‘हिंदुत्व रक्षार्थ’ पुस्तक सचमुच रोमांच पैदा करने वाली है। हिंदू इतिहास की परंपराओं और उसके गौरवशाली पक्ष को विद्वान लेखक श्री रतन सनातन ने बहुत ही विद्वतापूर्ण और शोधपरक ढंग से हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का सराहनीय और राष्ट्रप्रेम से भरा हुआ कार्य किया है। पुस्तक के अध्ययन से विद्वान लेखक की भारतीयता और भारतीय गौरवपूर्ण परंपराओं में गहरी निष्ठा स्पष्ट झलकती है।
पुस्तक के प्रारंभ में लेखक स्पष्ट करते हैं कि “मैं किसी दल का नहीं, देश तथा धर्म का समर्थक हूं और मेरा उद्देश्य लोगों में सनातन संस्कृति, हिंदुत्व की विचारधारा ,देश व धर्म के लिए नि:स्वार्थ समर्पण भाव को जागृत करना है। यदि देश है तो हम हैं और देश नहीं तो हम नहीं ।” श्री सनातन जी के इस कथन से उनके पूरे व्यक्तित्व की जानकारी हो जाती है कि वह किस प्रकार केवल और केवल राष्ट्र को समक्ष रखकर चिंतन करते हैं और उसी के अनुसार पुस्तक लेखन के धर्म को अपना राष्ट्र धर्म समझकर निर्वाह करते हैं।
लेखक अपने विषय में यह भी स्पष्ट करते हैं कि “मेरी जिंदगी गांव के साधारण किसान की रही है, जहाँ न धार्मिक शिक्षा थी , न ही महापुरुषों की गाथा।” ऐसे परिवेश में रहकर अपने आपको हिंदुत्व की चेतना के स्वरों के साथ समाविष्ट करना सचमुच लेखक के जीवन की एक बहुत बड़ी साधना को प्रकट करता है। संपूर्ण पुस्तक में जिस प्रकार लेखक का चिंतन निकल कर सामने आया है उससे हमारे इस कथन की पुष्टि हो जाती है।
लेखक के भारतीय इतिहास परंपरा के प्रति विशाल दृष्टिकोण और चिंतन की गहराई को आप पुस्तक की प्रस्तावना से ही नाप सकते हैं। जिसके पहले पृष्ठ पर ही लिखा है कि विशाल देश की सुरक्षा करने वाले महान वीर योद्धा बप्पा रावल, सम्राट अशोक, पृथ्वीराज चौहान, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप, संभाजी महाराज, राजा सूरजमल जाट आदि अनेकानेक हुए हैं । सुशासक राजा विक्रमादित्य , राजा कृष्णदेव राय आदि हुए तो राष्ट्रहित के नीति निर्माता आचार्य चाणक्य भी हुए हैं । महान देशभक्त गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक ,भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद , सुभाष चंद्र बोस, लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जयप्रकाश नारायण आदि अनेकानेक हुए हैं….।
इन शब्दों के लेखन मात्र से स्पष्ट हो जाता है कि लेखक ने किस विचारधारा और किस सोच को लेकर इस पुस्तक का निर्माण किया है ? निश्चित रूप से भारत के हिंदू स्वरूप के रक्षक और भारतीय परंपरा के प्रति समर्पित व्यक्तित्वों के प्रति लेखक का गहरा अनुराग और समर्पण है। उस अनुराग व समर्पण को ही अभिव्यक्ति देने के लिए प्रस्तुत पुस्तक की रचना हुई है।
