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गोवा के समुद्री तटों की सुंदरता से परे हिंदू नरसंहार का एक भयानक अनकहा काला इतिहास भी है, जिसमें :

“हिन्दू स्त्रियों के स्तनों को धारदार हथियारों से काट दिया गया। गरमा-गरम लाल चिमटों से शरीर के मांस निकाले गए । लाल गर्म सरिया महिलाओं की योनि और पुरुषों के मलद्वार में डाले गए। हिंदुओं के नाखूनों को दर्दनाक तरीके से निकाला गया। उंगलियों और अंगूठे को कुचलकर तोड़ दिया गया। उनके शरीर पर तेज़ाब डाला गया। उनके हाथ उबलते तेल और पानी में डाले गए। ”
और यह सब कुछ सिर्फ धर्म परिवर्तन के लिए।

गोवा के इतिहास के इस काले पृष्ठ को Goa Inquisition (गोवा अधिग्रहण) के रूप में जाना जाता है।

6 मई 1542 को, ‘संत’ फ्रांसिस ज़ेवियर गोवा में उतरे और गोवा की वास्तुकला से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा “जिसने भी गोवा को देखा है उसे लिस्बन (पुर्तगाल की राजधानी) देखने की जरूरत नहीं है”, लेकिन वह यह जानकर बहुत निराश हुआ कि हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करना आसान नहीं था।

इसलिए उसने मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। लेकिन इसके बाद हिंदू अपने घरों में मंदिर बना कर पूजा करने लगे। इससे वह और क्रोधित हो गया।
वह जान गया कि हिंदू धर्म की जड़ें भारतीय सभ्यता में गहरी है। और लोगों ने वैदिक भारतीय सभ्यता में सनातन धर्म का पालन किया है।

निराश होकर ज़ेवियर ने रोम के राजा को पत्र लिखा- “हिंदू एक अपवित्र जाति हैं। वे झूठे और धोखेबाज हैं। उनकी मूर्तियां काली, बदसूरत और डरावनी है। एंव तेल से सनी हुई और बुरी तरह से गंध वाली है। ”

इसके बाद पुर्तगालियों ने हिंदुओं को यातनाएं देकर धर्म परिवर्तन कराने का आदेश दिया। यह कार्य सन 1561 से 1812 तक चला। इसके तहत 20,000 हिंदुओं को निगरानी में रखा गया। उन्हें शिखा रखने की मनाई थी। घर पर तुलसी का पौधा लगाने पर भी प्रतिबंध था। जनेऊ पहनना अपराध था। घर में मूर्ति रखना या वेद शास्त्र पढ़ना वर्जित था।

इसका मुख्य कारण सिर्फ RELIGIOUS HATRED नहीं था। इसका मुख्य कारण विज्ञान, चिकित्सा, गणित और अन्य विषयों पर कई प्राचीन संस्कृत और मलयालम वैदिक ग्रंथों को चोरी करना था, जैसा कि वे कर सकते थे। बाद में उन्होंने चोरी की गई सभी जानकारी का इस्तेमाल किया और इसे अपने नाम पर patent करा लिया।

इस दौरान जबरदस्ती लोगों का धर्म परिवर्तन कराकर उन्हें गौ मांस और सस्ती शराब (फेनी) का सेवन कराया गया। बहुत ही शातिर तरीके से उन्हें आलसी बनाया गया ताकि वे काम करना ही भूल जाए।

1620 में पुर्तगालियों ने गोवा में हिंदू विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया। और 1625 में आदेश दिया कि गोवा में कोई भी हिंदू काम नहीं कर सकता।
उन्होंने एक दस्तावेज भी जारी किया जिसके तहत कोई भी गोवा में मंदिर का निर्माण नहीं कर सकता था। और पहले से ही निर्मित अन्य सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया जाएगा। इस आदेश के तहत लगभग 300 से ज्यादा मंदिरों को नष्ट कर दिया गया।

15 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को बाइबल की शिक्षाओं को सुनने के लिए मजबूर किया गया था। और अगर वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें दंडित किया जाता। विद्रोह करने वाले हिंदुओं के साथ बेहद क्रूर तरीके से व्यवहार किया गया। उनकी जीभ काट दी जाती। उन्हें नुकीली कीलों से या गर्म लोहे के सरिये से अंधा कर दिया गया। उनकी चमड़ी छीलकर, उनकी पेट की आंत निकालकर उन्हें दर्दनाक और धीमी मौत के लिए छोड़ दिया जाता। इस यातना के प्रकार और क्रूरता की कोई सीमा नहीं थी।

कोई भी इतिहासकार या लेखक (Filippo Sassetti, Charles Delone, Claudius Buchanan etc) जिन्होंने इसके बारे में लिखा था। उन्हें या तो जेल में डाल दिया गया या मार दिया गया।

आज फ्रांसिस ज़ेवियर ईसाइयों के लिए बहुत बड़ा नाम है। उन्हें ‘संत’ की पदवी दी गई है। कई स्कूलों/कॉलेज और चर्चों का नाम उसके नाम पर रखा गया है। पोप ने उनकी मृत-शरीर को बहुत सौभाग्य कारक माना। क्योंकि ज़ेवियर ने ईसा मसीह से भी ज्यादा लोगों को इसाई बनाया था।

आज भी गोवा बहुत सारी पश्चिमी परंपरा का पालन करता है। उदाहरण के लिए पुर्तगालियों ने शास्त्रीय संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था। पर अब भी गोवा के लोग पश्चिमी संगीत ही सुनते हैं शास्त्रीय संगीत नहीं।

यह है ईसाई धर्मांतरण में क्रूरता की सच्चाई। ज़ेवियर की तरह आज भी कई दुर्जन लोग संत का चोला पहनकर घूम रहे हैं। राजनीतिक समर्थन ना होने पर यह लोग बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन कराते हैं। और जब इनके पास राजनीतिक समर्थन होता है (जैसे गोवा में इन्हें पुर्तगालियों का था) वहां इन लोगों के अत्याचारों की कोई सीमा नहीं रहती।

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