इस समय भाजपा के 63 वर्षीय नेता नरेन्द्र मोदी का कद भाजपा से ऊपर हो गया है। उन्होंने देश के आम आदमी तक अपना संवाद स्थापित कर नई मिसाल कायम की है। सचमुच इतनी ऊंचाई तक पहुंचना हर किसी के बस की बात नही है, परंतु मोदी इस सबके बावजूद अभी अटल जी से आगे नही निकल पाए हैं। उनकी और अटल जी की परिस्थितियां अलग-अलग हैं। अटल जी को अपने आपको स्थापित करने में तथा अपने लिए इतिहास में स्थान आरक्षित कराने में लगभग आधी शताब्दी का समय लिया, और अब यह सच है कि वह इतिहास बन चुके हैं। जबकि मोदी को इतिहास बनने के लिए अभी और वक्त चाहिए। हालांकि उन्होंने आने वाले कल के लिए यह संकेत जरूर दे दिया है कि उन्होंने इतिहास की धारा को मोडऩे का बड़ा काम कर दिया है। अटल जी वह व्यक्तित्व हैं जिनका सामना पहले दिन से ही इस देश पर एक छत्र राज करने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू से हुआ और उन्होंने संसद में सफलता पूर्वक नेहरू जी को चुनौती दी। बाद में अटल जी ने नेहरू जी की बेटी इंदिरा गांधी को भी उसी प्रकार चुनौती दी जैसी उन्होंने नेहरू जी को दी थी। इंदिरा गांधी ने उन्हें अपने कोप का भाजन भी बनाया। इंदिरा गांधी ने आपातकाल में उन्हें जेल पहुंचाया। 1977 में जनता पार्टी आई तो अटल जी को देश का विदेश मंत्री बनने का सौभाग्य मिला, परंतु वह जनता पार्टी की सरकार अधिक देर तक नही चल सकी। तब इंदिरा गांधी पुन: सत्तारूढ़ हुईं, और 1984 में उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा वह मार दीं गयीं।
1984 में इंदिरा गांधी की लहर चली तो कांग्रेस के युवा नेता राजीव गांधी को प्रचण्ड बहुमत लोकसभा में मिला और 1984 के लोकसभा चुनावों में अटल जी चुनाव हार गये। परंतु अटल जी ने हिम्मत नही हारी और वह राजीव गांधी की नीतियों के विरूद्घ डटकर बोलते रहे। इस प्रकार अटल जी ने अपने आपको साबित और स्थापित करने में लंबा समय लिया और बहुत से बड़े नेताओं के साथ टक्कर ली।
आज नरेन्द्र मोदी के सामने उन्हें टक्कर देने वालों में नेहरू, इंदिरा व राजीव की जगह प्रधानमंत्री के पद पर देश का सबसे कमजोर व्यक्ति डा. मनमोहन सिंह के रूप में बैठा है। डा. मनमोहन सिंह ने अपनी कमजोरियों का इतिहास लिखा है और वह इसी रूप में इतिहास में जाने भी जाएंगे। उन्होंने इन चुनावों में कोई भी चुनावी सभा संबोधित नही की है, और यह भी उनकी एक कमजोरी ही है। जिसे इतिहास जब उल्लेखित करेगा तो इतिहास का जिज्ञासु विद्यार्थी उन्हें दया के पात्र के रूप में देखेगा, और यह स्थिति भारत जैसे विशाल देश पर दस साल तक शासन करने वाले किसी प्रधानमंत्री के लिए अच्छी नही कही जा सकती। नरेन्द्र मोदी के लिए डा. मनमोहन सिंह उनका एक सौभाग्य बनकर आए हैं, जबकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी की भाषण शैली और कार्यशैली भी ऐसी है कि जो उन्हें नेहरू, इंदिरा, राजीव के मुकाबले बहुत छोटा सिद्घ कर रही हैं। साथ ही नरेन्द्र मोदी के लिए मैदान खुला छोड़ रही है। मोदी के शब्दों में मां-बेटा देश की नाव डुबा रहे हैं, और उनसे देश की जनता का जिस प्रकार मोह भंग हुआ है उससे उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। मोदी के लिए बारह साल में ही ऐसा संयोग बन गया कि वह देश के सर्वोच्च पद के निकट पहुंच रहे हैं, इसके लिए जिम्मेदार देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी, कांग्रेस की यह तिक्कड़ी अर्थात डा. मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी भी है। इस तिक्कड़ी ने मोदी को कमजोर विरोधी प्रदान किया और कमजोर विरोधी उनसे हाथ मिलाने में भी घबरा रहा है,
जबकि अटल जी ने अपने सामने खड़े मजबूत विरोधियों से हाथ मिलाये और उन्हें एक नही अनेकों जगहों पर पटकनी दी। अटल जी की इस क्षमता ने उन्हें नेता बनाया और वह मजबूत कदमों के साथ सत्ता शीर्ष तक पहुंचे। आज मोदी अटल जी की विरासत को संभालने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। पूरा देश उनके साथ है, उनकी साफ सुथरी छवि, व्यक्तित्व में आडंबरहीनता और पूर्णत: देश के लिए समर्पण का भाव उनके कुछ ऐसे गुण हैं जो उन्हें सत्ताशीर्ष की ओर लेकर चल रहे हैं। परंतु फिर भी बात वही है कि उन्हें अपने कामों और बायदों पर खरा उतरने के लिए अभी समय दिये जाने की आवश्यकता है। हां, उनके अतीत को देखते हुए उनसे उम्मीद जरूर की जा सकती है कि वह जनापेक्षाओं पर खरा उतरेंगे। फिलहाल उन्होंने एक ही चुनाव में हजारों सभाओं को संबोधित कर और तीन लाख किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर जो इतिहास बनाया है वह उनकी उद्यम शीलता और पुरूषार्थी स्वभाव को अवश्य स्पष्ट करता है। जिससे उम्मीद की जा सकती है कि कई मामलों में अपने पूर्ववर्तियों को पीछे छोड़ जाएंगे।