विश्व में फैली कोरोना महामारी के बाद अब जब अन्य कई देश अपने बाज़ारों को पुनः खोलने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, ऐसे में भारत के लिए, वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र में अपने योगदान को यदि बढ़ाना है तो, आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को तेज़ी से लागू करना अब ज़रूरी हो गया है। विश्व के लगभग सभी देशों ने इस दौरान यह महसूस किया है कि विदेशी व्यापार के लिए चीन पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता किसी भी देश के लिए ठीक नहीं है। अतः अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सप्लाई चैन में भारत के लिए अपनी भूमिका बढ़ाने का सुअवसर निर्मित हुआ है। इसका पूरा फ़ायदा भारत द्वारा उठाया जाना चाहिए।
यूं तो “ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस” की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत ने, केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रम के दम पर, काफ़ी सुधार किया है एवं यह वर्ष 2014 की 142 की रैंकिंग से बहुत आगे बढ़कर 2019 में 63वें स्थान पर आ गई है। परंतु, अभी भी यदि भारत को विश्व के प्रथम 25 देशों में अपनी जगह बनाना है तो अब राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर कई सुधार कार्यक्रमों को लागू करना होगा। 10 मदों में से मुख्यतः 5 मदों, यथा, पूंजी बाज़ार में निवेशकों के हित सुरक्षित रखने (13), बिजली के लिए मंज़ूरी लेने (22), ऋण स्वीकृत करने (25), निर्माण कार्य हेतु मंज़ूरी प्राप्त करने (27), एवं दिवालियापन के मुद्दों को सुलझाने (52) में भारत की रैंकिंग में काफ़ी सुधार होकर वैश्विक स्तर पर प्रथम 50 देशों की श्रेणी में शामिल हो गए हैं। परंतु, शेष अन्य 5 मदों, यथा अनुबंध पत्रों को लागू करने (163), प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री करने (154), नया व्यवसाय प्रारम्भ करने (136), टैक्स सम्बंधी मुद्दे सुलझाने (115), एवं विदेशी व्यापार करने (68) में अभी भी हम वैश्विक स्तर पर अन्य देशों से काफ़ी पिछड़े हुए हैं। मदों के नाम के आगे भारत की वर्ष 2019 की रेकिंग दी गई है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में “ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस” में सुधार के लिए अब 60 प्रतिशत से ज़्यादा काम राज्य स्तर पर करने होंगे। केंद्र सरकार तो लगातार आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू कर रही है। साथ ही, कुछ राज्य भी इस क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं जैसे, आंध्र प्रदेश “ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस” के मानदंडों में देश में प्रथम स्थान पर है, जबकि उत्तर प्रदेश, द्वितीय स्थान पर एवं तेलंगाना, तृतीय स्थान पर है। साथ ही, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड ने भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी रैंकिंग में बहुत सुधार किया है। बाक़ी प्रदेशों विशेष रूप से पूर्वी राज्यों एवं उत्तर पूर्वी राज्यों को भी अब आगे आना होगा।
उक्त कारणों के चलते ही भारत में विभिन्न राज्यों के बीच सकल घरेलू उत्पाद में विकास की दर में बहुत अंतर है, विशेष रूप से औद्योगिक उत्पादन की दर में। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु औद्योगिक दृष्टि से विकसित राज्यों की श्रेणी में गिने जाते हैं। अब उत्तर प्रदेश भी तेज़ी से इस मानचित्र पर उभर रहा है। परंतु, कुछ अन्य राज्यों में औद्योगिक वृद्धि दर तुलनात्मक रूप से बहुत कम है। इस कारण से इन राज्यों में रोज़गार के अवसर निर्मित नहीं हो पा रहे हैं। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान मात्र 16 प्रतिशत ही बना हुआ है और यह बहुत प्रयास के बाद भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है। अब देश के सामने एक अवसर आया है, यदि राज्य सरकारें इस क्षेत्र में आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू करने में सफल हो जाती हैं तो कई बड़ी कम्पनियों को अपनी उत्पादन इकाईयों को भारत के इन राज्यों में स्थापित करने में आसानी होगी।
हमारे देश में बिजली, कृषि, जल आपूर्ति, शिक्षा, आदि अन्य कई क्षेत्र राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं अतः इन सभी क्षेत्रों में सुधार कार्यक्रम लागू करने के लिए राज्य सरकारों को ही निर्णय लेने होंगे। अब समय आ गया है जब राज्य सरकारों को अपना ध्यान अन्य बातों से हटाकर आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने में लगाना होगा। जब तक “ईज़ आफ डूइंग बिज़नेस” की वैश्विक रैंकिंग में भारत अपनी रैंकिंग में सुधार नहीं कर पाता है तब तक देश में निजी क्षेत्र से पूंजी निवेश भी नहीं बढ़ पाएगा। निजी क्षेत्र से पूंजी निवेश के बग़ैर केवल सरकार अपने ख़र्चों से देश की अर्थव्यवस्था को कब तक विकास के पथ पर बनाए रख सकती है। इसकी भी दरअसल कई प्रकार की सीमायें हैं। निजी क्षेत्र को भी अब अपना पूंजी निवेश देश में बढ़ाना अनिवार्य हो गया है, साथ ही विदेशी निवेश भी देश में प्रोत्साहित करना अब आवश्यक होगा, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सप्लाई चैन में भारत की स्थिति को मज़बूत किया जा सके। इससे देश में न केवल आर्थिक विकास को गति मिलेगी बल्कि रोज़गार के नए अवसरों का सृजन भी होगा।
कोरोना वायरस महामारी के बाद तो दुनिया भर के देशों के सामने अलग अलग रास्ते खुले हुए हैं। भारत किस तरीक़े से अपने आपको इसके केंद्र में ला सकता है, यह भारत के लिए एक अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए। देश में स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में आधारिक संरचना विकसित करने के लिए निवेश बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थव्यवस्था पर चहुमुखी असर होगा। कृषि क्षेत्र, श्रम क्षेत्र, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों की परिभाषा में परिवर्तन आदि कई सुधार कार्यक्रम केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए हैं, एवं अन्य कई क्षेत्रों में भी सुधार कार्यक्रम लागू किए जाने पर काम तेज़ी से किया जा रहा है जिनका देश के आर्थिक विकास पर दूरगामी परिणाम होगा। परंतु, राज्य सरकारों के लिए भी उक्त वर्णित क्षेत्रों तथा उनके कार्य क्षेत्र में आने वाली अन्य विभिन्न मदों में सुधार कार्यक्रम लागू किए जाने की महती आवश्यकता बन पड़ी है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।