क्या थी संजय गांधी के अपनी मां इंदिरा गांधी को थप्पड़ मारने के पीछे की कहानी
इस थप्पड़ की खबर देने वाले पत्रकार लुईस एम सिमंस इसके पीछे की कहानी और इस पर इंदिरा और राजीव गांधी की प्रतिक्रिया के बारे में बता रहे हैं
जब आपातकाल की घोषणा हुई तो पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार लुईस एम सिमंस द वाशिंगटन पोस्ट के संवाददाता के रूप में दिल्ली में तैनात थे. उन्हीं दिनों अमेरिका के इस प्रतिष्ठित अखबार में सिमंस की यह खबर छपी कि एक डिनर पार्टी के दौरान संजय गांधी ने अपनी मां और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कई थप्पड़ मारे. स्क्रोलडॉटइन को ईमेल पर दिए एक साक्षात्कार में सिमंस याद करते हैं कि उन्हें यह खबर कैसे मिली और जब आपातकाल हटने के बाद वे सोनिया, राजीव और इंदिरा गांधी से मिले तो इसपर उनकी प्रतिक्रिया क्या थी. इस साक्षात्कार के संपादित अंश :
द वाशिंगटन पोस्ट में आपकी एक खबर छपी थी जिसमें एक सूत्र ने दावा किया था कि एक डिनर पार्टी के दौरान संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा गांधी को छह बार थप्पड़ मारे. यह घटना आपातकाल का ऐलान होने के कितने दिन बाद हुई थी और संजय ने ऐसा क्यों किया था?
थप्पड़ वाली घटना आपातकाल लगने से पहले एक निजी डिनर पार्टी में हुई थी. मैंने तुरंत इसके बारे में नहीं लिखा जैसा कि अमूमन पत्रकार किया करते हैं. मैंने इस खबर को बाद के लिए बचा लिया. अब तो मुझे याद भी नहीं कि क्या मेरे पास ऐसी कोई जानकारी थी कि संजय ने ऐसा क्यों किया.
इस बात को 40 साल हो गए हैं. क्या जिन लोगों से आपको यह जानकारी मिली उन्होंने इस घटना के बारे में बताने के लिए ही आपसे संपर्क किया था या फिर किसी सामान्य बातचीत के दौरान इस घटना का जिक्र हुआ?
दूसरी वाली बात सही है. दरअसल मेरे दो सूत्र थे. ये दो लोग थे जो एक दूसरे को जानते थे और जो इस पार्टी में मौजूद थे. इनमें से एक सज्जन आपातकाल से एक दिन पहले मेरे घर पर थे और उन्होंने मुझसे और मेरी पत्नी से हुई बातचीत में यह किस्सा सुनाया. दूसरे सूत्र ने इसकी पुष्टि की. बात संजय और उनकी मां के रिश्ते पर हो रही थी और उसी दौरान यह बात भी निकल आई.
वरिष्ठ पत्रकार कूमी कपूर ने अपनी एक हालिया किताब द इमरजेंसी : अ पर्सनल हिस्ट्री में लिखा है कि यह खबर जंगल में आग की तरह फैली थी. सेंसरशिप की वजह से किसी भारतीय अखबार ने इस खबर पर कुछ नहीं लिखा था. इसे देखते हुए खबर के इस कदर असर से क्या आपको हैरानी हुई थी?
मुझे हैरानी नहीं हुई थी क्योंकि मैं जानता हूं कि भारतीयों को चटखारे लेना खूब पसंद है. इस खबर को दूसरे विदेशी मीडिया समूहों ने भी खूब चलाया. न्यूयॉर्कर मैगजीन ने इस पर प्रतिष्ठित पत्रकार वेद मेहता का एक लेख भी छापा था.
कपूर का कहना है कि इस खबर की सच्चाई पर संदेह है. शायद इसकी वजह यह हो कि सूत्रों का नाम जाहिर नहीं किया गया था और किसी ने सार्वजनिक रूप से इस खबर की पुष्टि नहीं की. क्या आपके हिसाब से ये सूत्र विश्वसनीय थे? क्या उस डिनर पार्टी में मौजूद किसी और शख्स ने भी इस खबर की आपसे पुष्टि की? क्या आपको कभी यह खबर लिखने का अफसोस हुआ?
सूत्रों की विश्वसनीयता बेदाग थी और है. मैंने किसी और मेहमान का साक्षात्कार नहीं लिया. और जहां तक अफसोस की बात है तो इस खबर को लिखने का मुझे कोई अफसोस न था और न है. मुझे लगता है कि इसने एक ऐसे वक्त में मां और बेटे के बीच के अजीब रिश्ते पर रोशनी डाली जब यह रिश्ता भारत के लोगों पर एक बड़ा असर डाल रहा था.
