अंग्रेज जितना अपनी नींव को भारतवर्ष में जमाने का प्रयास कर रहे थे उतना ही भारतीय जनता उनके खिलाफ हो रही थी। इसका प्रभाव राजपूताना क्षेत्र में नसीराबाद, देवली ,अजमेर, कोटा ,जोधपुर आदि जगह पर भी देखने को मिला था। राजपूताना में उस समय अट्ठारह रजवाड़े थे और वे सभी देशी शासक अंग्रेज राज्य के प्रबल समर्थक थे । फिर भी यहां के छोटे जागीरदारों एवं जनता का मानस अंग्रेजों के विरुद्ध था। जिसके फलस्वरूप मेरठ में हुई क्रांति का प्रभाव पड़ा।
मारवाड़ के तत्कालीन महाराजा तखतसिंह कोटा के महाराव रामसिंह दोनों अंग्रेज भक्त थे फिर भी मारवाड़ में आउवा के ठाकुर कुशल सिंह के नेतृत्व में 8 सितंबर को तथा कोटा में लाला जय दयाल एवं मेहराब खान पठान के नेतृत्व में 15 अक्टूबर 1857 को मारवाड़ में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह भड़क गया था।
तत्कालीन अंग्रेज मेजर बर्टन चाहता था कि महाराज अपनी सेना में विद्रोह फैलाने वाले जयदयाल आदि 57 अफसरों को गिरफ्तार कर उन्हें दंडित करें अथवा उन्हें अंग्रेजों के हवाले कर दिया जाए । 14 अक्टूबर को मेजर बर्टन दरबार से मिलने गढ़ में गए और पुनः अपनी बात दोहराई। महाराज रामसिंह पूर्णत: अंग्रेज शक्ति और अपनी सेना के विद्रोही रुख को भी भली-भांति पहचानते थे। फिर भी यह उनके वश में नहीं था कि वह जयदयाल कायस्थ और मेहराब आदि सेनापतियों को गिरफ्तार करके उन्हें दंड दे सके। इसलिए उसने मेजर बर्टन की राय नहीं मानी। लेकिन बर्टन की इस राय के जाहिर होने पर फौज भड़क उठी और 15 अक्टूबर 18 57 को एकाएक सेना और जनता ने एजेंट के बंगले को चारों ओर से घेर लिया। कोटा नगर के बाहर नयापुरा में मौजूद कलेक्ट्री के पास स्थित वर्तमान बृजराज भवन में रहता था। विद्रोहियों ने एजेंट के बंगले पर 4 घंटे तक गोलाबारी की ।बाकी कुछ लोग सीढी लगाकर बंगले में घुस गए। वह छत पर पहुंचे और मेजर तथा उसके दोनों पुत्रों को तलवार से मौत के घाट उतार दिया।
बर्टन का सिर काटकर कोटा शहर में घुमाया और तोप से उड़ा दिया ।
इसके बाद सारे कोटा नगर पर विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया। महाराव गढ़ में अपने कुछ राजपूत सरदारों के साथ असहय अवस्था में बंद हो गए ।विद्रोहियों का कब्जा कोटा नगर 20 अप्रैल 1858 तक 6 माह रहा। महाराज की सेना अंग्रेजी सेना विद्रोहियों के मध्य अनेक लड़ाइयां होती रही। इससे पहले मार्च के महीने में चंबल की तरफ से अंग्रेजी सेना आ चुकी थी। महाराज ने कुछ राजपूत सरदारों को बुला लिया था और फिर 27 अप्रैल 1818 को कोटा पर फिर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। अब तो अंग्रेजों ने अत्याचार बढ़ा दिए । लड़ाई में अनेकों विद्रोही नेता मारे गए और स्वतंत्रता सेनानियों में भगदड़ मच गई। अधिकतर के सिर कटवा दिए गए । लाला जयदयाल और महाराज बचकर निकल गए थे । उन्हें मालवा और मध्य भारत की तरफ से गिरफ्तार करके कोटा लाया गया और इन दोनों आजादी के दीवानों को अंग्रेजी सरकार ने कोटा महाहराव पर दबाव डालकर पोलिटिकल एजेंट की उपस्थिति में नयापुरा में फांसी लगाई गई। जहां अदालत के सामने चौराहे पर शहीद स्मारक बना हुआ है।
किसी ने सच ही तो कहा है :-
जिनकी लाशों पर चलकर यह आजादी आई।
उनकी याद लोगों ने बहुत ही गहरे में दफनाई।।
महत्वपूर्ण तथ्य
सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जहां गुर्जर कोतवाल धन सिंह चपराना , गुर्जर राव उमरावसिंह आदि का अग्रणी योगदान रहा ,वहीं पर विजयसिंह पथिक गुर्जर जो मूल रूप से जिला बुलंदशहर के रहने वाले थे, का भी विशेष योगदान हैं। क्योंकि कोटा की इसी घटना से प्रेरित होकर विजय सिंह पथिक, केसरी सिंह बारहठ और नयन राम शर्मा में हाड़ौती में क्रांति का शंखनाद किया था।
विजय सिंह पथिक गुर्जर की प्रेरणा पर राजस्थान सेवा संघ के कार्यकर्ता साधु सीताराम दास, रामनारायण चौधरी ,हरिभाई किंकर, माणिक्य लाल वर्मा ,नयन राम शर्मा ने बेगा सर प्रथा, भारी लगान अनेक लागत और छोटे जागीरदारों द्वारा किए अत्याचारों से जनता को छुटकारा दिलाने के लिए आंदोलन व सत्याग्रह प्रारंभ किए और जेल की यातनाएं सही।
आधुनिक विश्व में यदि विजयसिंह पथिक गुर्जर को सत्याग्रह के जन्मदाता कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। भारत में सबसे पहले श्री पथिक ने बिजौलिया सत्याग्रह का सूत्रपात किया था ।सत्याग्रह के कथित प्रवर्तक महात्मा गांधी ने उसके पश्चात चंपारण में सत्याग्रह का चमत्कार किया था।
एक बार जब किसी ने गांधी जी से सत्याग्रह शब्द की व्याख्या करने को कहा तब गांधी ने उत्तर दिया था कि सत्याग्रह के बारे में जानना चाहते हो तो पथिक से जाकर पूछो ।बाद में जोरावर सिंह, प्रताप सिंह बारहठ परिवार ,पंडित अभिन्न हरी ,शंभू दयाल सक्सेना ,बेनी माधव शर्मा, रामेश्वर दयाल सक्सेना, अर्जुन सिंह वर्मा, हीरालाल जैन ,भेरूलाल ,काला बादल ,जोरावर मल जैन, कुंदनलाल चोपड़ा ,श्याम नारायण सक्सेना ,तनसुख लाल मित्तल, सेठ मोतीलाल जैन ,शिव प्रताप श्रीवास्तव, गोपाल लाल ,संत नित्यानंद, मेहता गोपाल लाल कोटिया, मांगीलाल भव्य आदि अनेक नेता और कार्यकर्ता स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हाडोती के जनमानस पर उभर कर आए। छात्र नेताओं में नाथू लाल जैन ,सुशील कुमार त्यागी, सीताशरण देवलिया, रमेश ,अनिल ,इंद्र दत्त, स्वाधीन पंडित बृज सुंदर शर्मा ,रामचंद्र सक्सेना आदि अनेक नवयुवक छात्र राष्ट्र सेवा के क्षेत्र में उतरे। जिन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से श्री विजय सिंह पथिक और केसरी सिंह बारहट के अनुपम त्याग और बलिदान से प्रेरणा मिलती रही।
इस प्रकार विजय सिंह पथिक का भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन में विशेष और महत्वपूर्ण स्थान है । पथिक जी ने न केवल गांधी जी का मार्गदर्शन किया बल्कि अन्य अनेक नेताओं का निर्माण कर उन्हें भी देश की स्वाधीनता के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर अनेकों लोगों ने अब जाकर शोध करना आरंभ किया है। तब इस महान व्यक्तित्व का नाम हमारे देश के लोगों के संज्ञान में आना आरंभ हुआ है । जिन लोगों ने गांधीवाद से प्रेरित होकर केवल और केवल गांधी जी के इर्द-गिर्द सारी आजादी की लड़ाई को घुमाने का पाप किया उन्हीं लोगों ने पथिक जी जैसे महान क्रांतिकारी नेताओं को इतिहास की पुस्तकों से बाहर फेंकने का पाप भी किया है।
पथिक जी का चिंतन पूर्णतया राष्ट्रवादी और देशभक्तिपूर्ण था। उन्होंने देशहित के लिए त्याग और तपस्या के जीवन को अपनाया और इसी प्रकार के अनेकों साधकों को मां भारती की सेवा में सौंपकर देश की अनुपम सेवा की । यह एक गौरवपूर्ण तथ्य है कि अंग्रेजों के लिए पथिक जी जैसे क्रांतिकारियों का क्रांतिकारी आंदोलन ही हमेशा सिर दर्द बना रहा, कांग्रेस का नरमपंथी आंदोलन अंग्रेजों के लिए कभी भी चिंता का विषय नहीं बना।
देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत