राकेश कुमार आर्य
इतिहास मे नया अध्याय पलटना बड़ा सरल है,परंतु नया इतिहास लिखना बड़ा कठिन है। वैसे इतिहास की भी ये प्रकृति और प्रवृति है कि वह कदमताल करते काल को धक्का देकर उसकी गति बढ़ाने के लिए समकालीन समाज को प्रेरित भी करता है और आंदोलित भी ।
……. और यही हुआ है भारत के साथ, इन 2014 के आम चुनावों मे । देश का नेत्रत्व कालपटल पर पिछले 30 वर्ष से जिस प्रकार कदमताल कर रहा था,उस प्रमादी ,आलसी और संघर्ष के प्रति पूर्णतः उदासीन नेत्रत्व के विरुद्ध भारतीय समाज को स्वयं इतिहास ने प्रेरित और आंदोलित किया कि यदि मेरा नया अध्याय देखना चाहते हो तो बदल दो निज़ाम को ।
इतिहास की इस अकुलाहट को नरेंद्र मोदी ने समझा और जनता की अपेक्षाओं व इतिहास के यक्ष प्रश्न के उत्तर के रूप में स्वंय को उन्होने प्रस्तुत किया। अग्निपरीक्षा में मोदी सफल हुए और इतिहास ने अपना नया अध्याय लिखना आरंभ कर दिया ।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने नया इतिहास लिखने की बात कही है। उनकी यह बात आज सटीक लगती है क्योंकि नया इतिहास लिखने के लिए अपेक्षित अग्निपरीक्षा की प्रक्रिया से सफलतापूर्वक मोदी बाहर निकल आए हैं,पर बात तो ये है कि इस अग्निपरीक्षा से मोदी और भारतीय नेत्रत्व को गुजरने केलिए इतिहास को बाध्य किसने किया? किसने लहर बनाई मोदी की और किसने उसे लहर से सूनामी में बदल दिया? इस पर यदि गौर करें तो ऐसा करने में यू०पी०ए० शासन के घोटालों ने तात्कालिक आधार पर अपना विशेष योगदान दिया। इन घोटालों में प्रमुख है:-
एक लाख अट्ठत्तर हजार करोड़ का 2जी स्पेक्टृम घोटाला,सत्तर हज़ार करोड़ का कॉमन वैल्थ घोटाला,आदर्श सोसाइटी घोटाला,एस बैंड/देवास एंट्रिक्स घोटाला,के जी बेसिन घोटाला,22.5 लाख रुपए स्विस बैंक घोटाला,चावल निर्यात घोटाला,सत्यम घोटाला,पी०डी०एस० राशन घोटाला,टेलीकॉम जुर्माना घोटाला,रक्षा सौदों में घोटाला,आई०पी०एल० घोटाला,कोयला खदान आवंटन घोटाला । ये नाम महा घोटालों के हैं,छोटे मोटे घोटाले तो इस देश में वैसे ही नहीं पकड़े जाते जैसे कोई थानाध्यक्ष किसी गरीब की बलात्कार तक की रपट को दर्ज नहीं करता । जैसे गरीब के खिलाफ अमीर को अत्याचार करने का “खुला लाइसेन्स” इस देश में प्राप्त हो गया मान लिया गया था वैसे ही दस बीस सौ पचास करोड़ के घोटालों का तो जिक्र करना भी घोटालों का अपमान दिखने लगा था-यू०पी०ए० के शासन में।इसलिए कॉंग्रेस के नेता कमलनाथ का यह कहना बहुत ही उचित है कि देश के लोग यू०पी०ए० के शासन से थक चुके थे। इसे थोड़ा और सुधारा जा सकता है कि लोग यू०पी०ए० के शासन से ही नहीं थक गए थे बल्कि रोज-रोज के घोटालों ने उन्हे निज़ाम बदलने के लिए अंदर तक मथ डाला था। इस मंथन से ही मोदी नाम का अमृत लोगों को इन चुनावों में मिला है ।
