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होती है नर से भारी नारी

41_02_03_37_11_H@@IGHT_246_W@@IDTH_321डा0 इन्द्रा देवी
लम्बे समय से एक सी मुद्रा, भंगिया एवं तेवर में प्रचलित होने के कारण नारी सशक्ति शब्द धिस पिट सा गया है। इसकी स्थिति उस अप्रचलित नोट या सिक्के की भॉंति है जो मूल्य और उपयोगिता को खो देने के पश्चात भी एक लोभ के वशीभूत बटुए में एक और अपना स्थान सुरक्षित किये हुए है। अपनी ही एक पसली से बनी नारी को क्या तवोज्जों दी जाये। आम जीवन में अबला शब्द नारी के लिए स्वभावगत कमजोरी और पुरूष के लिए मर्दानगी का प्रतीक है। अबला शब्द में नारी चेतना का एक छोटा सा बीज है। इसलिए ये शब्द न गाली है न चुनौती अपितु मनुष्य नागरिक ओर सामाजिक प्राणी की हैसियत से नारी के मानवीय महत्व की सघर्षपूर्ण मांग है।
सिद्धांत के रूप में नारी के शरीर और सरोकारों पर बात करना जितना आसान है, उतना ही कठिन है। नारी की जन्मगत-स्वभावगत समाज प्रदत दयनीय स्थिति को लेकर पुरूषों की वाणी-लेखनी आज भी गीली हो जाती है जैसे एक नही दो दो मात्राए नर से भारी नारी अबला जीवन हाय तुम्हारी, योनि नही है रे नारी मुक्त करो नारी की मानव, चिरबदिंनी नारी को, इन काव्योशों को पढकर प्रश्न कौंधता है कि वह सघर्षशील, कर्मठ जो वायदों और सिद्धान्तों से परे जिन्दगी की कर सच्चाईयों में रच बस कर अपने में ‘ब्रहम’ को देखती है। ईधन-पानी जैसी घरेलू समस्याओं से निपटने की जहद्दोजहद में समाज सुरक्षा और पर्यावरण की रक्षा का दायित्व अपने कॅंधों पर उठा लेती है।
स्वाभाविक है पुनरावृत्ति के सभी आदेशों के पश्चात भी नारी और उसके सबल रूप को नये सिरे से समझना आवश्यक हो जाता है। प्रागैतिहासिक काल से ही शारीरिक संरचना के अतिरिक्त प्रजनन के आधार पर भी पूरूष को श्रेष्ट और नारी को निकृष्ट माना गया है। पुरूष श्रेष्टता का यह तथ्य शरीर विज्ञान की कसौटी पर खरा नही उतरता। विज्ञान की नयी नयी खोज श्रेष्टता की अट्टालिका पर प्रहार करती है। समाज में विज्ञान सत्य का पर्याय है इसीलिए उसे इन शोधों को स्वीकार करना ही पडता है। सह खोज निरन्तर यह साबित करने में लगी है कि नारी पुरूष से किसी भी मायनें में कम नही है। आज उन सभी क्षेत्रों में महिलाए सक्रिय है। जिनमें उनके प्रवेश की कल्पना भी नही की गई थी। इस लडाई में अगर नारी का कोई साथी है तो वह है शरीर विज्ञान का तथ्य।
यह विज्ञान का ही परिणाम है कि आज की युवतियॉं मासिक धर्म को अपने जीवन की एक अवस्था मात्र मानती है। अब वे इसे छिपाने के क्रम में परिवार और समाज के समक्ष मानसिक तनाव लेकर नही जाती है। खोजें सिद्ध करती है कि नारी का मस्तिष्क उनके शरीर के आकार के अनुरूप ही छोटा होता है। किन्तु उसमें तत्रिंकाओं का धनत्व पुरूषों की अपेक्षा अधिक रहता है। नारी रक्त में शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूती देने वाले इम्योनोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती है। इसके विपरीत मर्द के रक्त में हिमोग्लोबिन अधिक होता है। नारी मस्तिष्क का अधिकॉंश भाग उदासी को समर्पित होता है जबकि पुरूष आन्तरिक पीडाओं के प्रति ज्यादा सजग।
प्राय: शारीरिक रूप से पुरूष अधिक गठीला, नारी तुलना में दस से बारह फिसदी लम्बे, बीस से बाईस फिसदी ज्यादा भारी एवं तीस से बत्तीस फिसदी ज्यादा ताकतवर होता है। जबकि नारी का शरीर थकान को ज्यादा बर्दाश्त कर पाता है।
वह अधिक समय तक बिना थके कार्य कर सकती है। परिणाम स्वरूप हम घर और इसके आस पास देखते हें कि नारियों का कार्य दिवस और कार्य घण्टे अधिक होते है। पुरूष काम से घर लौटता है, नारी नोंकरी से पुन कार्य पर लोटती है क्योकि घर की कार्यशाला उसे कभी मुक्त नही होने देती।
जीव विज्ञान नारी को सबलता देने में सर्वाधिक प्रमाणिक तथ्य देता है। टेस्टोस्टिरोन को पूर्ण रूप से पुरूषों का और एस्टोजेन को नारी का हॉंर्मोन माना जाता था। जीव विज्ञान ने बताया की दोनो हॉंर्मोन दोनो ही लिगों में पाए जाते है। हमारी इस धारणा को भी ठेस लगी कि संतान पुरूष भाग्य में होती है और लक्ष्मी नारी भाग्य में। इसलिए अब कन्या पैदा होने के लिए मॉं को ही उत्तरदायी नही माना जाता है। नारी शरीर की आन्तरिक बनावट समाज के ज्यादा अनुकुल होती है क्योकि प्रकृति ने उसे अपने स्तनों का दूध पिलाकर शिशु को जिन्दा रखने की युक्तियों से लैस किया है, तभी उसका नाम कल्याणी किया है।
विज्ञान ने नारी को कई बाते ऐसी समझाई जिन्हे अज्ञानवश नारी भार समझती थी वे वास्तव में उनकी शक्तियॉं है।
मासिक धर्म से पहले की पीडा के कारण स्त्रीयों में जिस चिडचिडेपन के आने की बात कही जाती है वह वास्तव में उनके अन्दर नयी उर्जा का संचार करती है। विभिन्न संस्कृतियों के बच्चों के अध्ययन से पता चलता है कि तीन वर्ष की आयु तक दोनो ही लिगों के बच्चों में बराबर अक्रामकता होती है और यही वह समय होता है जब लडकियों को यह अभ्यास कराया जाता है कि वह लडकी है।

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