भारत की लापता होती जा रही धरोहरों की किसी को नहीं है चिन्ता

 

आशीष कुमार ‘अंशु ‘

भारतीय धरोहर के प्रति सरकार कितनी गम्भीर है? यह सवाल पिछले दिनों जब जैसलमेर किले (सोनार किला) की दीवार गिरी तो और अधिक गम्भीरता से सामने आकर खड़ा हुआ क्योंकि दीवार गिरने की घटना अचानक नहीं हुई। आठ सौ साठ साल पुरानी इस दीवार के गिरने का खतरा पिछले सात सालों से किले पर मंडरा रहा है। वर्ष 2009 में आए भूकंप ने पूरे किले को हिलाकर रख दिया था। बताया जाता है कि किला जिस पहाड़ पर बना हुआ है, यह 154 लाख साल पुराना है। लगभग दस साल पहले एक बार और अंदर की दीवार गिरने से कुछ लोगों की मौत भी किले में हुई थी।
जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय नीति, शिक्षा और संस्कृति पर आजादी के बाद से ही उन लोगों का कब्जा रहा है, जिनकी जिम्मेवारी भारतीय नीति, शिक्षा और विकास के लिए योजना बनाना था लेकिन दुर्भाग्यवश उनकी दृदृष्टि पश्चिमी देशों से कुछ अधिक ही प्रभावित थी। पश्चिमी देशों के छद्म चकाचौंध में वे भारतीय धरोहर का सही मोल नहीं समझ पाए। वरना यह क्यों होता कि जिस बनारस की पहचान पूरी दुनिया में बाबा विश्वनाथ शिव से है, उन बाबा विश्वनाथ के मंदिर को एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) भारतीय धरोहर की सूची में रखना भी जरूरी नहीं समझता। जबकि राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में कई अंग्रेजों के कब्रिस्तान तक शामिल हैं। मसलन निकोलसन की कब्र। वास्तव में भारत में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के लिए भारत में राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, धरोहर, स्थान की पहचान करने का काम मैकॉले के मानस पुत्रों, अनुयायियों के हाथ में रहा। जिसका नुकसान भारत को भारतीय समाज को हुआ।
फ्रांसीसी इतिहासकार फर्नान्ड ब्राउडेल ने सभ्यताओं पर जबर्दस्त काम किया था। सभ्यता को ब्राउडेल इन शब्दों में समझाते हैं- कुछ ऐसा जिसे समाज बचाकर रखना चाहता हो और उसे एक बेशकीमती उपहार, विरासत के तौर पर सहेज कर अगली पीढ़ी को सौंपना चाहता हो। समाज की वह विरासत एक पीढ़ी से दूसरी और तीसरी पीढ़ी होती हुई पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती चली जाए।’
बात भारतीय परिपेक्ष्य की करें तो भारतीय सभ्यता के लिए सबसे अधिक चुनौती भरा समय अंग्रेजों का सम्राज्यवादी दौर था। दुर्भाग्य की बात यह है कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी यह चुनौती कम नहीं हुई। उसके बाद भारतीय संस्कृति के सवालों और राष्ट्रवाद की सोच पर लगातार हमले तेज हुए। अंग्रेजों से लेकर मैकाले के मानस पुत्रों के दौर तक गिनती के लोग थे, जो भारतीय परंपरा, संस्कृति और भारतीय विरासत की वकालत कर रहे थे। उसे बचाए रखने के प्रयास के लिए अभियान चला रहे थे, समाज को जागरूक कर रहे थे अथवा लगातार लिख रहे थे। स्वामी विवेकानंद, श्री अरविन्द, महर्षि दयानंद, मदन मोहन मालवीय, गुरुदत्त, आचार्य चतुरसेन, दीनदयाल उपाध्याय ऐसे ही कुछ नाम हैं।
आजादी के बाद शिक्षा और संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण पदों पर शिक्षा-संस्कृति की नीति और दिशा तय करने के लिए बिठाए गए लोगों पर नेहरूवाद का प्रभाव इस कदर हावी था कि भारतीयता पर गर्व करने की प्रेरणा जिस शिक्षा नीति से छात्रों को मिलनी चाहिए थी। उस लक्ष्य को पाने में भारतीय शिक्षा नीति पूरी तरह असफल रही। जबकि पाठ्यक्रम में बच्चों को जानबूझकर कई आपत्तिजनक जानकारी दी जाती रही। जिन भारतीय नायकों पर पूरा देश गौरव करता है, उनके संबंध में कई भ्रामक जानकारी लगातार पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से छात्रों को दी जाती रही। सनातन धर्म के आदर्श पुरुषों को मिथ्या बताया जाता रहा। रामायण को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया तो प्रामाणिक वाल्मीकि रामायण की जगह, वह सारे रामायण पढाए गए, जिनमें श्रीराम और रामायण से जुड़ी मन गढंत कहानी लिखी गई थी और जिनका वाल्मीकि रामायण में उल्लेख तक नहीं है। इन उदाहरणों से समझा जा सकता है कि पाठ्यक्रम तैयार करने वाले मैकॉलेवादी नेहरू भक्तों की मंशा भारतीय संस्कृति को समाज के सामने किस तरह पेश करने की रही होगी।
यह सच्चाई है कि हम कभी भी कमजोर इच्छाशक्ति के साथ, मजबूत इरादों वाले देश का निर्माण नहीं कर सकते। बात यदि इतिहास के साथ साथ ऐतिहासिक विरासत, स्मारको की करें तो इसे लेकर हम सब कितने गंभीर हैं, इस बात का अनुमान एएसआई द्वारा दी गई इस सूचना से आप लगा सकते हैं कि देश की चौबीस महत्वपूर्ण धरोहर, स्मारक देश से गायब हैं। यह जानकारी पिछले साल लोकसभा को देश के संस्कृति मंत्राी महेश शर्मा ने दी थी। इन चौबीस में से ग्यारह राष्ट्रीय महत्व के स्मारक, धरोहर अकेले उत्तर प्रदेश से गायब हुए हैं। हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र से राष्ट्रीय महत्व के दो-दो महत्वपूर्ण स्मारक, धरोहर लापता हैं। असम, अरूणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल से एक एक मोनुमेन्ट गायब हुए हैं। सीएजी की 2013 की रिपोर्ट बताती है कि गायब हुए ऐतिहासिक महत्व के संरक्षित स्मारक, धरोहर (मोनुमेन्ट) की संख्या चौबीस नहीं बल्कि बानवे है। इस मामले की जांच में लगे एएसआई के जांच अधिकारियों ने पाया कि सिर्फ चौबीस ऐतिहासिक धरोहरों को वे तलाश नहीं पाए। बाकि बचे चौबीस धरोहर अपनी जगह पर ही मौजूद थे। चौदह धरोहर तेजी से हो रहे शहरीकरण की चपेट में हैं और बूरी तरह प्रभावित हुए हैं। बारह स्मारक, धरोहर जलाशयों और बांध की जद में हैं। इस जानकारी के बाद आपके लिए यह अनुमान लगाना कठीन नहीं होगा कि भारत की सरकार अपने ऐतिहासिक स्मारकों और राष्ट्रीय धरोहरों के संरक्षण को लेकर कितनी गम्भीर है। जबकि इनक्रेडिबल इंडिया अभियान में भारत सरकार कितना पैसा विदेशी पर्यटकों को भारत के प्रति आकर्षित करने के लिए खर्च कर रही है। दूसरी तरफ हमारे ऐतिहासिक स्मारकों के रख रखाव और देखभाल को लेकर सरकार उतनी ही उदासीन है।
पिछले दिनों चंदेरी, मध्य प्रदेश की यात्रा में मैने पाया कि वहां के ऐतिहासिक किलों की देखभाल का काम करने वाले कर्मचारियों को महीनों से वेतन नहीं मिला था। वे पर्यटकों के आसरे बैठे हैं कि वे आएंगे तो उनसे कुछ हासिल होगा। जब कर्मचारियों को समय पर पैसा ही नहीं मिलेगा। अधिकांश कर्मचारी ठेके पर रखे जाएंगे फिर अपने राष्ट्रीय धरोहरों की देखभाल को लेकर हम सब आश्वस्त कैसे हो सकते हैं?
बताया जा रहा है कि नई सरकार और उसके मंत्राी लापता भारतीय स्मारकों, धरोहरों को तलाशने के प्रति गंभीर हैं। इस संबंध में धरोहर से जुड़ी पुरानी फाइलें, रिकॉर्ड्स, रेवेन्यू मैप, संदर्भ आलेख की पड़ताल जारी है और जमीन पर जाकर जांच के लिए एक टीम की नियुक्ति कर दी गई है। जो लापता ऐतिहासिक स्मारकों, इमारतों, भवनों, धरोहरों की तलाश करेगा।
भविष्य में इस तरह की घटनाएं ना दोहराई जाएं इसे लेकर भी वर्तमान सरकार गम्भीर दिख रही है। इसी का परिणाम है कि नेशनल रिमोट सेंसिंग सेन्टर, इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के साथ एएसआई, समझौता कर रहा है जिसके बाद इनकी मदद से भारतीय धरोहरों, स्मारकों, भवनों आदि का सेटेलाइट आधारित मानचित्रा बनाया जाएगा। इससे संरक्षित एवं राष्ट्रीय स्मारकों और स्थानों का रिकॉर्ड रखना आसान हो जाएगा।
यह सच है कि हम अपने इतिहास को लेकर सजग नहीं रहे, इसी का परिणाम है कि बार-बार हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ किए जाने का दुस्साहस किया जाता रहा। अब जरूरत है प्रयासपूर्वक अपने इतिहास से जुड़े दस्तावेजों को सहेजने और संभालने की क्योंकि आने वाली पीढ़ियां पूछेंगी कि आपने पीढ़ियों से चली आ रही संस्कृति की सांस्कृतिक विरासत में उनके लिए क्या बचाकर रखा है? वह पूछेगी कि कहां गए वे स्मारक जिन्हें दस्तावेजों में गायब बताया जा रहा है। वह पूछेगी कि उनके लिए आपने जैसलमेर का किला क्यों नहीं बचाया? उसकी दीवार गिरती रही और आप क्यों सोए रहे?

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