पाकिस्तान की घबराहट का कारण क्यों बनी करीमा बलोच ?

राष्ट्र-चिंतन*

*विष्णुगुप्त*

करीमा बलोच से क्यों डरता था पाकिस्तान? पाकिस्तान ने करीमा बलोच की हत्या क्यों करायी? करीमा बलोच क्या पाकिस्तान की कूटनीति के लिए बड़ा खतरा थी? क्या पाकिस्तान की कूटनीति करीमा बलोच की वैश्विक सक्रियता से हमेशा दबाव महसूस करती थी? क्या करीमा बलोच की वैश्विक सक्रियता से पाकिस्तान की राष्ट्रीय अस्मिता और राष्ट्रीय अखंडता को एक बडी चुनौती मिलती थी? क्या करीमा बलोच अपनी वैश्विक सक्रियता से बलोच आंदोलन को एक बडी और प्रभावकारी शक्ति प्रदान करती थी? क्या करीमा बलोच बलूचिस्तान राज्य निर्माण का सपना देखने वाली बड़ी हस्ती थी? क्या करीमा बलोच ने अपने आंदोलन और वैश्विक सक्रियता से पाकिस्तान ही नहीं बल्कि चीन की भी नींद हराम कर रखी थी? क्या करीमा बलोच चीन और पाकिस्तान की उपनिवेशिक नीति व करतूत को दुनिया के सामने बेपर्द करने की अहम भूमिका निभायी थी? क्या करीमा बलोच बलूचिस्तान के अंदर चीनी प्रोजेक्ट के खिलाफ सशक्त जनांदोलन को लगातार शक्ति प्रदान कर रही थी? क्या करीमा बलोच की हत्या कराने में पाकिस्तान के साथ ही साथ चीन की भी कोई भूमिका है? क्या करीमा बलोच की हत्या मानवाधिकार के लिए एक खतरे की घंटी है? क्या करीमा बलोच की हत्या पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार ंसंगठनों को गंभीर सक्रियता नहीं दिखानी चाहिए? क्या करीम बलोच की हत्या के खिलाफ संयुक्त राष्ट्रसंध द्वारा निष्पक्ष और प्रभावशाली जांच नहीं करायी जानी चाहिए? करीम बलोच की हत्या से भारत की कूटनीति को भी कोई धक्का लगा है क्या? ये सभी प्रश्न अति महत्वपूर्ण है। दुनिया के नियामकों की चुप्पी चिंताजनक है। जबकि करीमा बलोच की हत्या दुनिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार की लडाई के क्षेत्र में एक गंभीर संकट के तौर पर देखा जाना चाहिए।
करीमा बलोच कौन थी? करीमा बलोच की हत्या कहां हुई? करीमा बलोच की हत्या से कैसे मानवाधिकार को गंभीर धक्का लेगा है? करीमा बलोच एक मानवाधिकार कार्यकर्ता थी। वह साहस का पहाड थी। नरेन्द्र मोदी को अपना भाई मानती थी। कहती थी कि सभी बलोच महिलाएं मोदी को अपना भाई मानती हैं। करीमा बलोच ने पाकिस्तान की उपनिवेशिक नीति के खिलाफ दुनिया भर में सक्रियता की नींव रखी थी और पाकिस्तान की लगातार पोल खोल रही थी? बलूच आंदोलन का वह सबसे बडी हस्ती और वैचारिक शक्ति थी। बलूच राष्ट्रवाद का वह प्रतिनिधित्व करती थी। करीमा बलोच की हस्ती के सबंध में जानकारी हासिल करने के पहले हमें बलूच राष्ट्रवाद के इतिहास को जानना होगा और बलूच राष्ट्रवाद का मूल्याकांन करना होगा। बलूच राष्ट्रवाद का सबंध बलूचिस्तान की आजादी है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी राज्य है। बलूचिस्तान का क्षेत्रफल बहुत बडा है। बलूचिस्तान तीन देशों की सीमाओं से जुडा हुआ है। ईरान और अफगानिस्तान से बलूचिस्तान सटा हुआ है। बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा है। यहां की प्रमुख भाषा बलूच है। कभी बलूच क्षेत्र तालिबान और अलकायदा का गढ हुआ करता था। बलूच क्षेत्र अलकायदा और तालिबान का गढ क्यों हुआ करता था? अरअसल बलूच का क्षेत्र घने जंगलों और पहाडों से घिरा हुआ है और खनिज संपदाओं से परिपूर्ण है। पाकिस्तान के खनिज संपदाओं का लगभग 60 प्रतिशत खनिज संपदा इसी प्रांत में उपस्थित है।
बलूच आबादी का विचार है कि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है, पाकिस्तान उनका अपना देश नहीं है। जिस प्रकार से अंग्रेज उनके लिए विदेशी आक्रमनकारी थे उसी प्रकार से पाकिस्तान भी विदेशी आक्रमणकारी हैं। आक्रमणकारी चाहे ब्रिटिश हों या फिर पाकिस्तान, ये कभी भी जनांकाक्षा का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। उनका इतिहास भी यही कहता है कि बलूचिस्तान ब्रिटिश काल में भी एक अलग अस्मिता और देश के लिए सक्रिय व आंदोलनरत था, भारत विखंडन में बलूच आबादी की कोई दिलचस्पी या भूमिका नहीं थी। मजहब के नाम पर पाकिस्तान के निर्माण में भी बलूच आबादी की कोई इच्छा नहीं थी। जब भारत में अंग्रेज अपना बोरिया विस्तर समेटने की स्थिति में थे तब अलग बलूचिस्तान के प्रति कदम उठाये थे। अंग्रेज इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि बलूचिस्तान को अलग क्षेत्र के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। 1944 में बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का विचार ब्रिटिश जनरल मनी ने व्यक्त किया था। मजहब के नाम पर भारत विखंडन के साथ ही साथ बलूचिस्तान की भी किस्मत पर कुठाराघात हुआ था। पाकिस्तान में बलूच आबादी कभी मिलना नहीं चाहती थी, बलूच आबादी अपना अलग अस्तित्व कायम रखना चाहती थी। पर पाकिस्तान ने बलूपर्वक बलूचिस्तान पर अधिकार कर लिया था। शुरूआत में भी विरोध हुआ था और इस अधिकार की कार्यवाही को पाकिस्तान के उपनिवेशवाद की उपाधि प्रदान की गयी थी। पर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन न मिलने के कारण बलूच राष्ट्रवाद का आंदोलन शक्ति विहीन ही रहा। 1970 के दशक में बलूच राष्ट्रवाद का प्रश्न प्रमुखता से उठा और दुनिया जानी कि बलूच राष्ट्रवाद का भी कोई सशक्त अस्तित्व है जिसे पाकिस्तान सैनिक शक्ति से प्रताड़ित कर रहा है, कुचल रहा है। बलूचिस्तान सबसे पिछड़ा हुआ प्रांत है। इसलिए कि पाकिस्तान ने उपनिवेशिक नीति पर चलकर बलूचिस्तान का शोषण किया, दोहन किया और अपेक्षित विकास को शिथिल रखा।


करीमा बलोच एक महिला थी। मजहबी तानाशाही वाले देशों और समाज में एक महिला का मानवधिकार कार्यकर्ता और हस्ती बन जाना कोई मामूली बात नहीं है, यह एक बहुत बडी बात है। क्या यह हम नहीं जानते हैं कि मजहबी देश और समाज में महिलाओं को मजहबी करूतियों के खिलाफ, मजहबी सत्ता के खिलाफ या फिर मानवाधिकार के संरक्षण की बात उठाने पर उन्हें गाजर मूली की तरह नहीं काटा जाता है? बलूचिस्तान में तीन तरफ से करीमा बलूच जैसी बहादुर महिलाएं त्रासदियां झेली है एक मजहबी समाज, दूसरा पाकिस्तान का सैनक तबका और तीसरा अलकायदा-तालिबान जैसे आतंकवादी संगठनों की हिंसा। मुंह खोलने वाली या फिर समाज में अगवा बनने की कोशिश करने वाली महिला सीधे तौर मजहबी समाज, सैनिक तबका और आतंकवादी संवर्ग की प्रताड़ना का शिकार बना दी जाती हैं, उनकी जिंदगी हिंसक तौर पर समाप्त कर दी जाती है। करीमा बलोच ने मजहबी समाज से निकली थी, पहले उसने मजहबी समाज से लोहा लिया था, उसके बाद उसने आतंकवादी संगठनो से लोहा लिया, उसके बाद उसने पाकिस्तान की उपनिवेशिक हिंसा के खिलाफ बलूचिस्तान की आवाज बनी।
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान में मानवाधिकार का कब्र बना रखा है। पिछले कुछ सालों में बलूचिस्तान के अंदर हजारों बलूच राष्ट्रवाद की सेनानी मारे गये है। कुछ साल पहले बलूच नेता नबाब अकबर खान बुगती की हत्या हुई थी। बुगती की हत्या का आरोप तत्कालीन तानाशाह परवेज मुशर्रफ पर लगा था। बुगती की हत्या अमेरिका और यूरोप भर में सुर्खियां बंटोरी थी। परवेज मुर्शरफ पर बुगती हत्या का मुकदमा भी चला था। करीमा बलोच ने अपने आंकडों से हमेशा पोल खोल रही थी कि पाकिस्तान कैसे बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन कर रहा है और बलूच नेताओं व कार्यकर्ताओं को कैसे मौत की नींद सुला रहा है। करीमा बलूच के लिए यह काम खतरे वाला था। पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने कई बार करीमा बलोच की हत्या कराने की कोशिश की थी। करीमा बलोच ने अपनी जान पर खतरे को देखते हुए पाकिस्तान छोड़ना ही उचित समझी थी। करीमा बलोच पाकिस्तान छोड़कर कनाडा में निर्वासित जीवन बीता रही थी। निर्वासित जीवन में भी वह बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा मानवाधिकार हनन की बात उठा रही थी। जिसके कारण पाकिस्तान की कूटनीति हमेशा दबाव में थी। करीमा बलोच का शव कनाडा मे मिला था। करीमा के परिजन और बलूच नेता इस हत्या के लिए पाकिस्तान की सेना और चीन की कारस्तानी व्यक्त कर रहे हैं।
करीमा बलोच की हत्या को तानाशाही करतूत भी कह सकते हैं। तानाशाहियों द्वारा अपने विरोधियों की हिंसक हत्या का बहुत बडा इतिहास है। दुनिया में कम्युनिस्ट और मुस्लिम तानाशाहियों में इस तरह की हत्या आम बात है। सोवियत संघ के कम्युनिस्ट तानाशाह स्तालिन अपने घोर विरोधी लियोन त्रोत्सकी की हत्या मैक्सिकों में करायी थी, इसके अलावा सोवियत संघ में लाखों ऐसे विरोधियों की हत्या हुई थी जिसे स्तालिन पंसद नहीं करता था। उत्तर कोरिया का कम्युनिस्ट तानाशाह किम जौंग उन ने अपने सौतेले भाई किम जोंग् नम की हत्या मलेशिया में करायी थी। सउदी अरब ने अपने विरोधी पत्रकार जमाल खाशोगी की हत्या तुर्की में करायी थी। पाकिस्तान में हमेशा सैनिक मुस्लिम तानाशाही सक्रिय रहती है, लोकतंत्र तो एक मोहरा भर होता है। पाकिस्तान की सैनिक-मुस्लिम तानाशाही ने अपने अंतर्राष्ट्रीय संकट और चुनौतियों से निपटने के लिए करीमा बलोच की हत्या कनाडा में करायी है। चीन अपने ग्वादर बंदरगाह के निर्माण और अपनी सीपीइसी परियोजना का विरोध शांत कराने के लिए करीमा बलोच को निपटाना चाहता था, ऐसी अवधारणा भी सामने आयी है। क्योंकि ग्वादर बंदगाह और सीपीईसी परियोंजना के खिलाफ करीमा बलोच और बलोच आंदोलन के नेता सक्रिय थे और इसे अपने हितों के खिलाफ मानते थे।
करीमा बलोच की हत्या की निष्पक्ष जांच की जरूरत है। दुनिया भर के नियामकों के लिए भी यह जरूरी है। संयुक्त राष्ट्रसंघ इस हत्याकांड की निष्पक्ष जांच करा सकती है। निष्पक्ष जांच के लिए अमेरिका, यूरोप और भारत को सक्रिय होना जरूरी है।हमारे लिए तो करीमा बलोच का सक्रिय रहना और जिदा रहना बेहद जरूरी था, हम पाकिस्तान के प्रोपगंडा का जवाब बलूचिस्तान में पाकिस्तान के मानवाधिकार के हनन से देते हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बलूचिस्तान की आजादी का समर्थन किया है। अगर करीमा बलोच की हत्या का प्रसंग दब गया तो फिर पाकिस्तान के अंदर मानवाधिकार इसी तरह से रौंदा जायेगा और बलूचिस्तान की आजादी भी इसी तरह कुचली जाती रहेगी।

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