पुस्तक की अनुक्रमणिका में – जाति नहीं कर्म प्रधान, सनातन धर्म, चौरासी लाख योनियां, हिंदू संस्कृति, हिंदू नारी, भगवा रंग, हिंदुत्व पर पाश्चात्य राय, हिंदू के सहिष्णु होने की वजह, हिंदू टारगेट, अत्याचारों का सिलसिला, बलात्कार शब्द, विदेशी हमले , गजवा ए हिंद नहीं हमें चाहिए शांत हिंद, राष्ट्र विरोधी विचारधारा, इतिहास जो बताया नहीं गया, सोमनाथ मंदिर, लाल कोट, तेजोमहालय, पाकिस्तान में गए तीर्थ स्थान, बांग्लादेश में गए तीर्थ स्थान, अफगानिस्तान में गए तीर्थ स्थान आदि कुल मिलाकर 62 अध्याय लेखक ने बनाए हैं। जिनके शीर्षकों से ही स्पष्ट हो जाता है कि पुस्तक बहुत ही पठनीय और संग्रहणीय है। जिसमें अनेकों ऐसे तथ्यों और सत्यों को उद्घाटित किया गया है जो हमारे गौरवपूर्ण अतीत पर एक गहरा प्रकाश डालने और हमें सजग व सावधान करने में सफल हुए हैं।
अंत में भारत को सावधान करते हुए लेखक लिखते हैं कि इजराइल विश्व का इकलौता यहूदी देश है जो चारों तरफ से हमेशा ही हमले चलता रहता है और यहां का हर नागरिक मुकाबला करने को तैयार रहता है।
घटना 4 जून 1967 की है। जब कट्टरपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर कई देशों ने मिलकर इजराइल पर हमला बोल दिया। इजराइल में उस समय जिनकी जनसंख्या 20% थी वे लोग सालों से इजरायल को बहुत प्यार करते थे । मगर जैसे ही पता चला कि इसराइल पर आसमान वाले का आदेश हुआ है, देश में दंगे फसाद कर गृह युद्ध के हालात बना डाले। इजराइल प्रशासन असहाय हो गया। फिर देश के अंदर का मोर्चा संभाला यहूदी नागरिकों ने, और 4 दिन के अंदर ही विरोधियों को पस्त कर सीमा पर आ गए। सेना का हौसला बढ़ा और इजरायल युद्ध जीत गया।”
, लेखक ने निचोड़ करते हुए पूरे देशवासियों का आह्वान किया है कि देश के भीतर सक्रिय देश विरोधी शक्तियों का मुकाबला करने के लिए इजरायल की इसी जिजीविषा का अनुसरण हमको भी करना होगा। यदि हमें देश के धर्म, संस्कृति और इतिहास की रक्षा करनी है तो भारत को इसी जिजीविषा के साथ उठ खड़ा होना होगा।
इस प्रकार पुस्तक बहुत ही ऊँचाई के साथ जाकर पूर्ण होती है। जिसके लिए लेखक बधाई और अभिनंदन के पात्र हैं। वास्तव में किसी भी लेखक और उसकी पुस्तक का उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि वह अपने पाठकों को चिंतन की उस ऊंचाई पर ले जा कर छोड़े जहां से वह झंकृत होकर कुछ सोचने, समझने और कुछ करने के लिए प्रेरित हो उठे।
पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार ,धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता ,जयपुर (राजस्थान ) 30200 3, फोन नंबर 0 141- 2310785, 4022382 हैं। पुस्तक का मूल्य ₹400 है । जबकि पुस्तक पृष्ठ संख्या 235 है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
8 replies on “पुस्तक समीक्षा : हिंदुत्व रक्षार्थ”
A clear thinker.
A clear thinker.
The efforts by the “Sir Ratan Sanatan ji” were applaudable to discribe hindutva rakhshart bow down to you your work 🙌🏻
It’s a must read.
एक बेहतरीन रचना जो आपको याद दिलाती है कि आपकी जड़े क्या है ।
Very good book,,, must read..
Jai Hindutva…
अद्भुत सटीक सारपूर्ण
एक शानदार रचना
भावी पीढ़ी को धर्म के प्रति जागरूक करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली पुस्तक।
सनातन धर्म की जय 🙏🏻🙏🏻