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प्रमुख समाचार/संपादकीय

आज का चिंतन-20/04/2014

जागो, जगाओ, आगे आओ

वोट डालकर धर्म निभाओ

– डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

dr.deepakaacharya@gmail.com

 

यह जमाना उन लोगों का ही है जो रोशनी में रहते हैं, रोशनी पाने के आदी हैं। जो लोग अंधेरों में पड़े रहते हैं उनके लिए चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा पसरा रहता है, उन लोगों को रोशनी का सुकून दिलाने के लिए न इंसान कुछ कर सकता है, न भगवान।

सदियों से मशहूर है – जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है। यही सब कुछ बातें लोकतंत्र में चुनाव पर भी लागू होती हैं। समाज की हर इकाई के लिए व्यवस्था है और व्यवस्था की संरचना का दायित्व हम प्रजाजनों पर है।

ऎसे में यह जरूरी है कि लोकतंत्र की हरेक गतिविधि में हम भागीदारी निभाएं और अपना वांछित योगदान अदा करें। चुनाव हमारे सामाजिक, पारिवारिक तथा क्षेत्रीय उत्सवों की ही तरह  है जो सार्वजनीन भविष्य की भूमिकाएं तय करता है और इसका हर इंसान से किसी न किसी प्रकार का परोक्ष या अपरोक्ष संबंध होता ही है।

हम जिस समाज और परिवेश मेंVote-india रहते हैं उसकी प्रत्येक घटना और आह्वान  के प्रति संवेदनशील होना और सहभागिता का भाव रखना ही अच्छे नागरिक की पहचान है। हमारे हाथ में कुंजी होने के बावजूद हम उसके उपयोग के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाए रखें, यह और किसी का नहीं, बल्कि हमारा अपना दोष और दुर्भाग्य दोनों ही है जिसके कारण से कई सारी गतिविधियां प्रभावित होती हैं।

सरकार चुनने के लिए वोट डालना भी हमारा वह फर्ज है जिसे पांच साल में एक बार पूरा करने का मौका मिलता है। ऎसे अवसर का लाभ लेकर वोट देना हमारा व्यक्तिगत फर्ज है जो हमारे अपने लिए रास्ते खोलता है, दशा और दिशाएं तय करता है।

वोट जरूर दें, सोच-समझ कर दें और इसमें कोई लापरवाही नहीं बरतें।  वोट देने का काम उत्साह से करना चाहिए क्योंकि ये किसी और का नहीं बल्कि हमारा अपना काम है और हमें ही पूरा करना है।

दुनिया के ढेर सारे दूसरे काम हैं जो औरों के भरोसे पूरे होने संभव हैं लेकिन मतदान का कर्म अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। जो लोग अवसर की उपेक्षा करते हुए समय पर फर्ज अदा नहीं कर पाते, वे बाद में हमेशा पछताते रहते हैं।

जीवन में जब कभी कहीं पछतावे का समय आता है, वह आत्महीनता और कुण्ठाएं पैदा करता है। इसलिए भावी कुण्ठाओं से दूर रहने के लिए और अपने भविष्य को सुरक्षित एवं खुशहाल बनाने के लिए लोकतंत्र के महापर्व में आत्मीयता और उल्लास के साथ भागीदारी निभाएं।

द्रष्टा न बनें रहें, स्रष्टा का धर्म निभाएं, तभी सुनहरी सृष्टि के स्वप्नों को साकार कर पाएंगे। भारत निर्वाचन आयोग का स्वीप के जरिये अनिवार्य मतदान का पैगाम यही सब तो कह रहा है, इसके लिए निर्वाचन से जुड़ी मशीनरी की जितनी तारीफ की जाए, वह कम है। अंत में यही संदेश –  वोट जरूर  दें।

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