बिहार में सत्ता के लिए बढ़ती ही जा रही है राजद की बेचैनी
रमेश सर्राफ धमोरा
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में रांची की जेल में सजा काट रहे हैं। ऐसे में राजद का नेतृत्व उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के हाथों में है। पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में लालू यादव के जेल में रहने के कारण राजद के सभी फैसले तेजस्वी यादव कर रहे हैं।
राष्ट्रीय जनता दल पार्टी (राजद) के नेताओं को कैसे भी बिहार की सत्ता चाहिए। इसके लिए पार्टी के नेता सब कुछ करने को तैयार हैं। हाल ही में राजद नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने नीतीश कुमार को भाजपा छोड़कर राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने का सुझाव दिया था। वहीं राजद नेता श्याम रजक तो जनता दल यू के 17 विधायकों के शीघ्र ही राजद में शामिल होने की घोषणा करते घूम रहे हैं। राजद के कुछ नेता बिहार में शीघ्र ही नीतीश सरकार के गिरने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। इन सब बयानों से लगता है कि पिछले 15 वर्षों से सत्ता से दूर राजद नेताओं का मन सत्ता पाने को बेहद ललचा रहा है।
राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में रांची की जेल में सजा काट रहे हैं। ऐसे में पार्टी का नेतृत्व उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव के हाथों में है। पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में लालू यादव के जेल में रहने के कारण राजद के सभी फैसले तेजस्वी यादव कर रहे हैं। पिछले महीने संपन्न हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में राजद नेता तेजस्वी यादव को पूरा भरोसा था कि इस बार बिहार की सत्ता उनके हाथों में होगी और वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाएंगे। मगर चुनावी नतीजों के बाद नीतीश कुमार फिर से एक बार एनडीए गठबंधन के मुख्यमंत्री बनने में सफल हो गए। ऐसे में तेजस्वी यादव सहित राजद के सभी नेताओं को लगने लगा कि बिहार की सत्ता दिनोंदिन उनसे दूर होती जा रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद शून्य पर आउट हो गई थी। वहीं इस बार के विधानसभा चुनाव में भी पिछली बार की 80 सीटों की तुलना में राजद को 75 सीटें ही मिल पाईं।
बिहार में लालू प्रसाद यादव व उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने मिलकर लगातार 15 वर्षों तक एक छत्र राज किया था। लालू प्रसाद यादव मार्च 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद जुलाई 1997 तक वह लगातार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे। लालू यादव के चारा घोटाले में फंसने पर जेल जाने के कारण उन्होंने अपनी पत्नी को अपने स्थान पर बिहार का मुख्यमंत्री बनाया। लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी जुलाई 1997 से मार्च 2005 तक लगातार 7 वर्ष 8 महीने तक बिहार की मुख्यमंत्री रहीं। उसके बाद से जनता दल यू के नेता नीतीश कुमार बिहार में लगातार मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे हैं।
2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर राजद से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। महागठबंधन की सरकार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री व लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। मगर 20 महीने बाद ही नीतीश कुमार राजद से गठबंधन तोड़कर फिर से एनडीए के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बन गए। 20 महीने के कार्यकाल में ही नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव व उनके परिवारजनों के कारनामों से तंग आकर उनसे अलग होना ही बेहतर समझा था।
नवंबर 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़कर 75 सीटें जीतीं तथा उसे 23.11 प्रतिशत यानी 97 लाख 36 हजार 242 वोट मिले थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद ने जेडीयू, कांग्रेस के गठबंधन में 101 सीटों पर चुनाव लड़ कर 80 सीटें जीती थीं। राजद को 18.35 प्रतिशत यानि 69 लाख 95 हजार 509 वोट मिले थे। 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद ने 168 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 22 सीटें जीती थीं। उसे 18.84 प्रतिशत यानि 54 लाख 75 हजार 656 वोट मिले थे। 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद ने 175 सीटों पर चुनाव लड़कर 54 सीटें जीती थीं। पार्टी को 23.45 प्रतिशत यानि 55 लाख 25 हजार 81 वोट मिले थे।
2019 के लोकसभा चुनाव में राजद एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुआ। उसे 15.36 प्रतिशत वोट मिले थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजद ने 27 सीटों पर चुनाव लड़कर 4 सीटें जीती थीं। पार्टी को 20.13 प्रतिशत यानि 72 लाख 24 हजार 893 वोट मिले थे। 2009 में राजद ने 28 सीटों पर चुनाव लड़कर 4 सीटें जीती थीं। उसे 19.31 प्रतिशत यानि 46 लाख 78 हजार 880 वोट मिले थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में राजद ने 26 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 सीटें जीती थीं। पार्टी को 30.67 प्रतिशत यानि 89 लाख 94 हजार 821 वोट मिले थे।
1999 के लोकसभा चुनाव में राजद ने 36 सीटों पर चुनाव लड़कर 7 सीटें जीती थीं। उसे 28.29 प्रतिशत यानि एक करोड़ 85 हजार 302 वोट मिले थे। 1998 के लोकसभा चुनाव में राजद ने 38 सीटों पर चुनाव लड़कर 17 सीटें जीती थीं। उसे 26.59 प्रतिशत यानि 99 लाख 24 हजार 389 वोट मिले थे। वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल के बिहार में 75 विधायक, 6 विधान परिषद सदस्य, पांच राज्य सभा के सदस्य तथा झारखंड विधानसभा में एक विधायक हैं।
उपरोक्त आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से अलग होकर 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था। उस समय बिहार से झारखंड अलग नहीं हुआ था तथा पूरे बिहार में लालू यादव की तूती बोलती थी। राष्ट्रीय जनता दल के गठन के मात्र 20 दिन बाद ही लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा था। मगर उस वक्त उनका इतना जलवा था कि उन्होंने अपने स्थान पर पार्टी के किसी अन्य वरिष्ठ नेता की बजाए अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया था।
राष्ट्रीय जनता दल पार्टी बिहार में लालू प्रसाद की पारिवारिक पार्टी बनकर रह गई है। अपनी अनुपस्थिति में लालू प्रसाद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री पद पर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बैठा दिया था। 2015 में नीतीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बनाने पर अपने नॉन मैट्रिक बेटों तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री व तेज प्रताप यादव को कैबिनेट मंत्री बनवा दिया था। लालू प्रसाद की बड़ी बेटी मीसा भारती भी राज्यसभा सदस्य हैं। जो दो बार लोकसभा का चुनाव हार चुकी हैं।
पिछले 15 सालों से सत्ता से बाहर रह रही राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेताओं को लगता है कि लगातार सत्ता से दूर रहने के कारण आने वाले समय में पार्टी का वोट बैंक कमजोर होगा। क्योंकि उन्हें लगेगा कि अब राजद का सत्ता में आना मुश्किल है। ऐसे में बहुत से नेता व कार्यकर्ता राजद छोड़कर दूसरे दलों की तरफ जाने लगेंगे। इसी को रोकने के लिए ही राजद के बड़े नेता ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं को लगे कि राजद शीघ्र ही सत्ता में आने वाली है।
राष्ट्रीय जनता दल के गठन के बाद से 2019 में पहली बार पार्टी लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पायी है। जबकि 2004 में 22 व 1998 में 17 सांसद चुने गए थे। 2004 में तो लालू प्रसाद यादव केंद्र सरकार में रेल मंत्री बने थे। उस दौरान वे खासे चर्चित भी रहे थे। मगर 2009 में यूपीए-2 की सरकार में उनको मंत्री नहीं बनाया गया था। चारा घोटाले में दोषी सिद्ध होने के कारण लालू यादव चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। ऐसे में अब आगे तेजस्वी यादव ही पार्टी के नेतृत्वकर्ता होंगे। मौजूदा परिस्थिति मे राजद के नेताओं को चाहिए कि झूठी बयानबाजी छोड़कर वो बिहार की आवाम से जुड़ने का प्रयास करें ताकि आने वाले समय में राजद पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर अपनी स्थिति एक बार फिर से मजबूत कर सके।