देश में यह पहली बार नही है कि जब मोदी जैसे किसी नेता की लहर चल रही है। इससे पूर्व भी ऐसे कई मौके आए हैं जब देश में किसी नेता की लहर चली है। यह सच है कि जब-जब देश में कोई लहर चली है तो लोगों ने बढ़ चढ़कर चुनाव में भाग लिया है। देश में जब तक नेहरू जी रहे तब तक उनके नाम पर कांग्रेस जीतती रही, और 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 489 सीटों में से 364 स्थानों पर सफलता मिली। इसके बाद 1957 में जब दूसरे चुनाव हुए तो उस समय लोकसभा की कुल सीटों 494 थीं जिनमें से 371 पर विजय दर्ज कर कांग्रेस ने अपना जीत का अभियान आगे बढ़ाया। इसके बाद 1962 में नेहरू जी ने अपने जीवनकाल का अंतिम लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस को 361 स्थानों पर विजश्री दिलाई।
नेहरू जी के समय में कांग्रेस लोकसभा चुनाव उनकी लोकप्रियता और आजादी के संग्राम में कांग्रेस के दिये गये बलिदानों के नाम पर लड़ती रही और जीतती रही। तब लोगों को ऐसा लगता था कि नेहरू जी के बिना शायद देश नही चलेगा, और कांग्रेस ने ही देश की आजादी के लिए ही सबसे अधिक बलिदान दिये हैं, इसलिए देश पर शासन करने का अधिकार कांग्रेस का है। तब विपक्ष नाम की कोई चीज देश में नही थी। इस प्रकार नेहरू लहर से कांग्रेस 1952 से 1962 तक के तीन चुनावों को जीती।
नेहरू जी के बाद 1967 में इंदिरा गांधी ने पहला चुनाव लड़ा। तब लोकसभा की 530 सीटें थीं। देश की जनता ने नेहरू जी के नाम पर इंदिरा गांधी को देश की बागडोर दी, परंतु फिर भी इंदिरा गांधी 530 सीटों में से 283 सीटों पर ही कांग्रेस को कामयाब कर पायीं। इसके बाद 1971 में भारत-पाक युद्घ में भारत को मिली शानदार सफलता को इंदिरा गांधी ने चुनाव कराकर भुनाने का प्रयास किया और देश की जनता के सामने कांग्रेस की एक लहर बनाने में वह सफल रही। उन्हें 518 सीटों में से 352 सीट देकर देश की जनता ने उन्हें अपना नेता मानना स्वीकार किया।
1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की तो देश की जनता उनके विरूद्घ हो गयी, तब 1977 में देश में लोकसभा के चुनाव हुए और देश के पांच दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। देश में जनता पार्टी की लहर चली और देश की जनता ने चुनाव में बढ़ चढ़कर भाग लिया। इंदिरा गांधी को सत्ता से अलग कर दिया और देश में जनता पार्टी के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ।
जनता पार्टी के नेता अपने अहंकार के कारण सरकार को अधिक दिन तक नही चला सके। तो 1980 में हुए लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने फिर 353 सीट लेकर अपना पुराना सम्मान प्राप्त किया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर चली तो कांग्रेस को अब तक का प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ। लेकिन 1989 में जब अगले चुनाव हुए तो कांग्रेस के युवा नेता राजीव गांधी पार्टी की इस सम्मान जनक जीत को अगली जीत में बदलने में नाकामयाब साबित हुए। तब मैदान वीपी सिंह के हाथ रहा और वह फिर एक गैर कांग्रेसी सरकार बनाने में सफल हुए। इस चुनाव में हल्की सी लहर वीपीसिंह के हक में बनी और वह ही कांग्रेस को सत्ता से हटाने में कामयाब हो गयी।
1989 के बाद फिर देश में 1991 में मध्याबधि चुनाव हुए तो उस समय कोई लहर तो विशेष नही थी, परंतु वी.पी. सिंह के जनता दल के विरोध में लोगों ने मतदान किया और कांग्रेस को बड़े दल के रूप में 252 सीट देकर सरकार बनाने के लिए लोकसभा में भेज दिया। इसके बाद के 1998-99 के चुनावों में फिर अटल बिहारी वाजपेयी के पक्ष में लहर बनी और उसने अटल जी को फिर देश की गद्दी का हकदार बना दिया। इससे पूर्व 1996 में पीवी नरसिंहाराव की सरकार के खिलाफ लोगों ने वोट किया था। 2004 के चुनावों में हल्के बहुमत के साथ कांग्रेस को फिर सरकार बनाने का मौका मिला जिसे थोड़ा बढ़ाकर उसने 2009 में फिर सरकार बनाने का अवसर प्राप्त किया। परंतु इतना सच है कि 1977 और 1984 के बाद फिर जोरदार लहर बनाने में यदि किसी व्यक्ति को सफलता मिली है तो वह नरेन्द्र मोदी ही हैं। अब देखना ये है कि मोदी अपनी इस लहर को अगलेचुनावों में नेहरू जी की तरह कितने समय तक अपने पक्ष में बनाये रखने में सफल होते हैं, या इस चुनावी लहर का हश्र 1977 में और 1984 में जनता पार्टी और कांग्रेस के पक्ष में बनी लहर जैसा तो नही हो जाएगा? जब अगली ही बार देश की जनता ने दूसरी पार्टी को या गठबंधन को देश पर शासन करने के लिए अपना जनादेश दे दिया था।
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