मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे……
हम तो आपके सेवक थे लेकिन आपने तो हमें कारखाने का कच्चा माल बना दिया।
इस माल की आपूर्ति के लिए वह मरेगा, तब तक प्रतीक्षा नही की जा सकती, इसलिए उसकी कुदरती मौत से पहले ही अपने बनाये हुए कत्लखानों में उसे पहुंचा तो ताकि खाने वाले को मांस मिल जाए और कारखाने वालों को उनका कच्चा माल। पशु पालन का व्यवसाय खेती के लिए आवश्यक था, इसलिए दुनिया की हर सभ्यता खेती और पशु पालन का व्यवसाय खेती के लिए आवश्यक था, इसलिए दुनिया की हर सभ्यता खेती और पशु पालन से ही प्रारंभ हुई है। लेकिन बदलती दुनिया ने यह आदर्श और सिद्घांत बदल डाले। जब पशु से प्राप्त अवयव और वस्तुएं महंगी पडऩे लगीं तो अन्य चीजों की खोज होती चली गयी। चमड़े का स्थान अब रेगजिन ने ले लिया है। जीव दया के प्रेमी केवल अपना निशाना बूचड़खानों को अथवा कसाईयों और खटीकों को ही बनाते हैं, लेकिन वास्तव में वे कंपनियां और उनको चलाने वाले मालिक बनने चाहिए, जो हजारों प्रकार से इन पशुओं को अपनी फैक्टरियों का कच्चा माल बनाये हुए हैं।
पशुओं की लाशों पर पैसा कमाने वाली कंपनियां उस लालची इनसान की याद दिलाती हैं जिसकी मुरगी हर दिन सोने का अंडा देती थी। मुरगी के मालिक से प्रतीक्षा नही हो सकी। उसने सोचा, इसे काटकर सारे प्राप्त क्यों न कर लूं। इसलिए उसने मुरगी का पेट चीर दिया। बेचारे ये पशु बचेंगे तब तो इन पर आधारित व्यवसाय चलेंगे। आज तो ऐसा लगता है कि सारी दुनिया के पशुओं को मारकर रातों रात करोड़पति बन जाने की दीवानगी है। क्या हमें नही लगता कि इन जानवरों को मारकर मनुष्य अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है? मनुष्य उस स्रोत को ही समाप्त करने में लगा है, जिसे कुदरता ने उसे प्रवाहित सरिता के रूप में अमूल्य तोहफा दिया है।
कुदरत ने हमारी इस पृथ्वी को संतुलित बनाये रखने के लिए असंख्य