अजय कुमार
पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गत सप्ताह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि वो बीजेपी सरकार में लगने वाली वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। इसके बाद समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं में अखिलेश के बयान से दो कदम आगे बढ़ने की होड़-सी लग गई।
समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीते दिनों कोरोना वायरस वैक्सीन को भाजपा से जोड़कर ऐसा विवादित बयान दे दिया है जिससे पीछा छुड़ाना उनके लिए मुसीबत बनता जा रहा है। भाजपा नेता तो राशन-पानी लेकर अखिलेश पर हमलावर हो ही गए हैं, यादव कुनबे का कलह-कलेश भी सामने आ गया है। चाचा शिवपाल यादव और अखिलेश के छोटे भाई की बहू अपर्णा यादव ने अखिलेश की सोच पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों की सराहना की है। शिवपाल ने गत दिवस अपनी पार्टी के एक कार्यक्रम में कहा कि वैज्ञानिकों ने बहुत मेहनत से दवा बनाई है, इसके लिए वो लोग बधाई के पात्र हैं। ऐसे वैज्ञानिकों की मेधा और प्रतिभा का सम्मान होना चाहिए। शिवपाल के इस बयान के कुछ देर बाद ही यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का भी एक स्पष्टीकरण आया, जिसमें अखिलेश यादव ने पूर्व में वैक्सीन ना लगवाने का बयान देने के बाद अब अपने स्पष्टीकरण में कहा कि मैंने या समाजवादी पार्टी ने कभी भी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों या शोधकर्ताओं पर सवाल नहीं उठाए। अगर किसी के मन में वैक्सीन को लेकर किसी बात का शक है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इसे कैसे दूर करेगी।
गौरतलब है कि इससे पहले अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि वो बीजेपी सरकार में लगने वाली वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। इसके बाद समाजवादी पार्टी के अन्य नेताओं में अखिलेश के बयान से दो कदम आगे बढ़ने की होड़-सी लग गई। यहां तक कहा जाने लगा कि यह वैक्सीन लोगों को नपंसुक बना देगी। खैर, अखिलेश की सफाई के बाद भी यादव कुनबे में अखिलेश को आईना दिखाने वालों की कमी नहीं है। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने वैक्सीन को लेकर अखिलेश यादव के बयान पर तंज कसा है। अपर्णा यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कोरोना वैक्सीन न लगवाने का ऐलान ठीक नहीं है। अपर्णा यादव ने कहा कि आपात अवस्था के लिए मंजूर की गई कोरोना वायरस वैक्सीन को किसी पॉलिटिकल पार्टी से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वैक्सीन पूरे विश्व के लिए है। उन्होंने कहा कि सपा के मुखिया अखिलेश यादव को ऐसा नहीं कहना चाहिए कि यह किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित है। उन्होंने यह भी कहा कि सभी लोग वैक्सीन का इंतजार कर रहे थे। अखिलेश यादव का यह बयान भारत के वैज्ञानिकों और डॉक्टर्स की बेइज्जती करना है।
बहरहाल, एक तरफ अखिलेश यादव द्वारा पिछले सप्ताह दिए गए विवादित बयान की निंदा हो रही है तो दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि ‘अपना मुंह खोल कर अपनी मूर्खता के बारे में सारे संदेहों को दूर कर देने से तो चुप रहना ही बेहतर है।’ वैसे कुछ जानकार वह परिस्थितियां भी बता रहे हैं जिस परिस्थिति में अखिलेश यादव ने यह बयान दिया था। संभवतः अखिलेश का मकसद शायद फब्तीबाजी करने तक ही रहा होगा, क्योंकि जब अखिलेश ने विवादित बयान दिया उस समय उनके अगल-बगल हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्मगुरु बैठे थे और वह यह दिखाना चाह रहे थे कि समाजवादी पार्टी सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कुछ कथित मुस्लिमों के ठेकेदार भी वैक्सीन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं और मुसलमान सपा के मजबूत वोटर हैं।
यहां यह भी याद दिलाना जरूरी है कि जिस मंच से अखिलेश यादव ने भारत की वैक्सीन को लेकर विवादित बयान दिया था, उसी मंच से अखिलेश ने मोदी सरकार के ‘अवैज्ञानिक ताली-थाली वाले सोच’, नये कृषि कानून, किसानों के शोषण आदि कई मुददों के सहारे भी मोदी-योगी सरकार को घेरा था। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि ‘भाजपा की वैक्सीन’ वाला बयान ही सुर्खियां बनेगा। भाजपा ने मौके को तुरंत पकड़ा और उनके बयान को ‘देश के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का अपमान’ बता दिया। भले ही भाजपा के केंद्रीय मंत्री और सांसद-विधायक यह दावे करते रहे हैं कि गौमूत्र और गोबर से न केवल कोरोना वायरस के संक्रमण को बल्कि कैंसर तक को ठीक किया जा सकता है। फिर भी इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि अखिलेश का उपरोक्त बयान गैर-जिम्मेदारी भरा है क्योंकि यह वैक्सीन के बारे में ऐसे समय में डर पैदा करता है जब हमारे जनप्रतिनिधियों को लोगों में भरोसा पैदा करने की जरूरत है। याद कीजिए कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने टीवी कैमरे के सामने वैक्सीन लगवाई। हमारे नेताओं को भी ऐसा कुछ करने की जरूरत है ताकि लोगों में यह भरोसा जागे कि यह संकट अब खत्म होने को है।
लब्बोलुआब यह है कि सपा अध्यक्ष ने इस तरह का बयान देकर भारी भूल की है, चाहे उनके सलाहकार जो भी दावे पेश करें। उक्त विवाद कोविड-19 से लड़ाई में भाजपा की सफलता को लेकर विपक्षी नेताओं की खीझ को भी उजागर करता है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने भारत की वैक्सीन पर विवाद खड़ा करके गोल पोस्ट ही चेंज कर दिया है। अच्छा होता अखिलेश और अन्य विपक्षी दल ओछी सियासत करने की बजाए सच्चाई का मार्ग अपनाते हुए मोदी सरकार की नामाकियों से जनता को रूबरू कराते।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि दिसंबर 2002 में मोदी ने जब ‘कोवैक्सीन’ पर शोध कर रही हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक और दुनिया की बड़ी दवा कंपनियों के सहयोग से ‘कोवीशील्ड’ वैक्सीन पर काम कर रहे पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट का दौरा किया तो विपक्ष में कई लोगों को लगा था कि यह सब दिखावा ही है। वे आपस में यही शिकायत कर रहे थे कि मोदी वैज्ञानिकों के प्रयासों का राजनीतिक फायदा उठाने में लग गए हैं। लेकिन क्या किसी नेता से आगे बढ़कर नेतृत्व देने की अपेक्षा नहीं की जाती या उसे आगे बढ़कर नेतृत्व नहीं देना चाहिए?