मनोज ज्वाला
भाजपा के हाथों भारत की केन्द्रीय सत्ता से बेदखल हो चुकी कांग्रेस
अपनी इस बदहाली के लिए भाजपा के बढते जनाधार से नहीं, बल्कि उसके
मातृ-संगठन अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति बढती जनस्वीकार्यता
से ज्यादा चिन्तित है । लोकसभा के दो-दो चुनावों में लगातार हुई हार से
सहमी कांग्रेस के शीर्ष-नेतृत्व का मानना है कि हार के लिए साम्प्रदायिक
तुष्टिकरण की उसकी नीतियां जरूर जिम्मेवार हैं, किन्तु भाजपा की हुई जीत
के लिए तो उसका पितृ-संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का बढता जनाधार ही
सबसे बडा कारण रहा है । अभी हाल ही में १७वीं लोकसभा के हुए चुनाव के बाद
हार के कारणों की समीक्षा के लिए हुई बैठक में भी कांग्रेस के नेताओं ने इस तथ्य के सत्य पर संज्ञान लेते हुए भाजपा का
मुकाबला करने के लिए संघ जैसा ही अपना एक अराजनीतिक सामाजसेवी संगठन
बनाने की आवश्यकता को बडी सिद्दत से महसूस किया । समीक्षा के दौरान हुए
विचार-मंथन में शामिल गांधीवादी पूर्व सांसद रामजी भाई और कांग्रेसी
विचारक रामलाल राही आदि ने कांग्रेस-नेतृत्व को समझाया कि जिस तरह से
महात्मा गांधी के सत्याग्रह व सामाजिक कार्यों का राजनीतिक लाभ कांग्रेस
को लम्बे समय तक मिलते रहा, जिसकी वजह से वह अब तक सत्ता में बनी रही ;
उसी तरह से डॉ० केशव बलिराम हेड्गेवार द्वारा स्थापित संघ-संगठन के विविध
सेवामूलक कार्यों के लाभकारी परिणाम ही भाजपा को सत्ता के शीर्ष पर
पहुंचा दिए । उनने कांग्रेस नेताओं को यह भी स्मरण
कराया कि कांग्रेस में कभी ‘सेवादल’ नाम का एक संगठन हुआ करता था, जो संघ
का विकल्प बन सकता था; किन्तु कालक्रम से उसके सारे कार्यकर्ता कांग्रेस
के नेता बन गए जिससे वह मृतप्राय हो गया, तो अब उसी तर्ज पर संघ जैसा एक
कांग्रेसी सामाजिक संगठन बनाने की सख्त जरुरत है । इस दिशा में
मांग्रेस-नेतृत्व कैसा व कितना प्रयत्न कर रहा है, सो तो वही जाने ;
किन्तु कांग्रेस नेताओं के संघ-सम्बन्धी बयानों और भाजपा की हर
नीति-गतिविधि के लिए संघ व उसकी विचारधारा को कोसने से पूरा देश यह तो
जान ही गया कि अपने देश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी एक ऐसी शक्ति
है, जो कांग्रेस जैसी सत्ताधारी पार्टी को सत्ता से विस्थापित कर सकती है
और भाजपा जैसी विपक्षी पार्टी को सत्ता के शीर्ष पर स्थापित कर सकती है ।
२०१४ में १६वीं लोकसभा के हुए चुनाव के बाद से अब तक भाजपा-मोदी-सरकार के
हर कार्य के लिए संघ को जिम्मेवार ठहरा कर कांग्रेस के नेता-नियन्ता लोग
संघ का एक तरह से प्रचार ही करते रहे हैं । किन्तु उनका संघ-विरोध
हिन्दू-विरोध व राष्ट्र-विरोध का रुख भी लेता रहा, क्योंकि संघ एक
राष्ट्रवादी हिन्दू-संगठन जो है । कांग्रेस का यह संघ-विरोध इतना बढता
गया कि कश्मीर से धारा ३७० हटाने एवं उस राज्य के पुनर्गठन सम्बन्धी
मोदी-सरकार के निर्णय की आलोचना करते हुए कांग्रेसियों ने उसके लिए भी
संघ को घसिटते हुए उसे एक मुस्लिम-विरोधी नाजी संगठन के विशेषण से
विभूषित कर दिया । कांग्रेस के इस संघ-विरोध से उत्साहित हो कर पाकिस्तान
भी कश्मीर-मामले पर भारत सरकार के निर्णय का विरोध करने के अपने अभियान
में संघ को शामिल कर लिया । अर्थात देश में संघ-विरोध का जो काम कांग्रेस
करती रही थी, दुनिया में वही काम पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान भी करते
दिख रहे हैं । अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ में दिए अपने एक भाषण
में इमरान खान द्वारा संघ के नाम का उल्लेख १० बार किया गया । संघ को
हिटलर व मुसोलनी से प्रभावित संगठन बताते हुए इमरान ने कहा कि भारत के
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उसी संघ के सदस्य हैं, जो मुस्लिमों से घृणा
करता है । उन्होंने कहा है कि “संघ ऐसा संगठन है, जो हिंदू नस्ल को ऊपर
मानता है तथा मुस्लिमों व ईसाइयों से घृणा करता है । उसका मानना है कि
हिंदुओं के शासन का स्वर्णकाल मुस्लिमों की वजह से खत्म हुआ । इसी घृणा
की विचारधारा ने महात्मा गांधी की हत्या की । वर्ष २००२ में मोदी ने इसी
घृणा की विचारधारा के चलते गुजरात में संघ के गुण्डों को हिंसा फैलाने की
इजाजत दी , जिन्होंने मुस्लिमों की हत्या कर दी और सैकड़ों मुस्लिम बेघर
हो गए ।” ऐसे निराधार व तथ्यहीन आरोपों के साथ इमरान खान द्वारा संघ का
यह उल्लेख युएनओ में भारत को ‘मुस्लिम-विरोधी’ व ‘हिन्दू राष्ट्र’ सिद्ध
करने की कोशिश के तौर पर इस तरह से किया गया कि दुनिया संघ और भाजपा को
एक ही समझे । ध्यातव्य है कि युएनओ में आज तक किसी भी देश के प्रमुख
द्वारा कभी भी संघ का नामोल्लेख नहीं किया गया था । किन्तु इमरान के
द्वारा ऐसा किये जाने से यह प्रतीत होता है कि पाकिस्तान आतंकवाद के
विरुद्ध भारत सरकार की कर्रवाइयों से उतना भयभीत नहीं है, जितना संघ की
विचारधारा से । क्योंकि उसे मालूम है कि भारत की केन्द्रीय सत्ता
संघ-संपोषित भाजपा के हाथों में आने के कारण ही भारत-सरकार पाक-पोषित
इस्लामी आतंकवाद के विरुद्ध विश्व भर में निर्णायक अभियान चला रही है ,
जिससे वह बेनकाब होता जा रहा है । अन्यथा कांग्रेस की सरकार से तो उसे
कोई परेशानी नहीं थी । ऐसे में, इमरान के उस भाषण को विश्व-विरादरी के
लोग अगर गम्भीरता से लेते भी हैं, तो इससे संघ का उसी तरह से भला ही
होगा, जिस तरह से भारत में कांग्रेस द्वारा किये जाते रहे संघ-विरोध से
संघ का विस्तार होते रहा है । क्योंकि संघ के प्रति वैश्विक विमर्श होने
से पूरे विश्व में संघ की उस विचारधारा का विस्तार होगा , जिसके कारण
भारत भर में भाजपा के जनाधार का विस्तार होने से नरेन्द्र मोदी की
निष्कलंक स्वीकार्यता बढी है और उनके नेतृत्व में भारत आज आतंकवाद के
विरुद्ध अब तक का सबसे बडा अभियान चला रखा है ।
संघ के सह-सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने इमरान खान के उस
भाषण पर पाकिस्तान की आशा के विपरीत भडकने के बजाय चुटकी लेते हुए कहा है
कि “सचमुच ही भारत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक दूसरे के पर्यायवाची
हैं । हम भी यही चाहते हैं कि दुनिया के लोग भारत और संघ को एक ही समझें
। इमरान खान ने भारत और संघ को एक ही बता कर अच्छा ही किया है , क्योंकि
इससे दुनिया में जो-जो देश आतंकवाद से पीड़ित हैं, वे यह अनुभव करने लगे
हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आतंकवाद का विरोधी संगठन है।”
दरअसल अपने देश में इन दिनों जो हाल कांग्रेस का हो चुका है,
दुनिया में वही हाल पाकिस्तान का होते जा रहा है । इसका मूल कारण
कांग्रेस का हिन्दुत्व-विरोधी होना और पाकिस्तान का हिन्दू-विरोधी होना
तो है ही , सबसे बडा कारण तो इस्लामी-जिहादी आतंकवाद के प्रति उन दोनों
का नरम होना है । संघ जैसा अपना एक समाजसेवी संगठन कायम करने को इच्छुक
कांग्रेस और संघ से ठीक उलट अनेक हिंसक-जिहादी संगठनों के संरक्षक बने
पाकिस्तान, इन दोनों के ‘संघ-विरोध’ में मूल तत्व यही है- सत्ता के लिए
आतंकवाद का सहयोग । इन दिनों इधर देश में कांग्रेस ने संघ को भाजपाई
सरकार का पर्याय बना दिया है, तो उधर दुनिया में पाकिस्तान द्वारा संघ को
भारत का पर्याय बनाने की कोशिश की जा रही है । कांग्रेस और पाकिस्तान के
इस ‘संघ-विरोध’ का फलितार्थ वास्तव में संघ के लिए अनुकूल ही है, क्योंकि
आतंकवाद के विरुद्ध भारत के वैश्विक अभियान के परिप्रेक्ष्य में संघ के
प्रति बढता राजनीतिक-बौद्धिक विमर्श कम से कम संघ के लिए तो शुभकारी भी
होगा और लाभकारी भी , लोग संघ की विचारधारा के यथार्थ को जानेंगे औए
समझेंगे तो सही ।
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