26 मई को नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गये हैं तो जरा याद करें 3 जून 1947 का वो मनहूस दिन जब कांग्रेस ने सत्ता प्राप्ति की चाह में जल्दबाजी दिखाते हुए साम्प्रदायिक आधार पर देश का बंटवारा मान लिया था, और बंटवारे को लेकर की गयी उस बैठक से स्वातंत्रय वीर सावरकर जैसे किसी भी राष्ट्रवादी नेता को जानबूझ कर ब्रिटिश सत्ताधीशों और कांग्रेस ने दूर रखा था। इस पावन अवसर पर सरदार पटेल का वह सुझाव भी याद करने का वक्त है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि साम्प्रदायिक आधार पर देश का बंटवारा हो ही रहा है तो यह मुकम्मल कर लिया जाए, अर्थात हिंदुओं की पूरी आबादी को पाकिस्तान से भारत ले आया जाए और इसी प्रकार भारत से सारे मुसलमानों को पाकिस्तान भेज दिया जाए। आज डा. अंबेडकर का वह सुझाव भी याद करने योग्य है जिसमें उन्होंने साम्प्रदायिक आधार पर हो रहे देश के विभाजन के बाद भारत को हिंदुस्थान कहने की बात कही थी। क्योंकि यदि ये सुझाव मान लिया जाता तो बहुत से लोगों को देश को ‘खिचड़ी स्थान’ बनाने का अवसर नही मिलता। आज उस मंजर को भी याद करने का दिन है जब विभाजन की ‘प्रसव पीड़ा’ को झेल रही भारत माता को अपने दस लाख बेटों से हाथ धोना पड़ा था, जो पाकिस्तान से चले तो थे अपने ‘घर’ के लिए पर आज तक वे अपने ‘घर’ नही पहुंच पाये। आज पाकिस्तान में रह रहे उन तीन करोड़ हिंदुओं के बलिदानों को भी याद करने का दिन है जो बीते 67 वर्षों में वहां या तो अपना बलिदान दे चुके हैं या जिन्हें जबरन इस्लाम कबूल करने के लिए बाध्य कर दिया गया है या जो आज तक वहां नारकीय जीवन जी रहे हैं। जब इतिहास के इसे दर्दनाक दौर के इन खूनी मंजरों को याद किया जाता है तो लगता है कि 15 अगस्त 1947 तो देश की आजादी का नही बल्कि बर्बादी का दिन था, ऐसी बरबादी जिसमें करोड़ों लोगों के आज तक बलिदान, बलात धर्म परिवर्तन की कारूणिक कहानी को देश आज तक अपनी श्रद्घांजलि नही दे पाया है।
आज देश में परिवर्तन की बयार बह रही है। नरेन्द्र मोदी को ‘मां भारती’ ने अपने करोड़ों बलिदानियों की भटकती हुई आत्मा की तृप्ति के लिए अपना नेतृत्व सौंपा है। ‘भगीरथ’ बने मोदी ने भी चुनौती स्वीकार कर ली है, अब देखना ये है कि वह इतिहास की इस सबसे कठिन परीक्षा में कैसे सफल होते हैं? वैसे श्रीलंका और पाकिस्तान ने जिस प्रकार भारत के 150-150 गिरफ्तार मछुआरों को छोडऩे की घोषणा की है और चीन व अमेरिका ने भी भारत के उभरते मजबूत नेतृत्व को देखकर भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन किया है, उससे तो आगाज लग रहा है कि शास्त्र की अच्छी बातों की रक्षा के लिए भी शस्त्र की आवश्यकता होती है, भारत के इस सनातन राजनैतिक मूल्य को आज विश्व के सभी देशों ने मान लिया है। भूल हमसे हो रही थी… और हमने भी 16 मई को नरेन्द्र मोदी को प्रचण्ड बहुमत देकर लगता है अपनी गलती को सुधार लिया है। विदेशों के भारत के प्रति बदलते दृष्टिकोण को देखकर लगता है कि भारत की बात को अब विश्वमंचों पर भी ध्यान से सुना जाएगा। सच ही है:-
अरविन्द घोष जैसे लोगों ने अपने वर्षों के अनुसंधान के पश्चात यह तथ्य खोजे कि नेहरू परिवार का पूर्वज फेजुल्ला खान था, जो 1857 में दिल्ली शहर का कोतवाल था और उसका संबंध मुगल खानदान से था। यदि यह सत्य है तो नेहरू के उस कथन का राज भी अपने आप ही स्पष्ट हो जाता है जिसमें उनका मानना था कि वह ‘दुर्घटनावश हिंदू’ हंै। ‘दुर्घटना वश’ हिंदू बने इस नेहरू परिवार ने भारत पर बीते 67 वर्षों में सबसे अधिक शासन किया है। घोष जैसे विद्वानों के निष्कर्षों को देखकर तो यही लगता है कि भारत पर बीते 67 वर्षों में भी विदेशी सोच के विदेशी लोगों का शासन रहा है, तभी तो भारतीयता, भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषा, भारतीय राष्ट्र और भारतीय धर्म को मारने या मिटाने का हरसंभव प्रयास इन कांग्रेसी (लालबहादुर शास्त्री जैसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों को छोड़कर) शासकों की ओर से किया गया है। पिछले दस वर्ष से नेहरू, इंदिरा और राजीव की इस ‘भारत मिटाओ’ रणनीति को विदेशी मूल की सोनिया गांधी अंजाम दे रही थीं।
16 मई को देश की जनता की साधना पूर्ण हुई, और उसने आंखें खोलकर अपना निर्णय सुनाया। 67 वर्ष के समुद्र मंथन की कठोर साधना से उसे मोदी नाम का अमृत मिला। वैसे मोदी देश की फिजाओं में बीते 67 वर्षों में बहती रही एक चुनौती के आवाहन के, ललकार के, पुकार के और एक चैलेंज के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं। जिन्होंने इस आवाह्न को अथवा चेलैंज को सुना और स्वयं को मां के श्री चरणों में सेवा हेतु समर्पित कर दिया है। वह भारत की मिट्टी से बने हैं, और भारत ने उन्हें बनाकर अपने लिए नियुक्त किया है मोदी इतिहास के मैल को धोकर धूप में सुखायी गयी चादर का नाम है। निश्चित रूप से एक ऐसी चादर का नाम जो अब ‘हिंद की चादर’ बनना चाहती है और जिसे हिंद ने ऐसी ही उम्मीद के साथ अपने ऊपर तान लिया है। बहुत बड़ी जिम्मेदारी है ये, लेकिन मोदी भी 56 इंच का सीना रखते हैं। इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह ‘हिंद की चादर’ बनकर भी दिखाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो 16 मई 2014 देश की दूसरी आजादी का स्वर्णिम दिन होगा ऐसा दिन जिसकी स्वर्णिम आभा के सामने 15 अगस्त का दिन भी आभाहीन हो जाएगा। हमें ऐसे ‘अच्छे दिनों’ की ही कामना करनी चाहिए।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।