भारत के संदर्भ में सेकुलरिज्म का सही अर्थ क्या हो सकता है
“सनातन धर्म, जिसे अब हिन्दू धर्म कहा जाता है, वह केवल एक धर्म नहीं, बल्कि पूरी सभ्यता है जो अनगिन युगों से फलती-फूलती रही है, और जो कई प्रकार के हिंसक साम्राज्यवादों से लम्बे संघर्ष के बाद अपने स्वरूप में खड़े होने के लिए संघर्ष कर रही है। दूसरी ओर, मैं इस्लाम और ईसाईयत को कोई ‘धर्म’ बिलकुल नहीं मानता। मेरे लिए वे नाजीवाद और कम्युनिज्म की तरह साम्राज्यवाद के विचारतंत्र है, जो एक प्रकार के लोगों द्वारा दूसरे प्रकार के लोगों पर हमले को किसी ईश्वर के नाम पर उचित ठहराते है जिसे पैगम्बर के रूप में आतताइयों ने अपने अनुरूप गढ़ लिया था।
अब जब भारत इस्लामी और ईसाई सत्ताओं को हरा कर भगा चुका है, मैं उनके लिए भारत में अब कोई स्थान नहीं देखता। मैं इस्लाम और ईसाईयत का इस भूमि पर उनके मिशन या प्रशिक्षण केन्द्र चलाने का अधिकार स्वीकार नहीं करता जो हिन्दुओं के विरुद्ध युद्ध चलाने के लिए मिशनरी तैयार करते है। मेरे लिए ऐसे सेक्युलरिज्म की कोई उपयोगिता नहीं जो हिन्दू धर्म को केवल एक और धर्म मानता हो, तथा इस्लाम और ईसाईयत के बराबर रख देता हो। मेरे विचार से, सेक्युलरिज्म का ऐसा अर्थ करना पश्चिम में उभरी इस धारणा की घोर विकृति है जो ईसाईयत के विरुद्ध विद्रोह से पैदा हुई थी, और जिसका भारतीय सन्दर्भ में अर्थ इस्लाम के विरुद्ध भी विद्रोह होना चाहिए था।”
*- इतिहासकार, लेखक-चिन्तक स्व. सीताराम गोयल*
(स्रोत: ‘मैं हिन्दू कैसे बना’, पृ. ९५-९६)