संसार को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाला भारत सबसे पहला और प्राचीन देश है । इसके उपरांत भी यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की राजनीति आज भी कई प्रकार की विसंगतियों और जटिलताओं में जकड़ी हुई है । हम अभी भी संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र तो हैं परंतु सबसे ‘परिपक्व लोकतंत्र’ अभी भी नहीं है। आज भी हमारे यहां पर देश के प्रधानमंत्री को ‘विश्व नेता’ बनने पर गर्व करने वाले बहुत कम राजनीतिज्ञ हैं। देश के प्रधानमंत्री का विश्व नेता के रूप में सम्मान होना किसी भी देश के लिए गर्व और गौरव का विषय हो सकता है और होना भी चाहिए। जब अपने प्रधानमंत्री के विश्व नेता बनने पर सारी राजनीति एक स्वर से एक साथ मिलकर करतल ध्वनि करे तब समझना चाहिए कि देश को विश्व नेता के रूप में स्थापित होते देखकर हमारा लोकतंत्र प्रफुल्लित है और ऐसा ही लोकतंत्र वास्तविक परिपक्व लोकतंत्र कहलाता है।
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘फोर्ब्स’ ने 2015 में विश्व के शक्तिशाली व्यक्तित्व की सूची जारी की थी। तब विश्व के सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की उस सूची में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन शीर्ष पर रहे थे। फोर्ब्स की 73 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की उस सूची में रिलायंस इंडस्ट्री के अध्यक्ष मुकेश अंबानी 36 वें, आर्सेलर मित्तल के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी लक्ष्मी मित्तल 55वें पर और माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सत्य नडेला 61वें स्थान पर रहे थे।
फोर्ब्स के अनुसार उस समय भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री के कार्यकाल के पहले वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में 7.4 प्रतिशत की वृृद्धि हुई। इसके बाद अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्राओं के समय उनकी छवि एक वैश्विक नैता के रूप में उभर कर सामने आई। उनके सिलिकॉन वैली के दौरे ने भारत में आधुनिक तकनीक को व्यापक महत्व दिए जाने को रेखांकित किया। वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पहले वर्ष में ही भारत ने अंगड़ाई लेनी आरंभ कर दी थी और वह दुनिया की नजरों में चढ़ने लगा था। फोर्ब्स के उपरोक्त तथ्यों पर यदि विचार किया जाए तो निश्चित रूप से यही निष्कर्ष निकलता है।
उस समय फोर्ब्स ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा के साथ ही उन्हें सचेत भी किया था कि “सवा सौ करोड़ की आबादी का नेतृत्व करना आसान काम नहीं हैं। अब मोदी को अपने पार्टी के सुधार के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए और विपक्ष को काबू में करना चाहिए।” ताकतवर लोगों की सूची में मोदी के बाद जगह बनाने वाले अगले भारतीय उस समय मुकेश अंबानी थे। फोर्ब्स ने कहा था कि मुकेश अंबानी ने भारत के सर्वाधिक धनी व्यक्ति की स्थिति को निरन्तर बनाए रखा है। वह लगभग एक दशक से इस स्थान पर बने हुए हैं।
उस समय रूस के नेता पुतिन लगातार तीसरे वर्ष इस सूची में पहले पायदान पर थे। पत्रिका ने कहा कि रूस के राष्ट्रपति ने यह सिद्ध किया है कि वह विश्व के उन चंद प्रभावशाली लोगों में से हैं जो अपने मन की करते हैं। क्रीमिया पर रूस के कब्जे और यूक्रेन में उसके दखल के बाद चौतरफा आलोचना तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध ने रूस को गहरे संकट में डाल दिया था लेकिन इसके उपरांत भी पुतिन को कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
पुतिन हों या देश विश्व का कोई अन्य नेता हो, ये कई बार चर्चाओं के घेरे में इसलिए आते हैं कि वह लोकतंत्र का गला घोटते हैं या कोई ऐसा कार्य करते हैं जिससे विश्व शांति को खतरा उत्पन्न होता है। वास्तव में ‘अपने मन की’ करने का अभिप्राय यही है कि वह नेता लोकतांत्रिक विचारधारा को स्वीकार नहीं करता है। रूस, अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस के कई नेता यदि इस प्रकार की चर्चाओं में आए हैं या कहीं पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त करने में सफल हुए हैं तो उनको ऐसी सफलता अपनी हैकड़ी के आधार पर मिली है , जबकि भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपने माध्यम से भारत को सम्मान पूर्ण स्थान दिलाने में इसलिए सफलता प्राप्त की है कि उन्होंने संसार को भारत का परंपरागत मानवतावादी दृष्टिकोण समझाने में सफलता प्राप्त की। इसके साथ ही अपने देश की उन्नति और प्रगति के नए सोपानों को छूने की ओर भी तेजी से कदम बढ़ाए । यद्यपि भारत में उनके आलोचक उन पर कई प्रकार के ऐसे आरोप लगाते रहे हैं जिन्हें लोकतंत्र में स्थान तो दिया जाता है ,परंतु परिपक्व लोकतंत्र में वे निंदनीय ही माने जाते हैं।
अब विश्व नेताओं की अप्रूवल रेटिंग करने वाली डेटा फर्म ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए नेट अप्रूवल को 55 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रखा है। मॉर्निंग कंसल्ट , जो कि विश्व भर में सर्वे और शोध करती है, ने अपने नवीनतम सर्वे में कहा है कि 75 प्रतिशत से अधिक लोगों ने मोदी को पसन्द किया, जबकि 20 प्रतिशत ने अस्वीकार किया, जिससे उनकी अप्रूवल रेटिंग 55 हो गई। इस सर्वेक्षण से पता चला है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी इस समय विश्व नेता के सम्मानपूर्ण स्थान को प्राप्त कर चुके हैं और उनकी बराबरी में विश्व का कोई भी नेता इस समय टिक नहीं पाया है।
उपरोक्त सर्वेक्षण के अनुसार जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के लिए ये आंकड़ा 24 प्रतिशत है, जबकि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के लिए नकारात्मक है क्योंकि अधिक लोगों ने जॉनसन के काम को अस्वीकार किया। इस प्रकार के सर्वेक्षण से स्पष्ट हो जाता है कि 2015 का भारत 2020 में विश्व को नेतृत्व देने की दिशा में बहुत अधिक शक्तिशाली बन चुका है।
परंतु एक निराशाजनक पक्ष यह भी है कि एशिया पावर इंडेक्स 2020 के अनुसार संसार के सबसे शक्तिशाली देशों में भारत का 2019 में पावर स्कोर 41.0 था, जो 2020 में घटकर 39.7 पर आ गया है। इस सूची में, 40 या उससे अधिक अंक वाले देश को विश्व की प्रमुख शक्ति माना जाता है। । भारत को पिछले वर्ष उस सूची में सम्मिलित किया गया था, पर कुछ बिंदुओं के कारण यह इस वर्ष समाप्त हो गया।
एशिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश विश्व शक्ति के अपने सम्मान पूर्ण स्थान से पीछे खिसककर अब मध्य शक्ति सूची में चला गया है। यद्यपि यह देश आने वाले वर्षों में फिर से इस सूची में सम्मिलित हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत-प्रशांत के सभी देशों के बीच, भारत ने कोरोना वायरस के कारण विकास क्षमता खो दी है। माना जा सकता है कि लगभग डेढ़ अरब की आबादी को कोरोनावायरस से सफलतापूर्वक बाहर निकालने में मोदी सरकार सफल रही है और इस समय हमारी आर्थिक क्षमताओं का बहुत बड़ा भाग कोरोना से लड़ने में समाप्त हो गया है। निश्चित रूप से विश्व शक्ति के सम्मान पूर्ण स्थान को प्राप्त कर इस बार उससे बाहर रह जाना हमारे लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर हमारे सामने खड़ी है । हमें विश्वास है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी इस वर्ष अपनी संकल्प शक्ति के बल पर और देश की जनता के सहयोग के भरोसे इस स्थान की क्षतिपूर्ति करने में सफल होंगे।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और चीन की आबादी लगभग बराबर है। कुछ वर्षों के बाद सम्भव है कि भारत जनसंख्या के क्षेत्र में चीन से आगे निकल जाएगा। लेकिन, भारतीय समाज पर कोरोना वायरस के हमले ने दोनों देशों के बीच शक्ति की असमानता को बढ़ा दिया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मौजूदा रुझानों के अनुसार, इस दशक के अंत तक, भारत चीन के कुल आर्थिक उत्पादन का केवल 40% तक पहुंचने में सक्षम होगा। जबकि 2019 में इसके 50 प्रतिशत रहने की आशा थी।
