ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त होते ही उत्तर प्रदेश प्रशासन ने संभाली कमान
अजय कुमार
चुनाव कब होंगे यह तो समय ही बताएगा, लेकिन अबकी बार पंचायत चुनाव की तस्वीर काफी बदली हुई नजर आएगी। पंयाचत क्षेत्रों का पुनः परिसीमन हुआ है। वहीं अबकी से योगी सरकार ग्राम प्रधान चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों की योग्यता भी निर्धारित करने जा रही है।
उत्तर प्रदेश के ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त हो गया है। नये प्रधान कब तक चुने जाएंगे, इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भले 31 मार्च तक पंचायत चुनाव कराये जाने का आदेश दे दिया हो, लेकिन 31 मार्च तक चुनाव हो पाएंगे, ऐसा लगता नहीं है। पंचायती राज निदेशक ने सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिया है कि 25 दिसंबर की रात 12 बजे से प्रधानों के खाते पर रोक लगा दी जाए। हालांकि ग्राम प्रधान सगंठनों की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कार्यकाल बढ़ाने की मांग के साथ उन्हें ज्ञापन भी भेजा गया था। प्रधान संगठनों का कहना था कि जब तक पंचायत चुनाव नहीं होते तब तक मौजूदा ग्राम प्रधानों से ही संचालन कराया जाए।
तमाम किन्तु-परंतुओं के बीच उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग चुनाव की तैयारी में लगा हुआ है। आयोग द्वारा यूपी के पंचायत चुनाव के लिए लगभग साढ़े पांच लाख मतपेटियों का इंतजाम किया जा रहा है और साथ ही 90 हजार नए बैलेट बॉक्स भी बनवाए जा रहे हैं। बताते चलें कि चुनाव आयोग मतदान स्थलों की संख्या से लगभग ढाई गुना ज्यादा मतपेटियां चुनाव के लिए भेजता है। इसके अलावा कुल मतपेटियों का 10 फीसदी आयोग रिजर्व रखता है। इसी वजह से चुनाव आयोग ने आगामी पंचायत चुनाव के लिए साढ़े पांच लाख मतपेटियों और बैलेट बॉक्स की व्यवस्था की है।
उत्तर प्रदेश चुनाव आयोग द्वारा 22 जनवरी 2021 तक मतदाताओं की सूची हर हाल में तैयार कर लेने का अल्टीमेटम दिया गया था। इस बार यूपी में पंचायत के चारों पदों के लिए एक साथ चुनाव कराए जाने की तैयारी है, जिसमें क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्य शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में कुल 58,758 ग्राम पंचायतें, 821 क्षेत्र पंचायतें और 75 जिला पंचायतें हैं, जहां चुनाव कराए जाने हैं। 2015 में हुए यूपी पंचायत चुनाव में एक लाख 80 हजार मतदान स्थल बनाए गए थे। एक मतदान स्थल पर लगभग एक हजार मतदाता की संख्या रखी गई थी। इस बार साल 2021 में होने वाले पंचायत चुनाव में मतदाताओं की संख्या एक मतदान स्थल पर एक हजार से घटाकर 800 रखी जा रही है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की ग्राम पंचायतों का कार्यकाल 25 दिसंबर की रात 12 बजे समाप्त हो गया और गांवों की कमान सहायक विकास अधिकारी (एडीओ) पंचायत के हाथ में चली गयी। ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही प्रधानों के वित्तीय एवं प्रशासनिक अधिकार समाप्त हो गये। पंचायत चुनाव होने तक प्रशासक ही यह जिम्मेदारी निभाएंगे।
उधर, पंचायत राज विभाग से आदेश मिलने के बाद तमाम जिला प्रशासन की ओर से प्रशासक नियुक्त करने की तैयारी की जा चुकी है लेकिन प्रधानों का संगठन शासन के अधिकारियों से मिलकर कार्यकाल बढ़वाने के प्रयास में लगा है। पंचायती राज निदेशक की ओर से जारी पत्र में इस बात के साफ संकेत हैं कि कार्यकाल नहीं बढ़ने वाला है। पंचायत राज निदेशक किंजल सिंह की ओर से जारी पत्र में 25 दिसंबर की रात 12 बजे से प्रधानों के वित्तीय अधिकार पर रोक लगाने को कहा गया है। पत्र में कहा गया है कि तय समय के बाद किसी भी तरह का राज्व वित्त या 15वें वित्त का धन प्रधानों की ओर से जारी हुआ तो संबंधित सचिव, एडीओ पंचायत व जिला पंचायत राज अधिकारी जिम्मेदार होंगे।
चुनाव कब होंगे यह तो समय ही बताएगा, लेकिन अबकी बार पंचायत चुनाव की तस्वीर काफी बदली हुई नजर आएगी। पंचायत क्षेत्रों का पुनः परिसीमन हुआ है। वहीं अबकी से योगी सरकार ग्राम प्रधान चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों की योग्यता भी निर्धारित करने जा रही है। यूपी सरकार ग्राम पंचायत चुनाव में महिला और आरक्षित वर्ग के लिए न्यूनतम 8वीं पास शैक्षिक योग्यता तय कर सकती है। इसके अलावा दो से ज्यादा बच्चे वाले दावेदारों को भी पंचायत चुनाव में झटका लग सकता है। सूत्रों की मानें तो यूपी सरकार दो से अधिक बच्चे वाले महिला-पुरुष उम्मीदवार के चुनाव लड़ने पर रोक लगा सकती है।
एक तरफ योगी सरकार पंचायत चुनाव लड़ने वालों के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने के साथ-साथ दो बच्चों से ज्यादा वालों को कानून बनाकर चुनाव लड़ने के अयोग्या ठहराना चाह रही है तो वहीं विपक्ष इसे योगी सरकार की साजिश करार दे रहा है। विपक्ष को लगता है कि योगी सरकार दलितों और अल्पसंख्यकों को चुनाव से दूर रखने के लिए इस तरह के फैसले ले रही है। इसी लिए सपा-बसपा और कांग्रेस सभी पंचायत चुनाव में बदलाव को सियासी मुद्दा बनाए हुए हैं, जबकि यह नियम कई राज्यों में पहले से लागू है।