क्या आप आपातकाल हटने और 1977 में इंदिरा गांधी के सत्ता से बाहर होने के बाद भी अपने सूत्रों से मिले. अगर हां तो उनसे हुई बातचीत कैसी थी?
मैं उनसे आपातकाल के पहले, इसके दौरान और बाद में बहुत बार उनसे मिला.
क्या ये सूत्र अब भी हैं?
हां.
आपको थप्पड़ वाली इस घटना की खबर लिखने के चलते देश छोड़ने को कहा गया था. क्या आपको अंदेशा था कि ऐसा होगा?
मुझे देश छोड़ने के लिए कहा नहीं गया था बल्कि आदेश दिया गया था. मुझे पांच घंटे का नोटिस मिला था. और इसकी वजह थप्पड़ वाली खबर नहीं थी क्योंकि तब तक मैंने इसे लिखा ही नहीं था. इसकी वजह एक दूसरी खबर थी जिसमें भारतीय सेना के कई अधिकारियों ने मुझे बताया था कि कैसे उन्हें आपातकाल लगाने का फैसला और इस तक पहुंचने के दौरान इंदिरा गांधी का व्यवहार ठीक नहीं लगा था. मुझे बिना नोटिस के गिरफ्तार कर लिया गया था. बंदूकें लिए पुलिस मेरे घर आई थी और मुझे इमिग्रेशन दफ्तर ले जाया गया था.
वहां एक अधिकारी था जिससे मैं बीते कई साल के दौरान मिलता रहा था. इस अधिकारी ने मुझे बताया कि दिल्ली से निकलने वाली पहली फ्लाइट से मुझे रवाना कर दिया जाएगा. जब मैंने उससे वजह पूछी तो उसने पहले दोनों हाथ अपनी आंखों पर रखे, फिर कानों पर और आखिर में मुंह पर. पांच घंटे बाद मुझे अमेरिका दूतावास का एक अधिकारी एयरपोर्ट ले गया. वहां एक कस्टम अधिकारी ने करीब दर्जन भर नोटबुक्स जब्त कर लीं. इन्हें कई महीने बाद लौटाया गया. इनमें जहां-जहां भी किसी का नाम लिखा हुआ था उसके नीचे एक लाल लकीर खींच दी गई थी. बाद में मुझे पता चला कि इनमें से कई लोगों को जेल भेज दिया गया था. इस अनुभव से मुझे सबक मिला कि जब आप कोई संवेदनशील खबर कर रहे हो तो नाम कभी मत लिखो. मुझे बैंकाक जाने वाली एक फ्लाइट में बिठा दिया गया. वहीं होटल के एक कमरे में मैंने थप्पड़ वाली घटना के बारे में लिखा.
क्या आप श्रीमती गांधी या संजय गांधी या फिर गांधी परिवार के किसी और सदस्य से कभी मिले? उन्हें मिलकर आपको क्या लगा?
आपातकाल के बाद मैं श्रीमती गांधी से मिला था जब वे सत्ता से बाहर हो गई थीं. मोरारजी देसाई सरकार ने मुझे वापस बुलाया था. मेरे कुछ समय बाद एक ब्रिटिश पत्रकार को भी भारत से निकाल दिया गया था. जब मैंने श्रीमती गांधी का साक्षात्कार लिया तो यह पत्रकार भी वहां मौजूद था. हमने उनसे पूछा कि उन्होंने हमें निष्कासित क्यों करवाया था. उन्होंने जवाब दिया कि इसमें उनका कोई हाथ नहीं था. मैंने उनसे थप्पड़ वाली घटना के बारे में नहीं पूछा. मुझे लगता है कि मैं हिम्मत नहीं कर पाया. आपातकाल के बाद मैं एक निजी डिनर पार्टी में गया था. वहां राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया भी आए हुए थे. एक दर्जन मेहमान और थे. इस दौरान किसी टेबल पर मौजूद शख्स ने सबके बीच ऐलान किया कि मैं ही वह पत्रकार हूं जिसने वह थप्पड़ वाली खबर लिखी थी. राजीव ने अपना सिर हिलाया और मुस्करा दिए. सामने बैठे राजीव से मैंने पूछा, ठीक है? उन्होंने सिर हिलाया और फिर मुस्कराए. उन्होंने कहा कुछ नहीं. सोनिया गुस्से में लग रही थीं. उन्होंने भी कुछ नहीं कहा. संजय गांधी से मेरी मुलाकात कभी नहीं हुई.