वास्तव में भारत के लिए बढ़ती जनसंख्या एक बहुत बड़ी समस्या बनने वाली है। भारत में जनसंख्या को बढ़ाने में लगे हुए मुस्लिम समाज के लोग देश के लिए घातक परिस्थितियों का निर्माण करते जा रहे हैं। जिससे भविष्य में अनेकों प्रकार की समस्याओं, रोगों और सामाजिक विसंगतियों का सामना भारत को करना पड़ेगा । भविष्य में जनसंख्या के कारण जितनी भी समस्याएं बढ़ेंगी, देश विरोधी शक्तियां तब देश पर शासन करने वाली सरकार को उसके लिए कोसेंगी। तब जनसंख्या बढ़ाने में लगे हुए आज के मुस्लिम वर्ग को वे यह कहकर उकसाने का काम करेंगी कि देश की अब तक की सरकारें हिंदू के लिए काम करती रही हैं, उन्होंने मुसलमानों के लिए काम नहीं किया है । तब अशिक्षा और भुखमरी की मार झेल रहे मुस्लिम समाज के लोग इसी बात को लेकर देश में उपद्रव ,उत्पाद और दंगे भड़काने की योजनाओं पर काम करेंगे। जिससे कि देश का विभाजन हो सके और देश को विनाश के गर्त में धकेला जा सके। निश्चित रूप से इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी को अभी से विशेष कदम उठाने चाहिए और जनसंख्या कानून बनाकर देश को भविष्य की आपदा से बचाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।
हमें इस बात पर गर्व है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी के रूप में देश को वैश्विक मंचों पर सम्मान मिल रहा है और यह यदि प्रधानमंत्री श्री मोदी विश्व नेता के रूप में उभर रहे हैं तो मानना चाहिए कि भारत ही विश्व नेता के रूप में उभर रहा है। पर इस सबके उपरांत हमें देश के भीतर सक्रिय देश विरोधी शक्तियों की गतिविधियों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। जो न केवल प्रधानमंत्री मोदी के बढ़ते कदमों को काटना चाहती हैं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से वह देश को ही उन्नति और प्रगति के छूते सोपानों से पीछे धकेलने की योजनाओं पर काम करते दिखाई दे रहे हैं।
यह अत्यंत दुखद है कि जब पूरा देश 15 अगस्त 1947 से ही विश्व नेता बनने के संकल्प को लेकर चला था और जब हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने देश के नागरिकों के मौलिक कर्तव्य में यह बात स्पष्ट लिखी थी कि भारत को विश्वगुरु बनाना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा तो विश्व गुरु बनते भारत के बढ़ते संकल्प को तोड़ने की कोशिशों में लगे लोगों के विरुद्ध सारी राजनीति और सारे राजनीतिज्ञ एक क्यों नहीं होते हैं ? देश के नागरिकों का समर्थन देश विरोधी शक्तियों के साथ कतई नहीं है। वे तो केवल यह देखना चाहते हैं कि देश की राजनीति और देश के राजनीतिक लोग भी उन्हीं की भांति देश विरोधी लोगों का विरोध करें और उनके विरुद्ध सरकार को इस बात के लिए प्रेरित और बाध्य करें कि वह जैसे भी चाहे उनका इलाज करने के लिए स्वतंत्र है। जब ऐसी सोच हमारी राजनीति और राजनीतिक लोगों की बन जाएगी तभी माना जाएगा कि भारत अब परिपक्व लोकतंत्र बन चुका है। तभी यह भी माना जाएगा कि वह विश्व मंचों पर बढ़ते भारत के सम्मान को सही ढंग से आंकने की क्षमता अर्जित कर चुका है। पर इस सबसे पहले राजनीति और राजनीतिज्ञों को यह स्पष्टत: स्वीकार करना ही पड़ेगा कि मोदी के नेतृत्व में भारत निरंतर आगे बढ़ रहा है और निरंतर आगे बढ़ते भारत के साथ हम सब ‘एक’ हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत