व्यक्ति देशभक्ति की जीती जागती मिशाल और मशाल बन जाता ताकि ये विशाल देश महान बनता। लेकिन यहंा पहले दिन से ही वो बातें की जाने लगीं जिनका देश के लिए केाई औचित्य नही था। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने कह दिया है कि पाकिस्तान के मददगार तीन एके-एके 47, एके 49 (अरविंद केजरीवाल) और रक्षामंत्री एके एंटोनी हैं। हम राजनीति में नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप के वक्तव्यों को अधिक सार्थक नही मानते, परंतु फिर भी मोदी का वक्तव्य निरर्थक नही है। एके-47 किसके हाथों में हैं और किसके विरूद्घ? यह निश्चित रूप से जांच का विषय है। अरविंद केजरीवाल दिल्ली में 49 दिन सरकार के मुखिया रहे तो उनकी पार्टी की वेबसाइट पर भारत का गलत नक्शा प्रकाशित किया गया और प्रशांत भूषण ने कश्मीर में जनमत संग्रह की बात कह दी, मेरठ में एक विद्यालय में अध्ययन कर रहे मुस्लिम छात्रों ने भारत-पाक मैच में पाक की जीत पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाये। एके एंटोनी का ‘पाक प्रेम’ भी जगजाहिर है। कहने का अभिप्राय है कि ये सारी चीजें हमें किधर ले जा रही हैं और क्या संकेत या संदेश दे रही हैं? यह भी तो समीक्षा का विषय है। निश्चित रूप से राजनीति कहीं बिकी है और वह देश के शत्रुओं के साथ दुरभिसंधि कर रही है। इस दुरभिसंधि को देश में कुछ लोगों को खुश करने के लिए तथा उनके मत पाने के लिए राजनीतिक लोग धर्मनिरपेक्षता के साथ जोड़कर देखते हैं। तब नरेनद्र मोदी के उक्त वक्तव्य और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के आलोक में यह अनिवार्य हो जाता है कि देश में राजनीति को देशभक्ति पूर्ण बनाने के लिए व उच्च राजनीतिक मूल्यों की स्थापनार्थ एक ऐसी राष्ट्रीय समिति का गठन किया जाए जो राजनीति के गिरते मूल्यों को ऊंचा उठा सके और देश के लिए तपे तपाये राजनीतिज्ञों का निर्माण कर सके, लोकतंत्र के नाम पर देश का मूर्ख अधिक देर तक नही बनाया जा सकता।