“सनातन धर्म, जिसे अब हिन्दू धर्म कहा जाता है, वह केवल एक धर्म नहीं, बल्कि पूरी सभ्यता है जो अनगिन युगों से फलती-फूलती रही है, और जो कई प्रकार के हिंसक साम्राज्यवादों से लम्बे संघर्ष के बाद अपने स्वरूप में खड़े होने के लिए संघर्ष कर रही है। दूसरी ओर, मैं इस्लाम और ईसाईयत को कोई ‘धर्म’ बिलकुल नहीं मानता। मेरे लिए वे नाजीवाद और कम्युनिज्म की तरह साम्राज्यवाद के विचारतंत्र है, जो एक प्रकार के लोगों द्वारा दूसरे प्रकार के लोगों पर हमले को किसी ईश्वर के नाम पर उचित ठहराते है जिसे पैगम्बर के रूप में आतताइयों ने अपने अनुरूप गढ़ लिया था।
*- इतिहासकार, लेखक-चिन्तक स्व. सीताराम गोयल*
(स्रोत: ‘मैं हिन्दू कैसे बना’, पृ. ९५-९६)