हर कदम पर घोटाला,हर कदम पर घालमेल,कहीं किसी का यकीन नहीं,कहीं किसी पर भरोसा नहीं। इस स्थिति से देश उकता गया था। भाजपा ने चाहे बेशक विकास के नाम पर वोट मांग कर इस चुनाव में मिली अभूतपूर्व सफलता को भी विकास के अपने नारे के साथ नत्थी कर दिया हो,परंतु सच ये है कि चुनाव में विकास का नारा भी पीछे छूट गया,और लोगों ने “विनाश” के तांडव नृत्य के विरुद्ध वोट देकर भाजपा को सफलता प्रदान की। यह विनाश आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं था,सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी था। देश में हिन्दू विरोध की राजनीति का नाम धर्मनिरपेक्षता कर दिया गया था। राजनीति के सारे मठाधीश इसी अतार्किक और अन्यायपरक राजनीति को अपनाकर आगे बढ़ रहे थे,परिमाणस्वरूप देश के बहुसंख्यक समाज ने ध्रुवीकरण की राजनीति का सहारा लिया। अभी तक मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण ने कई बार सत्ता परिवर्तन किया था,परंतु पहली बार देश में बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने मतों का ध्रुवीकरण कर इतिहास बनाया है। वैसे हमारे द्रष्टिकोण में यह ध्रुवीकरण सज्जन शक्ति का ध्रुवीकरण था,जो इतिहास में बिरले अवसरों पर ही देखने को मिला करता है। यह दुःखद तथ्य है,कि मोदी लहर या सुनामी के नाम पर भाजपा भी सज्जन शक्ति के इस अनोखे ध्रुवीकरण के प्रामाणिक तथ्य की उपेक्षा कर रही है। जबकि यह तथ्य घातक है और इसे आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नजीर के रूप में महिमामंडन से लोकचेतना को उपेक्षित करने या मरने का खेल पूर्व में हमने कई बार खेल खेल कर देख लिया है,उसके परिणाम हमारे लिए अच्छे नहीं आए हैं।
मोदी निस्संदेह हमारी लोकचेतना के प्रतिनिधि हैं।परंतु यह भी अभी निश्चित हो जाना चाहिए कि हमारी लोकचेतना क्या है,और उसकी पुष्टि क्यों और किसलिए आवश्यक है?यदि मोदी लोकचेतना की संपुष्टि करने के अपने इस कार्य में सफल हो गए तो वह “राम-राज्य” की स्थापना के मर्म को समझ जाएंगे और लोगों के लिए वह महामानव से भी ऊपर हो जाएंगे। इस देश ने लोकचेतना की संपुष्टि करने वालों को ही भगवान माना है और उन्हे अपना आदर्श माना है। जिन लोगों ने लोकचेतना अर्थात सज्जनशक्ति के ध्रुवीकरण से उद्भूत परिणामों को अपने नाम लिखाने के लिए इतिहास को बाध्य किया है,उन्हे एक बार तो चाहे भले ही सम्मान मिल गया हो परंतु कुछ काल उपरांत उन्हे इस प्रकार मिले सम्मान से हाथ धोना पड़ा है।
आज कॉंग्रेस के कई आदर्श पुरुषों को अपना सम्मान बचाना कठिन हो रहा है। कॉंग्रेस के इन आदर्श पुरुषों के स्मारकों को भी लोग सम्मान से नहीं देख रहे हैं।गांधी,नेहरू,इन्दिरा गांधी,राजीव गांधी के प्रति लोगों के मन मस्तिस्क में निश्चय ही सम्मान भाव कम हुआ है। इसका कारण यही है कि भारत की लोकचेतना के और भारत माँ के वीर प्रस्विनी होने के युग-युग पुराने आदर्श को झुठलाकर कॉंग्रेस ने अपने इन आदर्श पुरुषों को बलात देश पर थोपने का प्रयास किया है। महापुरुषों का सम्मान किया जाना एक अलग बात है और महापुरुषों पर देश की लोकचेतना को पूर्णतः नकार देना एक अलग बात है।
इस चुनाव के परिणामों ने देश के नेताओं को यही शिक्षा दी है कि झूठे मिथक मत गढना अपितु राष्ट्रदेव की मूर्ति गढ़ना और राष्ट्रदेव की मूर्ति के महंत बनकर सम्मान पाना,सचमुच अमर हो जाओगे। कोई मिथ्याचार न हो,कोई छल छद्मवाद न हो और कोई पाखंड न हो । इन चुनावों के परिणामों के इस निहित अर्थ को समझने की आवश्यकता है ।