सबसे पुरानी पार्टी आज अजीब पशोपेश में होने के कारण बिना अध्यक्ष के चल रही है। पार्टी का उत्तर प्रदेश आधार होने के बावजूद वहां भी अपना प्रभुत्व खो चुकी है, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि आने वाले समय में कांग्रेस की स्थिति किसी क्षेत्रीय पार्टी से भी दुखत होने वाली है।
वैसे भी आज पार्टी को अपना वजूद बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के अंतर्गत चुनाव लड़ने को मजबूर है, क्योकि अध्यक्ष पद केवल परिवार के ही अधीन रहने के कारण पार्टी में ही कोहराम मचा हुआ है। बुद्धिजीवी केवल नाममात्र के ही रह गए हैं, कोई नहीं सुनता। वैसे तो पार्टी में कोहराम सोनिया गाँधी के हस्तक्षेप करने के बाद से ही शुरू हो चूका था, लेकिन कोहराम जगजाहिर अब हुआ है।
कांग्रेस पार्टी और उसका अध्यक्ष पद एक अनसुलझी गुत्थी बनकर रह गया है। न तो कांग्रेस की हालत में कोई सुधार हो रहा है और न ही उसे उसका पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल पा रहा है। बताया जा रहा है कि राहुल गांधी किसी भी तरह से अध्यक्ष बनने को राजी नहीं हैं। बीते साल लोकसभा चुनावों के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और फिर अगस्त में पार्टी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष चुना। हालांकि, 18 महीने बीत जाने के बाद भी कांग्रेस को अपना स्थायी अध्यक्ष नहीं मिला है। पार्टी के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने इसी महीने कहा था कि 99.9 प्रतिशत कांग्रेसी राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाना चाहते हैं लेकिन अब यह सामने आ रहा है कि राहुल गांधी खुद ही अध्यक्ष बनने से हिचक रहे हैं। ऐसे में पार्टी ने अपने लिए एक प्लान बी तैयार किया है।
पार्टी की कोर ग्रुप में शामिल कुछ नेताओं ने बताया कि राहुल गांधी को मनाने की कई बार कोशिश की गई है, लेकिन वह इस पद पर वापसी से हिचक रहे हैं। अब यह लगभग निश्चित है कि हाल-फिलहाल में राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी चीफ के तौर पर वापसी नहीं करेंगे। गौरतलब है कि सोनिया गांधी के खराब स्वास्थ्य की वजह से पार्टी नेताओं ने ज्यादा समय दे सकने वाले एक सक्रिय नेता की मांग की है। इसी साल अगस्त में कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया को चिट्ठी लिख कर पार्टी की कार्यशैली में बदलाव किए जाने की मांग की थी। इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वालों में सांसद शशि तरूर और मनीष तिवारी, राज्य सभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण शामिल थे।
पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल को मनाने की कोशिश कर रहे हैं। इन सबने सोनिया गांधी से भी बात की है, ताकि वह राहुल का फैसला बदल सकें लेकिन राहुल अध्यक्ष बनने से हिचक रहे हैं। कांग्रेस पार्टी अब दूसरी रणनीति पर भी काम करने लगी है। अगर राहुल पार्टी के अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो कांग्रेस के अंदर प्लान बी की भी चर्चाएं जोरों पर हैं, जिसके मुताबिक पार्टी सोनिया गांधी के अंतर्गत चार उपाध्यक्ष नियुक्त कर सकती है। हर जोन के लिए एक उपाध्यक्ष चुना जा सकता है।
कहा जा रहा है कि उसके बाद सोनिया बस अध्यक्ष पद पर रहेंगी, ये चार उपाध्यक्ष आपसी सहमति से मिलकर सभी फैसले लेंगे। इन चारों के नीचे भी तीन-तीन जनरल सेक्रटरी रहेंगे। राहुल गांधी दिसंबर 2017 में अध्यक्ष बने थे और उनका कार्यकाल 2022 में खत्म होता, लेकिन लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने साल 2019 में ही इस्तीफा दे दिया। सोनिया गांधी तब तक पार्टी अध्यक्ष रह सकती हैं, जब तक पार्टी की एक राय से कोई अगला शख्स अध्यक्ष न चुन लिया जाए। हालांकि, इसकी संभावना कम है क्योंकि पार्टी के वरिष्ठ और युवा नेता दो गुटों में बंट गए हैं।
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