मनुष्य का आदिम ज्ञान और भाषा-16
गतांक से आगे…..
इन किसानों के पशु क्या हैं? सो भी देखिए-
एह यन्तु पशवो से परेयुर्वायुर्येषां सहचारं जुजोष।
त्वष्टा येषां रूपघेयानि वेदास्मिन तान गोष्ठे सविता नि यच्छतु ।।
अर्थात जिन पशुओं का सहचारी वायु है, त्वष्टा जिनके नामरूप जानता है और जो बहुत दूर है, उनको सविता सूर्य गोष्ठ में पहुंचावे।
वैदिक जानते हैं कि सूर्यकिरणों को गौ और अश्व कहते हैं। वही सब सूर्य के गोष्ठ में रहते हैं। हमने यहंा केवल नमूना मात्र दिखलाया है। वेदों में आकाशी पदार्थों के द्वारा एक पूरे संसार का वर्णन किया गया है। इन सब वर्णनों के साथ उसके वंशों का भी वर्णन है। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है-
गायन्ति त्वा गायत्रिणोअर्चन्त्यर्कमकिंण:।
ब्रह्माणस्त्वा शतक्रत उद्वंशामिव येमिरे।।
अर्थात हे शतक्रतो तुम्हारे गीत गायत्री आदि गाती है। सूर्य पूजा करते हैं और ब्राह्मण लोग शाखोचार की तरह तुम्हारी वंशावली का बखान करते हैं।
आकाशीय पदार्थों के वंश गान का यहां वर्णन किया गया है। नक्षत्र वंश की बात वाल्मीकि रामायण में भी कही गयी है कि-
सृजन्दक्षिणमार्गस्थान्सप्तर्षीनपरान्पुन:।
नक्षत्रवंशमपर मसृजत्क्रोधमूच्र्छित:।।
द्रक्षिणां दिशमास्थाय ऋषिमध्ये महायशा:।
सृष्टवा नक्षत्रवंशं च क्राधेन कलुषीकृत:।।
यहां त्रिशंकु नक्षत्र का वर्णन करते हुए लिखा है कि दक्षिण की ओर एक दूसरा नक्षत्र वंश पैदा किया गया। यह ध्यान रखने की बात है कि यहां स्पष्ट नक्षत्र वंश कहा गया है। संभव है इन वैदिक वंश वर्णनों से ही ऐतिहासिक वर्णनों का मेल मिल गया हो और सूर्य चंद्र आदि का जो नक्षत्र वंश है, वह क्षत्रियों के वे नाम होने के कारण उसी में समझ लिया गया हो। हमारा तो पूरा विश्वास है कि वेदों के अनेक आलंकारिक भाव गलती से इतिहास में मिला दिये गये हैं। आइए, कुछ नमूने यहां दिखावें।
राजा पुरूरवा
पुरूरवा चंद्रवंश का मूल पुरूष है। वेदों में पुरूरवा और उर्वशी का वर्णन देकर एक आलंकारिक नाटक का नमूना बदला गया है। यह पुरूरवा सूर्य है, ऊर्वशी उसकी एक किरण है और दोनों अग्नि हैं।
यह प्रसिद्घ है कि इंद्र की अनेक अप्सराएं थीं। इंद्र नाम सूर्य का है और अप्सरा उसकी किरणें हैं। उसकी अनेक किरणों में ऊर्वशी भी एक किरण है। पहले देखिए कि वेद में पुरूरवा और ऊर्वशी तथा आयु तीनों को अग्नियों के नाम से
कहा है।
अग्नेर्जनित्रमसि वृषणौ स्थ उर्वश्यस्यायुरसि पुरूरवा असि।
गायत्रेण त्वा छन्दसा मंथामि, त्रैष्टुभेन त्वा छन्दसा मंथामि,
जागतेन त्वा छन्दसा मंथामि।
यहां अग्नि को संबोधन करके कहा गया है कि तू ऊर्वशी है, तू आयु है, तू पुरूरवा है। तुझे गायत्री त्रिष्टुप और जगती छंदों से मथकर निकालता हूं।
यहंा आयु शब्द बड़े मार्के का है। यह प्रसिद्घ है कि पुरूरवा और ऊर्वशी से आयु नामक पुत्र हुआ था। यहां ऊर्वशी और पुरूरवा अग्नि कहे गये हैं। अग्नि से अग्नि की ही उत्पत्ति होती है। इसलिए उन दोनों अग्नियों से पैदा होने वाली यह आयु नामक तीसरी अग्नि भी, अग्नि ही है। यही देवी वंश है। अग्नि ही सूर्य है और अग्नि ही उसकी किरणें हैं।
आगे का मंत्र कैसा साफ कहता है कि-
सूर्यो गंधर्वस्तस्य मरीचयोअप्सरस:।
अर्थात सूर्य ही गंधर्व है और उसकी किरण ही अप्सराएं हैं।
अग्नि ही सूर्य और गंधर्व है। गंध को यही फेेलाती है। अर्थात हुतपदा इसी में डाले जाते हैं जो फलते हैं। आगे अप्सराओं के नाम बदलाये जाते हैं-
पुश्चकस्थला च क्रतुस्थला चाप्सरसौ।
मेनका च सहजन्या चाप्सरसौ।
विश्वाची च धृताची चाप्सरसौ।
उर्वशी च पूर्वचित्तिश्राप्सरसौ।।
यहां अन्य अप्सराओं के साथ मेनका और ऊर्वशी भी अप्सरा कही गयी है। ऊपर कहा गया है कि अप्सरा सूर्य की किरणें ही हैं और बताया गया है कि सूर्य ही अग्नि है, अत: ऊपर का वर्णन अंतरिक्ष के चमत्कारिक तैजस पदार्थों का ही है। इसे मनुष्य के वर्णन के साथ जोडऩे की क्या आवश्यकता है?
बहुत दिनों की ढूंढ तलाश के बाद योरोपियन विद्वान भी अब इसी परिणाम पर पहुंचे हैं। नमूने के लिए उनके कुछ वाक्यों को पढिय़े। स्द्गद्यद्गष्ह्लद्गस्र श्वह्यह्यड्ड4ह्य, ङ्कशद्य १ श्च. ४०८ में प्रोफेसर मैक्समूलर कहते हैं कि यह पुरूरवा ऊर्वशी की कथा, ऊषा और सूर्य को अलंकारिक भाषा में वर्णन करती है। जिस सूक्त में ऊर्वशी और पुरूरवा का वर्णन है उसी के एक मंत्र में कहा गया है कि अंतरिक्षप्रां, रजसो विमानीमुपशिक्षाम्युर्वशी वसिष्ठ: (ऋ. 10/95/17) अर्थात मैं वशिष्ठ सूर्य अंतरिक्ष में घूमने वाली ऊर्वशी को अपने वश में रखूं। अब बताइए कि अंतरिक्ष में घूमने वाली चीज कभी मनुष्य हो सकती है?
प्रोफेसर गेल्डनर, रौठ, गोल्डस्टाकर और म्यूर आदि भी। यही कहते हैं। ग्रिफिथ साहब ऋग्वेद के 10वें मंडल के 95 में सूक्त के नोट में कहते हैं कि मैक्समूलर के मत से यह ऊषा और सूर्य का वर्णन है और डा. गोल्डस्टकर के मत से प्रात:काल तथा सूर्य का है।
क्रमश: