गतांक से आगे…….
एक समय था कि विदेशी कंपनियां भारत से कच्ची हड्डी भी खरीदा करती थीं। गुजरात की जिलेटिन कंपनियों ने जब मोरारजी भाई से इस बारे में शिकायत की कि उनका कच्चा माल विदेश चले जाने से उनके बनाए हुए जिलेटिन का मूल्य अधिक हो जाता है, इसलिए हम स्पर्धा में पिछड़ जाते हैँ, तो मोरारजी के तत्कालीनप उद्योग मंत्री ने हड्डी के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया था। खेतों के आसपास रहने वाले सांप जब मार डाले गये तो चूहों की संख्या में तेजी से वृद्घि हो गयी। जब ये सारे तथ्य सामने आए तो भारत सरकार को समझ में आया कि भारत में कुदरत ने स्वत: एक संतुलन तैयार कर रखा है। जिसे हम बेकार समझकर मार डालते हैं, वह समाप्त हो जाने पर पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है जिससे खेती को भारी नुकसान होता है। कुदरत ने संख्या से अधिक बढऩे वाली वस्तु पर अपना ब्रेक लगा रखा है। इसलिए हमें किसी प्रकार के कीटनाशक की आवश्यकता नही है। जो काम आदमी करना चाहता है, वह तो कुदरत स्वयं कर लेती है। इसलिए कुदरत के कारोबार में हस्तक्षेप का नाम है पर्यावरण को खतरे में डालना। प्रकृति भली प्रकार जानती है कि किस जंतु को कितने प्रमाण में जीवित रखता है। किस समय किसकी आवश्यकता है, यह इनसान अब तक समझ नही पाया है, इसलिए नैसर्ग की व्यवस्था में हमें कोई हस्तक्षेप नही करना चाहिए। हमारे द्वारा की जा रही हिंसा का सीधा अर्थ है कि हम अपने पांव पर स्वयं ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
भारत में विशाल संख्या में पशुधन देखकर हमारी निकम्मी और अदूरदर्शी सरकारों ने इसे अपनी आय का स्रोत बनाने का पाप किया। शासन में बैठे हुए मंत्री और प्रशासन चलाने वाले आईएएस अधिकारियों को ऐसा लगने लगा है कि यदि इन जानवरों को बेचकर हम यहां की जनता का भला कर सकें और इनके जीवन स्तर को ऊंचा उठा सकें तो यह सबसे बड़ी राष्ट्रसेवा है। लेकिन उन्हें इस बात का अनुमान नही था कि अपना वास्तविक धन विदेशियों के पेट में डालने के पश्चात भी भारत का उद्घार नही होने वाला है। भारत में आजादी के पश्चात धड़ल्ले से विदेशी कंपनियों के एजेंटों ने डेरा जमा लिया।
वे अपनी दलाली प्राप्त करने के लिए भारत के पशुधन को नीलाम करने के लिए जुट गये। भारत में नये नये कत्लखाने खुलने लगे और फिर उन्हें आधुनिक बनाने के लिए भारत सरकार ने विदेशों से मशीनें आयात करने की भी छूट दे दी। थोड़े ही समय में पता लग गया कि हम पशुओं के मामले में कंगाल होते जा रहे हैं।
क्रमश: