मोदी राजनय का सफल अभिनय
विश्व में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जिसने युद्घ के भी नियम आविष्कृत किये थे और उन्हें युद्घ के समय बड़ा गंभीरता से निभाया भी। इस देश से प्राचीन काल में लोग जहां जहां जाकर बसे वहां-वहां उन्होंने भारत की परंपराओं का प्रचार-प्रसार किया और उन्हें बड़ी श्रद्घा से निभाया भी। राजदूत के साथ कभी भी विश्व बिरादरी में अपमानजनक व्यवहार नही किया जाता है-यह विश्व को भारत की देन है, और यह भी कि प्रत्येक राजा अपने राज्यारोहण के समय अपने पड़ोसियों को और विश्व समाज को इस बात के लिए आश्वस्त करता था कि वह विश्वशांति के प्रति पूर्णत: संकल्पबद्घ है। ओलिम्पिया के विषय में कहा जाता है कि वहां धार्मिक उत्सवों के अवसरों पर विभिन्न ग्रीक राज्य अपने युद्घों को स्थगित कर दिया करते थे, एक दूसरे पक्ष के लोग ऐसे उत्सवों में विपरीत शत्रु पक्ष के यहां भी चले जाया करते थे। मृत सैनिकों की अन्त्येष्टि क्रिया के लिए भी विदेशों में अस्थायी संधियां होने के प्रमाण मिलते हैं। वस्तुत: यह भी उन लोगों को भारत की ही देन थी।
कहने का अभिप्राय है कि प्राचीन काल में विश्व भारत के राजनय और अभिनय का कायल था। शांतिकाल को दीर्घ बनाने के लिए राजनय ही काम आता था। इसी राजनय को आजकल की भाषा में कूटनीति कहा जाता है।
अब भारत में सत्ता परिवर्तन हुआ है। भारत की जनता ने प्रचण्ड बहुमत के साथ मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया है। मोदी को लेकर विदेशों में भी प्रारंभ से ही कई प्रकार के अनुमान लगाये जा रहे थे, निश्चित रूप से पाकिस्तान, चीन और अमेरिका जैसे देशों के लिए जो कुछ भी भारत में होने जा रहा था वह नितांत गलत ही होने वाला था। पर नियति को अटल देखकर इन देशों ने अपने राजनय के अभिनय में बड़ा चमत्कारिक परिवर्तन करना आरंभ कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर दृष्टि रखने वाले लोगों को भी इन देशों की कलाबाजी को देखकर आश्चर्य हुआ। पाकिस्तान ने मोदी को सत्ता की ओर बढ़ते देखकर सबसे पहले उन्हें बधाई दी और अपने यहां आने का निमंंत्रण भी दिया। मोदी निमंत्रण पर चुप रहे।
मोदी ने विदेशों के राजनय को समझा और बड़ी सावधानी से अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए पाकिस्तान सहित ‘सार्क’ देशों को और ‘मारीशस’ को विशेष सम्मान देते हुए आमंत्रित कर लिया। कुछ लोगों ने मोदी के द्वारा पाकिस्तान को इस शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करने को लेकर नाक भौं सिकोड़ी कि मोदी ने यह क्या कर दिया? पर मोदी ने भारत की उस विश्व परंपरा के अनुकूल ही किया, जिसके अनुसार हम अपने पडा़ेसियों को यह आश्वस्त करते आये हैं, कि हम विश्वशांति के प्रति वचनबद्घ हैं। बताइए, आपका क्या विचार है? नवाज शरीफ ने मोदी को पाक आने का निमंत्रण देकर फंसाने का प्रयास किया था, लेकिन शरीफ स्वयं फंस गये, मोदी का निमंत्रण पाकर। सारे देशों ने अपनी स्वीकृति देने में देरी नही की, परंतु पाक पीएम को अपने देश में मोदी के निमंत्रण को लेकर अपनी स्वीकृति देने में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ा। शरीफ को पहली बार लगा कि उसका सामना इस बार किसी खिलाड़ी से हुआ है। मोदी ने शरीफ को अपने देश बुलाना ही उचित समझा, बजाए इसके कि वे स्वयं उनके देश जाते।
अब प्रश्न आता है कि क्या मोदी पाकिस्तान के प्रति मोरारजी देसाई जैसा अनुचित अनुराग या अटल जी जैसा अतिवादी प्रेम प्रदर्शन या आडवाणी जैसी अपमानजनक वंदना के स्वरों को तो कहीं मुखर नही करने जा रहे हैं? इस प्रकार के प्रश्नों या शंका संदेहों के जवाब खोजने के लिए हमें शीघ्रता नही करनी चाहिए। अभी एक राजनयिक शिष्टाचार है और इस राजनयिक शिष्टाचार में भी शरीफ को जिस प्रकार का जोरदार झटका मोदी ने दिया है, वह देखने लायक है। मोदी ने काश्मीर को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार फारूख अब्दुल्ला और उनके मुख्यमंत्री बेटे उमर अब्दुल्ला की बोलती बंद की थी उसे भी हमें याद रखना चाहिए। फारूख अब्दुल्ला सांप्रदायिकता का पाठ मोदी को पढ़ा रहे थे तो मोदी ने जिन बीजों की माला उल्टे अब्दुल्ला परिवार के गले में डाली उसे देखकर दोनों बाप बेटे अभी तक ये असमंजस में हैं कि यह माला कितने मोतियों की है? निश्चित रूप से ऐसा जवाब अभी तक पूर्व के किसी पीएम ने अब्दुल्ला परिवार को नही दिया। इस जबाब को पाकिस्तान ने भी सुना और कदाचित यह जवाब मोदी ने वाया अब्दुल्ला परिवार के पाकिस्तान को ही सुनाया भी था।
इस जवाब को देकर ही मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि वह महात्मा गांधी की तरह पाकिस्तान में कोई शांति मार्च करने नही जा रहे हैं, नेहरू की तरह उन्हें शांतिवादी बनकर अपनी राष्ट्रीय अस्मिता से समझौता नही करना है, मोरारजी भाई की तरह उन्हें ‘निशाने पाकिस्तान’ लेने की केाई जल्दी नही है। अटल की तरह उन्हें किसी ‘बस डिप्लोमेसी’ के प्रदर्शन की आवश्यकता नही है और ‘आडवाणी गेम’ को दोहराने के लिए जिन्ना की मजार पर तो जाने के लिए भी समय नही है। राजनीति में सारे काम मुंह से कहकर ही नही किये जाते हैं। यदि ऐसा होता तो राजनीति में ‘राजनय’ का कोई औचित्य नही होता। फिलहाल मोदी के सफल राजनय को दाद देने का समय है। उन्होंने अच्छे आगाज के साथ शुरूआत की है, तो परिणाम भी अच्छा ही आएगा। हम परिणामों की प्रतीक्षा करने की बजाए परिणामों की दिशा पर सोचें कि वे किस दिशा से और किस नीति पर सवार होकर आ रहे हैं? निश्चित रूप से प्रसन्नता मिलेगी।