देश के इतिहास में जिन शासकों ने साम्प्रदायिकता के आधार पर ने बड़े – बड़े नरसंहार किए लूटपाट हत्या ,डकैती, बलात्कार और इन जैसे अनेकों जघन्य अपराध किए , वे सारे के सारे मानवता के हत्यारे गांधीजी और गांधीवादियों की दृष्टि में बहुत ही दयालु, उदार, सहिष्णु और मानवता के पुजारी कहे जाते हैं । गांधीवादियों के द्वारा लिखे गए इतिहास में जब इन लोगों को इस प्रकार का सम्मान मिलता हुआ दिखाई दिया तो लूट, हत्या,डकैती, बलात्कार और मानवता के विरुद्ध नरसंहार करने वाले इन राक्षसी प्रवृत्ति के बादशाहों के मानस पुत्र आतंकवादी बनकर देश के चमन में आग लगाने लगे। कहने का अभिप्राय है कि गांधीवादियों की इतिहास की गलत व्याख्या के कारण देश वर्तमान में आतंकवाद जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है।
देश के वीर सावरकर जी कहा करते थे कि धर्मांतरण से मर्मान्तरण और मर्मांतरण से राष्ट्रांतरण होता है। इसलिए धर्मांतरण अपने आप में एक बहुत बड़ी बीमारी है ।धर्म परिवर्तन व्यक्ति के मर्म का परिवर्तन कर देता है और वही व्यक्ति समय आने पर राष्ट्रद्रोही होकर राष्ट्र के विभाजन की मांग करने लगता है । यदि इस बात को 1947 में देश के विभाजन के दोषी जिन्नाह पर लागू करके देखा जाए तो उस पर तो यह बात अक्षरश: लागू होती है। जिन्नाह भारत में विदेश से आया हुआ कोई खानदानी मुसलमान नहीं था , ना ही वह मुगल ,पठान , शेख या सैयद जैसी किसी मुस्लिम परम्परा का मुसलमान था । मात्र एक पीढी पीछे अर्थात उसके बाप ने ही अपने धर्म से गद्दारी कर दूसरे मजहब को स्वीकार किया था। यदि गांधी जी इस रहस्य को समझे होते कि धर्म परिवर्त्तित व्यक्ति देश के लिए बहुत घातक होता है तो वे जिन्नाह को कभी भी ‘कायदे आजम’ नहीं कहते। उन्होंने इतिहास को या तो समझा नहीं या उन्होंने उसे समझने का प्रयास नहीं किया । उन्होंने धर्म परिवर्तन को केवल पूजा उपासना का परिवर्तन माना। जबकि सच वही था जो सावरकर कह रहे कि धर्म परिवर्तन से मर्म परिवर्तन और मर्म परिवर्तन से राष्ट्र का परिवर्तन हो जाता है।
हमारे देश में ऐसे अनेकों ‘जिन्नाह’ पैदा हुए हैं जिन्होंने धर्म परिवर्तन करने के पश्चात अपनी ही जड़ों को काटने का अर्थात अपने ही धर्म के भाइयों को मिटाने का अपराध किया है। कांग्रेस और देश के धर्मनिरपेक्ष वामपंथी इतिहासकारों ने यह सब जानते हुए भी कि जिन्नाह का बाप हिन्दू था, इस तथ्य को अधिक स्पष्ट नहीं किया है । क्योंकि ऐसा करने से ‘शांति का मजहब’ अशांति का मजहब दिखाई देने लगेगा । जिसे वह दिखाना नहीं चाहते । यद्यपि इस तथ्य को और सत्य को देश के लोगों को जानने का पूरा अधिकार है। विशेष रूप से तब यह तथ्य और भी अधिक जानकारी में आने योग्य हो जाता है जब लोग यह कहते हैं कि ‘मजहब आपस में बैर रखना नहीं सिखाता’ और मजहब परिवर्तन से राष्ट्र का परिवर्तन कभी नहीं हो सकता।
जिन्नाह के बाप के द्वारा की गई गलती को यदि यह लोग पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि मजहब कितने गहरे घाव देता है ? एक पीढ़ी में ही इतना अधिक विष जिन्नाह के भीतर हिन्दुओं के विरुद्ध भर गया कि वह मजहब के आधार पर देश का विभाजन करने पर उतर आया। यदि वह व्यक्ति अपने मूल धर्म में ही बना रहता तो निश्चित था कि उसके द्वारा देश के बंटवारे की बात कभी नहीं होती।
देश के लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि हम पिछले 74 वर्षों से देश विभाजन के जिन घावों को सहला रहे हैं, वह घाव जिन्नाह के बाप की उस गलती के द्वारा दिए गए घाव हैं जो उसने मजहब परिवर्तन करके की थी । मूल धर्म के प्रति उसी की गद्दारी का परिणाम रहा कि देश में लाखों हिन्दुओं को पाकिस्तान से हिन्दुस्तान आते हुए रास्ते में काट दिया गया । सचमुच यह बात सही है कि ‘लम्हों ने खता की थी ,सदियों ने सजा पाई’ – आगे भी हम कब तक देश विभाजन के इन घावों को सहलाते रहेंगे और पाकिस्तान के रूप में पैदा हुए एक शत्रु से युद्ध कर करके कितने बलिदान देते रहेंगे ? – यह आने वाला समय ही बताएगा ।
जिन्नाह के बाप को धर्म परिवर्तन करते ही भारत देश पराया लगने लगा । इसकी माटी से उसे कोई लगाव नहीं रहा। इसे वह और उसका बेटा जिन्नाह केवल जमीन का एक टुकड़ा समझने लगे। जिन्नाह और उसके बाप की इस मानसिकता को देखकर पता चल सकता है कि धर्मांतरण से ही राष्ट्रांतरण होता है।
जिन्नाह को ‘कायदे आजम’ अर्थात महान नेता की उपाधि भारतवर्ष में गांधीजी ने दी थी । अपनी मनपसंद जगह अर्थात पाकिस्तान को पाने के पश्चात पाकिस्तान में भी उसे इसी नाम से जाना गया । यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि भारत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अभी तक उसका चित्र लगा हुआ है ।
मोहम्मद अली जिन्नाह के पूर्वजों का परिवार गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था। जिन्नाह के दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था , जो मूल रूप से लोहाना वैश्य वर्ण का था।वह काठियावाड़ के गांव पनेली में निवास करता था । लोहाना लोग गुजरात, सिंध और कच्छ में पाए जाते हैं । प्रेमजी भाई मछली का व्यापार करते थे । उनका यह व्यापार न केवल देश में अपितु देश से बाहर विदेशों में भी फैला हुआ था। प्रेम जी भाई के बेटे पुंजालाल ठक्कर थे। इसी पुंजालाल ठक्कर का लड़का जिन्नाह था।
मछली का व्यापारी होने के उपरान्त भी जिन्नाह का दादा पूर्णतया शाकाहारी था। हिन्दू लोग उनके मछली व्यापार से खुश नहीं रहते थे और उन्हें अक्सर यह परामर्श देते रहते थे कि जब उनका अपना व्यवहार और खान-पान मांसाहारी नहीं है तो उन्हें मछली का व्यापार भी नहीं करना चाहिए। प्रेमजी भाई को तो हिन्दुओं की इस प्रकार की सलाह से कोई विशेष कष्ट नहीं होता था, परन्तु उनके पुत्र को हिन्दुओं का दिया यह परामर्श अखरता था । स्पष्ट है कि पुंजालाल मछली के व्यापार में रम चुका था । वह स्वयं भी मांसाहारी हो चुका था और ‘मछली की सब्जी’ उसे बहुत अधिक रास आने लगी थी । वह नहीं चाहता था कि कोई उसके सामने मछली के व्यापार को बन्द करने की बात करे। यही कारण रहा कि उसने आवेश में आकर हिन्दू धर्म त्याग दिया और इस्लाम स्वीकार कर लिया।
जिन्नाह के बाप के द्वारा लिए गए इस निर्णय से उसके परिजनों को और मित्रों, बन्धु – बांधवों को भी असीम कष्ट हुआ । उन्होंने उसे समझाने का भरसक प्रयास किया, परन्तु वह एक हठीला व्यक्ति था, इसलिए किसी की भी सलाह को मानने के लिए तैयार नहीं था। परिवार और मित्रजनों के इस प्रकार के विरोध से भी विद्रोह करते हुए पुंजालाल ठक्कर काठियावाड़ से कराची चला गया। उसने सोच लिया कि ‘न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी।’ काठियावाड़ से कराची जाकर बसा यह व्यक्ति और उसका परिवार अब और भी अधिक मांसाहारी और शराबी हो गया था । क्योंकि अब उस पर समाज का कोई किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था, इसलिए मर्यादाहीन आचरण करने के लिए जिन्नाह का बाप अपने आपको आजाद समझने लगा।
यह एक स्वाभाविक बात है कि जब कोई व्यक्ति अपने मूल धर्म को त्यागता है तो जिस संप्रदाय में वह जाता है ,वहां जाने पर पहली बात तो यह होती है कि वह अपने मूल धर्म के लोगों से अधिक घृणा करता है । दूसरी बात यह है कि वह उन नियमों, सिद्धांतों व मान्यताओं को अधिक से अधिक तार-तार कर देना चाहता है जो उसके मूल धर्म में रहते हुए उस पर लागू थीं। बस, यही बात अब जिन्नाह के परिवार पर भी लागू हो गई थी । उसके पिता पुंजालाल ने अपने मूल हिंदू धर्म की सारी मान्यताओं को तार-तार किया और मांस, मदिरा व अय्याशी की सारी सीमाएं तोड़ दीं। जिन्ना ने भी अपने बाप की देखा – देखी अपने आपको इन्हीं दुर्व्यसनों में फंसा लिया । फलस्वरूप वह भी अब हिन्दू धर्म के प्रति घृणा से भर चुका था। अपने मछली के व्यापार में जिन्नाह और उसके बाप ने भरपूर पैसा कमाया । यद्यपि जिन्नाह का अपना पेशा वकालत का था । उन्हें इसी व्यापार के माध्यम से पर्याप्त प्रसिद्धि भी प्राप्त हुई । जिसका लाभ जिन्नाह को अपनी वकालत में भी मिला। यहां तक कि लन्दन में भी उन्हें अपने कारोबार को फैलाने और बढ़ाने के लिए अपना देख स्थानीय कार्यालय खोलना पड़ा।
गुजरात में जिन्ना के अपने मूल परिवार के लोग अभी भी रहते हैं । वे सभी आज भी हिन्दू हैं । उनमें मांस, मदिरा और अय्याशी का कोई दोष उस समय नहीं था, इसलिए वे शान्तिपूर्वक अपने देश के साथ मिलकर काम करते रहे। उनकी पुरानी पीढ़ियों में सम्मिलित रहे जिन्नाह से उन्हें कोई लगाव नहीं है । कारण कि जो व्यक्ति अपने धर्म और अपने देश का गद्दार हो गया उसे हिंदू धर्म में त्यागने की पुरानी परम्परा रही है।
इसके उपरान्त भी पता नहीं देश के गांधीवादी और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लोग जिन्नाह से अपना कौन सा सम्बन्ध निभा रहे हैं ?
( हमने यह लेख अकबर एस. अहमद की किताब ‘पाकिस्तान एंड इस्लामिक आईडेंटिटी’ के आधार पर प्रस्तुत किया है।)
वास्तव में इस लेख को लिखने का हमारा उद्देश्य केवल एक है कि गांधीजी और गांधीवादी कभी यह नहीं समझ पाए हैं (और लगता है कि समझेंगे भी नही) कि जो व्यक्ति अपने धर्म से गद्दारी कर जाता है वह देश के साथ गद्दारी करने में भी देर नहीं करेगा। देश के बंटवारे की बात वही करेगा जो मजहबी बंटवारा कर लेगा। यदि इस छोटे से सच को गांधीजी समझ गए होते तो वह जिन्नाह जैसे गद्दार से दूरी बनाकर रहते। पर दुख तो उस समय होता है जब अतीत की अपनी मूर्खताओं से गांधीवादियों ने आज भी शिक्षा ग्रहण नहीं की है। ये आज भी ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ – का समर्थन करते हुए दिखाई देते हैं। इसका कारण केवल यही है कि इन्हें ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ का समर्थन करने का संस्कार गांधीजी से मिला है।
देशद्रोहियों से प्रेम की पींगें बढ़ाना अपने लिए कब्र खोदने के समान है और देशद्रोहियों को सिर पर चढ़ा कर बैठा लेना अपने आपको मार लेने के समान है। दुर्भाग्य से गांधीजी और गांधीवादी यही करते रहे हैं और आज भी यही कर रहे हैं। 1947 में देशद्रोहियों ने यह कहकर अलग पाकिस्तान लिया था कि ‘हँसकर लिया-पाकिस्तान ,- लड़कर लेंगे हिंदुस्तान’ – वे आज हिंदुस्तान के भीतर मुगलिस्तान बनाने का सपना देख रहे हैं और कांग्रेस आज भी उन्हें अपना सगा संबंधी समझकर उनके प्रति सहिष्णुता बरतने की वैसी ही बातें कर रही है जैसी 1947 से पहले गांधीजी मुस्लिम लीग और जिन्नाह के प्रति किया करते थे।
कहने का अभिप्राय है कि खतरों को देखकर भी अनदेखा करना भारतीय राजनीतिज्ञों को गांधीवाद की देन है । खतरों को देखकर आंखें बंद करके यह समझ लेते हैं कि शायद खतरा अब टल गया है। जबकि खतरा पैदा करने वाले इनकी आंख मूंदने की अवस्था को अपने लिए अनुकूल अवसर समझकर इन पर झपट्टा मारते हैं और इनका काम चट कर जाते हैं। इसके उपरान्त भी कांग्रेसी गांधीवादी अपने आप को देश भक्त कहते हैं और यह भी कहते सुने जाते हैं कि हमारी देशभक्ति पर संदेह करने की आवश्यकता नहीं है। अब इन्हें कौन समझाए कि जब तुम्हारे काम ही देश की आत्मा को कचोटने के हैं तो तुम्हारी देशभक्ति पर सन्देह क्यों न किया जाए? (समाप्त)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत